फर्रुखाबाद:(दीपक शुक्ला) जैसे ही मै इतिहास बनी विसरातो के आंगन में पंहुचा अचानक एक आवाज आई| कहाँ घुसे आ रहे हो? मेरे कंडे फोड़ दिये| उधर कंहा जा रहे हो मेरी फसल खराब हो रही है| मैंने देखा कई व्यक्ति मेरी तरफ गौर देख रहे थे| विसरतो में उन्ही लोगो ने कब्ज़ा कर रखा था| हर तरफ कब्जा ही कब्जा कोई रोक टोंक नही| जब मैंने उससे पूंछा तो जबाब मिला की यह सब उसका ही तो है| किसी ने आस्था के नाम पर तो किसी ने लाठी के दम पर उसे अपने आगोश में ले रखा है| फ़िलहाल जनपद के जिलाधिकारी एनके एस चौहान के विकास कराने वाले तरीके व स्वभाव को देखते हुये इतिहास की इस इमारत के परतंत्र की जगह स्वतंत्र होने की कुछ उम्मीद जग गयी है| देखना यह है की प्रशासन और राजनीतिक दल में से कौन पहल करता है|
क्या है विसरातो का इतिहास
इस समय शहर क्षेत्र में विसरातों पर समाधि व जमीनी विवाद को लेकर शहर में काफी चर्चा है। उसका इतिहास बड़ा ही रोचक है। विसरातों में ढाई सौ वर्ष पूर्व बंदरगाह हुआ करता था और जहां से नील व देशी घी का व्यापार बड़े पैमाने पर फर्रुखाबाद से कलकत्ता के लिए होता था।
गंगा नदी के ठीक किनारे बनी विसरातें अपने आप में बहुत ही पुराना इतिहास समेटे हुए है। पुराने व्यापारी फर्रुखाबाद से पूर्व में यहां स्थित बंदरगाहों से देशी घी लादकर कलकत्ता ले जाया करते थे और वहां से नील इत्यादि लाकर फर्रुखाबाद में व्यापार करते थे। यह व्यापार बहुत ही बड़े पैमाने पर होता था। वक्त बदला तो बंदरगाह खत्म हो गया और तकरीबन 1867 में बंदरगाह को विसरातों में तब्दील कर दिया गया था। जहां एक भव्य गंगा मंदिर हुआ करता था। भक्त आकर स्नान के बाद गंगा मंदिर के दर्शन कर अपने आपको धन्य बनाते थे तो वहीं इसी सन में विसरातों में सती मठ, ठाकुर द्वारा व एक सांस्कृतिक पाठशाला भी स्थापित की गयी थी। जो उस समय कक्षा 10 तक की शिक्षा देती थी। स्थापित किये गये सती मठ का इतिहास भी अपने आप में रोमांचित कर देने वाला है।
राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र के राजा की पत्नी के अलावा सती सोली, सती भोली व मोलवा रानी व श्यामल बाबा आदि लोगों के नाम से विसरातों में चार मठ बने हुए हैं। जिसमें उक्त तीनो रानियां सती हुईं थीं वहीं श्यामल बाबा भी अपनी पत्नी की मौत के बाद खुद को मौत के गले लगा लिया था। शाह समाज के कुछ लोगों ने उनके सती स्थल से कुछ ईंटें लाकर यहां इन रानियों व श्यामल बाबा के नाम से चार मठ तैयार कर दिये। जहां आज भी शाह समाज के घर में आने वाली नव वधुयें अपने सुहाग की लम्बी कामना के लिए जाती हैं और नवजात शिशुओं के मुण्डन संस्कार भी यहीं कराये जाते हैं लेकिन इसमें भी एक रोमांचित कर देने वाली बात है। शाह समाज की लड़कियां चारो मठ में से एक मठ के पास तक नहीं जातीं। जिस मठ का नाम रानी मठ है। मान्यता है कि अपने पति की मौत के बाद मारबाड़ की रानी अपनी पुत्री को लेकर सती हो गयी थी। तब से युवतियों को उनके मठ से दूर ही रखा जाता है।
सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद आज यह ऐतिहासिक धरोहरें अब विलय की कगार पर पहुंच चुकी हैं। गंगा मंदिर हो या ठाकुर द्वारा, सांस्कृतिक पाठशाला हो या सती मठ हर धरोहर आज गुमशुदगी की कगार पर पहुंचने को तैयार खड़ी है। पुरातत्व विभाग की नजर अभी तक यहां पर नहीं पड़ी है। इस ऐतिहासिक इमारतों में न जाने और भी कितनी संस्कृति छिपी है। ज्यादातर जगहों पर दबंगों ने कब्जा कर लिया है।