डेस्क: बहुत दिलचस्प है शाहजहांपुर में नेता-पुलिस-अपराधी-पत्रकार गठजोड़। लाखों की रकम खुद डकार लेना चाहते थे चुनिन्दा नेता-पत्रकार। शाहजहांपुर में तीन पत्रकारों का एक गुट बन गया था। जागेन्द्र सिंह, अमित भदौरिया और राजू मिश्र। यह करीब चार साल पहले की बात है। इनमें सबसे ज्यादा तेज-तर्रार था जागेन्द्र। खुटार के मूलत: जागेन्द्र को पत्रकार की दुनिया में सबसे पहले अमर उजाला के प्रभारी अरूण पाराशरी ने प्रवेश कराया था।
अरूण की नजर जगेंद्र पर पड़ी और उन्होंने जगेंद्र को खुटार में काम करने की जिम्मेदारी दे दी। खुटार में अमर उजाला में अच्छा काम कर रहे जगेंद्र कि मुलाकात स्वतंत्र भारत का जिला संवाददाता शरदार शर्मा से हुई। उसकी तेजी से प्रभावित होकर स्वतंत्र भारत दैनिक के जिला प्रभारी सरदार शर्मा ने उसे शाहजहांपुर में बुला लिया। जल्दी ही जागेन्द्र का डण्का बजने लगा। पूरे शाहजहापुर ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों में भी। बताते हैं कि उसका समाचार-नेटवर्क सबसे ज्यादा तेज था। कोई भी खबर सबसे पहले ही मिलती थी उसे। सन-11 में बसपा के एक नेता के अखबार खुसरो-मेल में उसे काम मिल गया। लेकिन बहुत जल्दी ही इस अखबार की अन्त्येष्टि हो गयी। इसी बीच जागेन्द्र, अमित और राजू के रास्ते अलग-अलग हो गये।
इसके बाद जागेन्द्र ने कई बार दीगर अखबारों-चैनलों में काम करने की कोशिश की, लेकिन उसे कोई नौकरी नहीं मिली। बताते हैं कि जागेन्द्र की काबिलियत ही उसका दुर्भाग्य बन गयी। उसके खिलाफ साजिशें बुनी गयीं। हार कर उसने शाहजहांपुर समाचार के नाम से फेसबुक पर एक पेज तैयार किया। दो महीने में ही उसके तीन अन्य पेज भी बन कर तैयार हो गये और उसकी मित्रता-सूची 17 हजार से ज्यादा हो गयी। परम्परागत समाचार संस्थानों से भी ज्यादा जागेन्द्र के इन वेब-पेजों को लाइक किया जाने लगा। जाहिर है कि जागेन्द्र के खिलाफ बाकी लोगों ने युद्ध की हालत पैदा कर दी।
अमित और राजू जागेन्द्र के साथ ही थे। लेकिन चूंकि नाम सिंर्फ जागेन्द्र का हो रहा था, इसलिए अपना अलग-अलग काम शुरू कर दिया। अमित भदौरिया ने औरया समाचार और राजू ने जलालाबाद समाचार के नाम से अपने वेब-पेज बनाकर काम शुरू किया। लेकिन जागेन्द्र बेताज बादशाह ही रहा, जबकि अमित और राजू के बारे में जन-चर्चाएं हैं कि यह लोग खबरों को बनाने-मरोड़ने-तोड़ने और रोकने-छापने का धंधा करते थे।।
सन-10 की दिसम्बर को शाहजहांपुर के बड़े पार्क में एक प्रदर्शनी आयोजित हुई थी। कई दिनों तक वहां धूम-धड़क्का चला। इसके आयोजक थे रमेश भइया। चर्चा तो यह है कि ऐसे आयोजनों का धंधा तो केवल कहने को था, इसमें भारी रकम और धंधाबाजी चलती थी। विनोबा सेवा आश्रम के नाम से एक बड़ा एनजीओ चलाने वाले रमेश भइया की चर्चा अपनी पत्नी को भी बहन कहने को लेकर भी खूब है।
खैर, इस दौरान एक युवती की लाश शहर के बाहरी इलाके में मिली। यह नेपाली युवती थी। पुलिस ने उसे अज्ञात मान कर केस बंद कर दिया। बहरहाल, रमेश भइया की उस समय के बसपा मंत्री अवधेश प्रसाद से खूब छनती थी, इसलिए चर्चा है कि अवधेश के प्रभाव के चलते पुलिस ने इस युवती की मौत का मामला रफा-दफा कर दिया था। लेकिन करीब एक साल पहले अचानक अमित भदौरिया ने इस युवती की लाश को खबर को कब्र से निकाल कर शाहजहांपुर के खबर-जगत पर पेश कर दिया। बताते हैं कि अमित ने इसमें रमेश भइया को लपेटा। बताया गया कि यह युवती उस प्रदर्शनी में थी और रमेश भइया से उसकी काफी प्रगाढता थी।
जाहिर है कि इस खबर से रमेश भइया और उसके लोग हिल गये होंगे। बताते हैं कि आनन-फानन उन्होंने अमित को साधा लिया और खबरें ठप हो गयीं। लेकिन राजू को इस व्यवसाय में फूटी कौड़ी तक नहीं मिली थी, इसलिए उसने अपने उस्तरे पर धार लगायी और एक फोटोग्राफर को लेकर सीधे नेपाल चला गया कि यह युवती रहने वाली थी। बताते हैं कि इन लोगों ने उसकी मां, उसके रिश्तेदार आदि के बयान की वीडियोग्राफी की और उसकी मां को लेकर शाहजहांपुर आ गया। इतना ही नहीं, उसने इस मां के बयान पर अदालत में एक अर्जी भी लगा दी कि चूकि यह हत्या का प्रकरण है, इसलिए इसकी दोबारा जांच कर अपराधियों को जेल भेजा जाए। सूत्र बताते हैं कि राजू ने इस मां को लालच दिया था कि अगर वह केस करेगी, तो उसे भारी रकम मिल जाएगी। क्योंकि इस मामले में जो आदमी फंसेगा, वह बहुत मोटा आसामी है।
