हो लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन,दमा दम मस्त कलंदर

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jhulelala1फर्रुखाबाद: झुलेलाल जयंती (चेटीचंड महोत्सव) पर रविवार को जनपद के सभी 102 सिंधी परिवारो ने सुबह से पूजा पाठ व भजन व हवन का कार्यक्रम आयोजित किया| .जिसके बाद झुलेलाल की शोभायात्रा निकली गयी| समाज के लोगो ने एक सभा का आयोजन किया| जिसमे जिले के आला अधिकारी पंहुचे| शोभायात्रा का रास्ते में विभिन्न समाजसेवी संगठनो व श्रधालुओ दवारा स्वागत किया गया| समाज के लोगो ने आने वाली योजनाओ व समाज के विकास पर मंथन किया जायेगा. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पुलिस अधीक्षक ने सभी को सम्बोधित किया|
जुलुस के दौरान सिंधी समाज के लोगाें की डांडिया नृत्य और आयो लाल झूले लाल के जयकारे ने माहौल भक्तिमय बना दिया। इस मौके पर पर भजन-कीर्तन और सत्संग किया गया। जिसके बाद जुलुस सिंघी कालोनी में एक सभा में तब्दील हो गया| जिसमे पुलिस अधीक्षक विजय यादव ने कहा इस समाज को संस्कारो के लिए जाना जाता है| समाज ने उद्योगो के मामले में काफी प्रगति की है| उन्होंने कहा समाज में गलत संसाधनो का प्रयोग करके विकास नही किया जा सकता|
अपर जिलाधिकारी मनोज सिंघल ने कहा की इस समाज ने जिस तरह से ईमानदारी के साथ अपने को विकास के मार्ग पर दौड़ाया है उसकी जितनी तारीफ की जाये कम है| पूर्व विधायक उर्मिला राजपूतने भी अपने विचार रखे| एसपी, एडीएम, सीओ वाई पी सिंह, कोतवाल राजेश्वर सिंह यादव को भी सम्मानित किया गया| इस दौरान आत्माराम डबानी अध्यक्ष, ईश्वर दास, उपेन्द्र अरोरा, हरवंस लाल भाटिया, मुरलीधर, बेबू, ओमप्रकाश, अनिल, जयकिशन, अरुण प्रकाश ददुआ, संजीव मिश्रा, निमिष टंडन, संजय गर्ग आदि मौजद रहे|
संत झुलेलाल के बारे में
संत झुलेलालसंत झुलेलाल का जन्म सिंध में 1007 इसवी में हुआ था |वे नसरपुर के रतनचंद लोहालो और माता देवकी के घर जन्मे थे , मान्यता यह है की वे वरुण के अवतार थे | उस समय सिंध पर मिर्कशाह नाम का मुस्लिम राजा राज कर रहा था जिसने यह हुक्म दिया था हिन्दुओ को की मरो या इस्लाम काबुल कर लो | तब सिंध के हिंदुओ ने 40 दिनों तक उपवास रखा और इश्वर से प्राथना की ,इसीलिए वरुण देव झुलेलाल के रूप में अवतरित हुए | संत झुलेलाल ने गुरु गोरखनाथ से ‘अलख निरंजन ‘ गुरु मन्त्र प्राप्त किया | जब मिर्कशाह ने संत झुलेलाल के बारे में सुना तो उसने उन्हें अपने पास बुलवाया , उस समय संत झुलेलाल 13 वर्ष के ही थे |मिर्कशाह के सामने आने पर मिर्कशाह ने उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया पर तभी मिर्कशाह का महल आग की लपटों से घिर गया , तब मिर्कशाह को अपनी गलती कहा एहसास हुआ और उसने संत झुलेलाल से क्षमा मांगी ,इसके बाद पास ही के गाँव थिजाहर में 13 वर्ष की आयु में संत झुलेलाल ने समाधी ले ली