फर्रुखाबाद एटा मैनपुरी और तमंचा जैसे एक दूसरे की पहचान रह चुके है| जबसे समाजवादी पार्टी की सरकार आई है तमंचा खबरों से गायब होकर सोशल मीडिया पर ही दिख रहा है| क्या सारे तमंचे सपाइयों के पास ही है जो एक भी पकड़ा नहीं जा रहा है| खबरों में भी तमंचो का टोटा होता जा रहा है| वर्ना दो साल पहले ऐसे हालात नहीं थे| फर्रुखाबाद के 14 थानो में से शायद ही कोई दिन रहा हो जब किसी न किसी थाने से दफा 25 में एक आधा तमंचा सील होकर अपनी फोटो न छपवाता रहा हो| मगर अब तमंचे में वो बात कहा रही| अब तो तमंचे की जगह पर तमंचे पर डिस्को के गाने पर लाठिया जरूर चलने की खबर पढ़ने को मिलती है|
तीन दिन पहले की ही बात है| राम बरात में तमंचे चलने की खबर आई| कई राउंड गोली की आवाजे भी लोगो ने सुनी| मगर अगले दो दिन तक इन्तजार करने के बाद भी दफा 25 की खबर नहीं आई| हां ये जरूर एक खबरी ने बताया कि जितने भी तमंचे पकडे गए थे वे सब पुलिस वालो ने रख लिए और एवज में 4000 रुपये चौकी इंचार्ज इस बात के जरूर वसूल लिए कि चालान नहीं करेंगे| खैर पुलिस वाले भी क्या करे| सरकारी रायफल से तो शादी बरात में धाँय धाँय कर नहीं सकते अलबत्ता तमंचे से ये अरमान पूरे जरूर कर लेते है| वैसे किसी को अंदर करवाना हो तो मय तमंचे के अंदर करवाने के 5000 से 10000 खर्च करिये और तमंचे का इंतजाम खुद पुलिस वाले करेंगे ऐसा पुलिस के इर्द गिर्द घूमने वाले दलाल बताते है|
तो तमंचे का इतिहास भी सबसे पुराना है| मिसाइल के दौर में तमंचे भुला देना एक ऐतिहासिक शस्त्र के साथ बलात्कार से काम नहीं होगा| कम ही लोगो ने सोचा होगा कि सबसे पहले तमंचे से गोली चली थी| तमंचा अंग्रेजो की देन है| वे ही इस दूर से घायल करने वाले हथियार को इंग्लैंड से लाये थे| वहां इसे इंजीनयरो ने बनाया था हमारे हिन्दुस्तान में लुहारों ने इसकी नक़ल कर अद्धियाँ, दोनाली, पचफैरा से लेकर हर बोर के बना डाले| ऐसे ऐसे तमंचे बने जिसमे हर बोर का कारतूस चल जाता था| और इसके टॉप कारीगर फर्रुखाबाद में हुआ करते थे| दिल्ली, मुंबई, हरियाणा पंजाब से लेकर करश्मीर तक फ़र्रुखाबादी तमंचो की डिमांड थी| फर्रुखाबाद में तबादले पर आने वाले पूरे प्रदेश के पुलिस बल के लोग फर्रुखाबाद तमंचा छुट्टी में जरूर घर ले जाते थे| मगर अब तो न कारीगर रहे और न ही तो तमंचो के कदरदान| अब तो जमाना सोशल मीडिया का है शब्दों के ऐसे साइज़ गोले दागते है कि विरोधी/दुश्मन को अगले दिन प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी जान बचानी पड़ती है| जिनके पास लाइसेंसी है वे भी आजकल सोशल मीडिया पर अपने तमंचो और हथियारों के फोटो डाल रहे है| वैसे तो कोई डरता नहीं ऐसे ही डर जाए|
खैर तमंचो की बात करे तो पुलिस और तमंचो की पुरानी दोस्ती है| तिराहे चौराहे पर चेकिंग करते पुलिस कर्मी अक्सर तलाशी लेते समय कमर को चारो ओर से सहलाते हुए तमंचे तलाश करते है| लगभग हर लाइसेंसी असलहाधारी तमंचा रखता है| जरुरत पड़ने पर बन्दूक की जगह तमंचा काम करता है और 302 के केस में लाइसेंसी हथियार से फायर होने की बैलेस्टिक रिपोर्ट कम ही पास होती मिलती है|
वैसे तमंचा भी कम कमीना नहीं हो गया है| जब भी पुलिस हथियारों की फैक्ट्री पकड़ती है, पुराने जंग लगी हुई नाले, पकड़, हथौड़ी, दो चार पेंचकस के अलावा टूटे हुए तमंचो के स्पेयर पार्ट्स ही बरामद होते है| कभी चमचमाता हुआ तमंचा पुलिस की पकड़ में अपनी फोटो नहीं खिचवाता| मेज पर ये सब सामान सजाया जाता था, अखबार और टीवी वाले आमंत्रित किये जाते थे| दूसरी मेज पर चाय नाश्ता, मिठाई और कई प्रकार की नमकीन थाने का इंचार्ज इंतजाम करता था| मीडिया के भाई लोग पहले खाने की मेज पर अपना डेरा जमाते और डकार लेने के बाद आवाज लगाते| दरोगाजी जरा मेज के पीछे खड़े हो जाइएये| पुलिस वाले चौड़े होकर तमंचे के कबाड़ से लड़ी मेज के पीछे खड़े होकर दो कबाड़ी से रात भर के पिटे भिखारियों की शक्ल वाले लोगो को शातिर बदमाश बताकर उनके साथ फोटो सेशन कराते और सुबह अपनी खटिया पर पड़े पड़े ही परमवीर चक्र वाली फोटो देखने के चक्कर आवाज लगाते- पहरा अखबार नहीं आया क्या…….
मगर इतने सालो के बाद भी आज तक एक बात समझ में नहीं आई कि पुलिस जब तमंचा बरामद कर लेती थी तो वो तमंचा आया कहा से ये कभी नहीं बताती| हाँ देर शाम शुरुर में होने के बाद कुछ खास खाकी के दोस्त बताते थे कि इतने तमंचे, कच्ची दारु और सफ़ेद पाउडर तो थाने में ही मौजूद रहता है कि एक आध दर्जन को अंदर किया जा सके| इंग्लैंड से चलकर हिन्दुस्तान आया तमंचा अब मुम्बईया फिल्मो में धूम मचा रहा है मगर फर्रुखाबाद में तमंचो के पकडे जाने की कम होती खबरों से मीडिया जगत में तमंचो की खबरों का टोटा पड़ा हुआ है| आखिर ये तमंचे है किसके पास?
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