यानी मामला भड़क चुका था। ऐसे में समर्थकों और विरोधियों को साधने-फंसाने की कवायदें शुरू हो गयीं। एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस मामले को दबाने के लिए 40 लाख रूपये तक भुगतान किया था। जानकार बताते हैं कि रमेश भइया का मानना था कि चूंकि मंत्री राममूर्ति वर्मा खासे असरदार हैं, इसलिए वे इस मामले को दबा सकते हैं। इस सौदे में 25 लाख रूपये तो मंत्री के लिए दिया गया था, जबकि 15 लाख रूपये पत्रकाराें और पुलिस को साधने के लिए दिया गया था।
लेकिन इस सौदे में धोखा हो गया। एक पत्रकार ने बताया कि मंत्री ने पूरी रकम दाब लिया और न पत्रकारों को धेला भर दिया और न ही पुलिस को। कोतवाल श्रीप्रकाश राय तो उनका पालतू माना ही जाता था। तो पहले चरण के तहत तो अमित को मंत्री की ओर से साधा गया, अमित क्षण भर में श्वान-पालित हो गया। कोतवाल ने उसे धमकाया था कि अगर ज्यादा चपड़-चपड़ करोगे तो तुम्हें जेल में भेज दूंगा। अमित की पूंछ इस धमकी से दब गयी।
लेकिन राजू कुछ ज्यादा दबंग था, इसलिए वह भाग कर जागेन्द्र के खेमे में जुड़ गया। वह बिना कुछ लिये, मामला खत्म करने को तैयार नहीं था। और वह खूब जानता था कि केवल जागेन्द्र के साथ ही वह अपना धंधा चला पायेगा। 22 अप्रैल को अमित और गुफरान वगैरह ने रात दस बजे राजू और जागेन्द्र से बातचीत करने के लिए इमली चौराहे पर रोका। बात बढ़ी तो जागेन्द्र ने अमित को दो झापड़ रसीद कर दिये।
अमित भदौरिया ने फौरन कोतवाली में एफआईअार दर्ज करायी कि जागेन्द्र और राजू ने उसे जान से मारने के इरादे से हमला किया और बुरी तरह पीटा। कोतवाल तो अमित, गुफरान और मंत्री आदि लोगों का खास आदमी था ही, सो मुकदमा दर्ज हो गया। और रात में ही जागेन्द्र के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गयी। छापेमारी हुई। कुछ दिन बाद अमित ने भी जागेन्द्र व राजू पर हमला किया, इसमें जागेन्द्र के पैर का पंजा ही टूट गया। जागेन्द्र ने भी मुकदमा दर्ज कराया।
इसी बीच एक महिला ने मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ बलात्कार आदि के आरोप में मुकदमा दर्ज कराने की अर्जी दी, तो पुलिस ने उसे फाड़ कर फेंक दिया। जागेन्द्र ने इस महिला की मदद की और राममूर्ति और उसके चंन्द दोस्तों-साथियों के खिलाफ 28 मई-15 को सीधे अदालत में शिकायत दर्ज करायी। अदालत ने इस मामले को चार जून को सुनवाई की तारीख मुकर्रर की।
उसी दिन राममूर्ति वर्मा ने अपने आवास पर पत्रकार वार्ता में जागेन्द्र पर ब्लैकमेलर, गुण्डा आदि बताते हुए आरोप लगाया और उस महिला को नीच और बदचलन बताते हुए खुद को पाक-साफ बताया। पत्रकारों और अखबारों ने यह खबर को खूब छापी, लेकिन एक बार भी जागेन्द्र का पक्ष जानने की कोशिश नहीं की। बल्कि शाहजहांपुर के पत्रकारों ने हिन्दी पत्रकारिता दिवस के मौके पर अचानक एक बड़ा समारोह आयोजित किया और मंत्री राममूर्ति वर्मा को मुख्य अतिथि बनाया। इसमें कोतवाल, अमित भदौरिया और गुफरान आदि भी मौजूद थे।
अगले दिन शाम सात बजे जागेन्द्र जब अपने खुटार स्थित आवास पर था, एक फोन आया कि मंत्री ने बातचीत के लिए बुलाया है। लेकिन जागेन्द्र उस वक्त नहीं गया, बल्कि अगले दिन सुबह सात बजे खुटार से शाहजहांपुर की ओर बस से रवाना हुआ और दोपहर बाद खबर आयी कि कोतवाल श्रीप्रकाश राय समेत कई पुलिसवालों और गुफरान आदि वांटेड अपराधियों ने जागेन्द्र को घर में घुस में जमकर पीटा और उसके बाद पेट्रोल डाल कर जागेन्द्र को जिन्दा फूंक डाला।
(लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर के एफबी वाल से)