फर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश की 70 फ़ीसदी राजनीति पुलिस के सहारे ही होती है| पिछले कई चुनावो में पुलिस का उपयोग सत्ताधारी दल करता आ रहा है| पुलिस के द्वारा विपक्षियो को छकाने का काम किया जाता रहा है और इस बार भी नहीं होगा ऐसा कहना मुश्किल ही है| तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने लगी है| पुलिस की सहायता से नेताजी चुनावी नैया खेने लगे है| वैसे कभी कभी जलवा दिखाने में नुक्सान भी हो जाता है| मगर चुनावी इतिहास गवाह है कि सत्ता होने का मतलब ये कतई नहीं है कि सत्ताधारी नेता चुनाव जीत ही जायेगा| ऐसा होता तो सपा की पिछली सरकार अपने कार्यकाल में ही चुनाव में हारी थी और यही बसपा के साथ हुआ था| ताजा तस्वीर फेसबुक पर लहरा रही है| कमालगंज चतुर्थ से समाजवादी पार्टी के के पदाधिकारी घनश्याम सिंह यादव जिला पंचायत सदस्य के लिए हाथ आजमा रहे है| अभी फाइनल टिकट होना बाकी है मगर थानाध्यक्ष की मौजूदगी में चुनाव प्रचार की तस्वीर फेसबुक पर शेयर होने लगी है|
हालाँकि तस्वीर के बारे में घनश्याम यादव की सफाई है कि ये तस्वीर पीस कमेटी की बैठक की है| जो चुनावो के मद्देनजर रामपुर माझगांव में आयोजित की गयी थी| इसे पुलिस ने आयोजित किया था| अब नेताजी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि वे यहाँ चुनाव प्रचार कर रहे है| हालाँकि उनकी खुद की लगायी गयी तस्वीर और उसकी हेडिंग में कहीं नहीं लिखा है कि ये पीस कमेटी की बैठक है| उन्होंने लिखा है- “रामपुर माझगाव में कमालगंज थानाध्यक्ष की मौजूदगी में बैठक” और उस उनकी पार्टी के एक पदाधिकारी पुष्पेन्द्र यादव ने मुहर लगाते हुए टिप्पणी लिखी है- “सत्ता का पूरा मजा ले रहे हो”| अब इसे क्या समझा जाए? फिर आरोप लगता है मीडिया पर कि “गलत मतलब निकाला गया है”|
यूपी की राजनीति में पुलिस थाने का बड़ा रोल होता तरह है| लगभग 20 साल पहले फर्रुखाबाद में भाजपा और कांग्रेस ही आमने सामने होती थी| जिस नेताजी की थाने में चलती थी उसी के साथ जनता खड़ी हो जाती थी| इसी फार्मूले को एक निर्दलीय प्रत्याशी ने अपनाया और जनता के बीच लोकप्रिय नेता हो गया| कोतवाल और थानेदार चोरी चकारी से लेकर मर्डर जैसे मामलो में थाने का दरोगा इलाके के बड़े नेता के बिना संज्ञान में लाये चालान नहीं किया करता था| ये बात और थी कि नेताजी (कई बार) थानेदार को कह देते थे कि रात भर पुलिसिया खातिर करने के बाद छोड़ना ताकि इसे याद रहे कि किसने छुड़वाया था| दर्जनो बाकये ऐसे मिल जायेंगे| ऐसा ही एक किस्सा पिछली बसपा सरकार का है| बसपा की सरकार में अनंत कुमार मिश्रा को चुनाव लड़ने के लिए फर्रुखाबाद भेजा गया था| लिंजीगंज के एक व्यापारी सनोज कुमार गुप्ता (नाम थोड़ा सा परवर्तित) को विजय सिंह के खेमे से अपने खेमे में करने के लिए नेताजी ने कोतवाल से कहकर सनोज कुमार को रात भर थाने में खामखा रखा था| ऐसे सैकड़ो मामले है सत्ता और पुलिसिया दोस्ती के| मगर एक बात है दोनों से पूछो तो बड़ी ही बेशर्मी से इस प्रकार की दोस्ती को नहीं कबूलते| भाषण देने को मिल जाए तो दोनों ही अपने आपको कलयुग में सत्यवादी और ईमानदार राजा हरिश्चंद्र का वंशज बताने से नहीं चूकते| तो तैयारी एक बार फिर से चुनावो में शासन के उपयोग (या दुरूपयोग) करने की है| लखनऊ से बयार बहने लगी है| आचार संहिता के बाद बैकडेट में तबादले किये जा रहे है और जिला और स्थानीय स्तर पर सत्ता के कार्यकर्ता और पदाधिकारी शासन का उपयोग (या दुरूपयोग) करते दिखाई पड़ने लगे है|