लखनऊ: निठारी कांड का दोषी सुरेंद्र कोली मौत से बस चंद कदम दूर है। हालांकि कोली को इसकी फिक्र नहीं। चेहरे पर कोई शिकन नहीं। पश्चाताप भी नहीं। जुर्म भी नकार रहा है।
बेहतर हिंदी में तर्क के साथ बात करता है। सवालों का धैर्य के साथ जवाब देता है। पछतावा जैसी अनुभूति को हर कदम पर खारिज किया। घिरने पर कई बार आक्रामक हो जाता है। मिलने वाले हैरान हैं।
फांसी की दहशत से जेल में सन्नाटे की भयावह गूंज है, जिसे कोली अनसुना कर मजे से अंतिम क्षणों का इंतजार कर रहा है। मौत की दहलीज पर खड़े लोगों की मनोदशा पर दुनियाभर में शोध हुए हैं।
क्रूर से क्रूर व्यक्ति भी अंतिम क्षणों में अपने कृत्यों का हिसाब करते हुए पछताता है। सुबकता है और निराशा में धार्मिकता की शरण लेता है। सुरेंद्र कोली की वर्तमान मनोदशा कई मिथकों को खारिज करती है।
वह पुलिस अधिकारियों से अपनी फांसी की प्रक्रिया समझता है। कुरेदने पर वह अपने पीछे षड्यंत्रों का रहस्यमयी जाल का दावा करता है। हालांकि ब्रेन मैपिंग और नार्को टेस्ट में कोली अपने गुनाहों को कुबूल चुका है।
कृत्य का कोई पछतावा नहीं
मनोविश्लेषकों की राय में सुरेंद्र कोली का यह व्यवहार विशेष किस्म के मनोविकारों की उपज है। एंटी सोशल पर्सनालिटी डिसआर्डर के पर्याप्त लक्षण हैं। इसमें मरीज को अपने कृत्य का कोई पछतावा नहीं होता।
देखने में शांत और गुम रहने वाला व्यक्ति ऐसे अवसरों पर भयावह रूप से आक्रामक हो सकता है। वह मौत की भयंकरता का बोध खो देता है।
पुनर्जन्म पर शोध कर रहे मोनॉड विवि, हापुड़ के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियांक भारती और गरिमा त्यागी का कहना है कि मौत की खबर सुनकर हार्मोनल चेंज तेजी से होता है।
इस व्यक्ति में भी शर्तिया तौर पर कई बदलाव होंगे। शोध में साबित हुआ है कि मौत के नजदीक पहुंच रहे मरीजों में से ज्यादातर ने 24 घंटे पूर्व अपनी मरने की प्रक्रिया सपने में देखी।
हालांकि डरने की अवस्था में व्यक्ति में इपीनीफ्रिन और नान इपीनीफ्रीन हामरेस उर्त्सर्जित होते हैं, किंतु सुरेंद्र कोली में भय का कोई लक्षण अब तक नहीं उभरा है।
जेल के चिकित्सक ने भी स्वास्थ्य की जांच की। सुरेंद्र कोली शारीरिक एवं मानसिक रूप से दुरुस्त है। माना जा रहा है कि उसमें मेलोटोनिन नामक हार्मोस का स्तर गिरने से नींद नहीं आ रही।
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