प्रधान बनने के बाद भी भीख से गुजारा

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बदायूं|| भीख मांगकर परिवार का गुजारा करने वाले उत्तर प्रदेश के नारायण नट भले ही ग्राम प्रधान चुन लिए गए हों, लेकिन वह सरपंच होने के बाद भी अपना यह पारिवारिक व्यवसाय नहीं छोड़ेंगे।

बदायूं जिले के निवासी नारायण नट (60) हाल ही में हुए ग्राम पंचायत के चुनावों में ग्यारह उम्मीदवारों को मात देते हुए सहावर गांव के सरपंच बने। नारायण कहते हैं कि भीख मांगना हमारा पारिवारिक व्यवसाय है..हम कई पीढ़ियों से भीख मांगकर ही अपने परिवार का गुजारा करते आ रहे हैं। ऐसे में हम कैसे इसे छोड़ सकते हैं। ऊपर वाले की कृपा से स्थानीय लोगों द्वारा भीख के रूप में दिए जाने वाल पैसों से हमारी दाल रोटी चल जाती है।

नारायण बताते हैं कि सरपंच के तौर पर मुझे हर माह पंद्रह सौ रुपये की निश्चित रकम मिलेगी और विकास योजनाओं को पूरा कराने पर कुछ भत्ता भी मिलेगा, लेकिन मैं ग्राम प्रधान के तौर मिलने वाली यह सारी रकम और भत्ता गांव के विकास में ही खर्च करूंगा। नारायण के अलावा उनकी पत्नी और आठ बच्चे भी भीख मांगते हैं।

नारायण के ग्राम प्रधान बनने के पीछे दिलचस्प कहानी है। स्थानीय बादाम सिंह कहते हैं कि पूर्व प्रधानों द्वारा गांव के विकास के लिए खास ध्यान न दिए जाने के कारण ज्यादातर लोगों ने नारायण को प्रधान पद के लिए नामांकन भरवाने का फैसला किया।

सिंह कहते हैं कि वैसे तो 11 प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन उनमें से कोई हमें उपयुक्त नहीं लगा। नारायण का गांव में सभी से व्यवहार अच्छा था और वह ग्रामीणों के सुख-दुख में हरसंभव मदद करता था। इसी के चलते हम सभी ने उसे ग्राम प्रधान बनाने का निर्णय लिया।

ग्रामीणों से मिले चंदे से नारायण का पर्चा दाखिल कराया और प्रचार की सारी जिम्मेदारी संभाली। नारायण का चुनाव में जेब से एक पैसा नहीं खर्च हुआ। ग्राम प्रधान चुने जाने के बाद किस तरह से जनता की सेवा और गांव के विकास की जिम्मेदारियों का वहन करेंगे इस पर नारायण कहते हैं कि मुझे फिलहाल ग्राम प्रधान के कामकाज के बारे में बहुत ज्यादा नहीं पता है..केवल इतनी जानता हूं कि गांव का विकास कराना उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है। वह कहते हैं कि मैं ग्रामीणों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मुझे चुनकर इतना सम्मान दिया है।