मतदान से पहले जनमत जानना बेकार है। विज्ञापन ऐसा ताक़तवर माहौल रच देता है कि कमज़ोर मज़बूत को देख कर बोलने लगता है। सब वही बोल रहे हैं जो सब सुनना चाहते हैं। इतने शोर शराबे के बीच एक भयानक खामोशी सिकुड़ी हुई है| या तो वो मुखर आवाज़ के साथ है या नहीं है लेकिन कौन जान सकता है। क्यों लोग अकेले में ज़्यादा बात करते हैं। चलते चलते कान में कुछ कहते हैं। धीरे धीरे यह नफ़ासत दूसरे लोग भी सीखने लगे हैं। अब मतदान केंद्र पर बूथ लूटना नहीं होता। वो उसके मोहल्ले में ही लूट लिया जाता है। टीवी को भी एक लठैत ही समझिये। इसके विज्ञापन और खबरों से बने माहौल से इतर होता है मतदान का माहौल|
दूर दराज गावो में पंहुचा तो माहौल अजीब सा था| एक गाव में घुसते ही एक प्रधानजी ने झटपट अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया| ये जानकर कि जेएनआई से हूँ, उनकी इच्छा घर ले जाकर चाय पिलाने की प्रबल हो चली| पांच साल टीवी मीडिया की दुनिया छोड़कर माइक्रो जर्नलिज्म करने का ये फायदा जरुर मिला| मोबाइल के जरिये गाव गाव पहुच गया| प्रधानजी पुराने जान पहचान के है| आजकल सत्ता की मुरली बजा रहे है| पिछले प्रधानी के चुनाव में पहली बार चुनाव जीते है| दो नए कमरे पक्के बनबा लिए है| हालाँकि बातचीत में बताया कि खेती अभी भी 12 बीघा ही है| एक बात छिपा गए कि ग्राम समाज की पट्टे की 43 बीघा जमीन दूसरे का पट्टा निरस्त करके अब उनकी हो गयी है| नरेगा के एक मामले में कुछ मामला फस गया तो सत्ता के साथ हो लिए| सब कुछ सीख गए| अब इस लोकसभा के चुनाव में क्या कर रहे हो, किसे जिता रहे हो- सवाल सीधा दागा था| खुल कर प्रधानजी साइकिल चलाने लगे| पूछा कि कुछ फायदा है इस सरकार से तो साफ़ जबाब दे दिया भई देखो पानी में रहकर मगर से बैर नहीं कर सकते| उनकी बेचारगी समझ सकता था| चाय के साथ क्रीम वाले बिस्किट और तले हुए काजू गाव के प्रधानजी के यहाँ ही मिल सकते है| पिछड़े वर्ग के लोगो को आगे आने का मौका है|
सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ उसका फायदा भी हुआ| रिजर्वेशन से गरीब शोषित समाज के लोगो भी सत्ता में भागीदारी मिली| मगर जिन्हें भागीदारी मिली वे ही केवल आगे बढ़े| आम आदमी हर वर्ग में एक जैसा ही है| प्रधान जी की चाय पीकर सोचा कुछ गाव में बतिया लू, तो प्रधान साथ लग लिए| यहीं पर अपना दिमाग ठनक गया| मैंने कहा कि प्रधान जी मै गाव का माहौल जानने के लिए आपको साथ नहीं ले सकता| तो चिरौरी पर उतर आये| बोले यहाँ सब लोग एक ही बटन दबायेंगे| आप बेकार अंदर जायेंगे| मैंने कहा कि ठीक है फिर भी मै लोगो का हालचाल ले लू| शायद उन्हें अपने काल्पनिक आवरण के माहौल के प्रतिकूल परिणाम आने का डर था| उनके हलके अनुरोधात्म्क विरोध के बाबजूद मैं गाव में घूमा|
[bannergarden id=”8″] [bannergarden id=”11″]
जब दो चार घर के लोग इकट्ठे हो तो अलग बात करे और वही जब अलग अलग हो जाए तो अलग बात करे| कुछ भी हो मोदी खूब गुजरात से निकल कर गाव-गाव में पहुचे है| एक आदमी से पूछो तो पूरे मुहल्ले का माहौल बता देता है- “यहाँ सब मोदी की लहर है”| दूसरे से पूछो तो “हर जगह साइकिल चल रही है”| मगर इन्ही के बीच हाथी वाली बहिन जी का भी वोट है और कैंची वाले सचिन यादव का भी| कांग्रेस वाले वोटरों का गाव नहीं था| जी हां यही लोकतंत्र है यहाँ फलां चुनाव चिन्ह वाले वोटरों के गाव और मोहल्ले होते है|
गाव वाले विकास चाहते है| मगर उनमे से ज्यादातर नहीं जानते कि कौन सा विकास किस प्रकार की संस्था को करना होता है| ग्राम पंचायत से लेकर संसद के काम के बटवारे की खूब समझ नहीं है अभी| अरविन्द केजरीवाल को टीवी में भगोड़ा दिखाया जाने लगा तो गाव वाले भी कहने लगे| भगोड़ा क्यों बना इस पर कोई स्पष्ठ्ता नहीं| कम ही घरो पर झंडे लगे दिखाई पड़े| बच्चो को इस बार बिल्ला देने भी कोई नहीं आया| गाव में कई दरवाजो पर सचिन की कैंची, सपा की साइकिल और भाजपा का फूल वाला स्टीकर जरूर लगे मिले| कुछ जबरदस्ती लगाये गए थे, वे अधनुचे अवशेषों के साथ करुण रुद्रन से दिखाई पड़ रहे थे| एक जगह बातचीत चल रही थी कुछ युवा मोबाइल से फोटो खीचने लगे| एक बोला सर आप मेरी फेसबुक के फ्रेंड है| मौका देखकर उसका मोबाइल देखा एंड्राइड रखने लगे है गाव में| उनको whatsup चलाना आता है| झट से इस एप्लीकेशन पर अपनी शेरिंग कराई और अपने लिए उस गाव में तीन चार रिपोर्टर तैयार कर लिए| बोल कर आया कि गाव में कोई आये तो वीडियो बनाओ, फोटो खींचो, झटपट भेजो और पत्रकार बन जाओ| वैसे गावो में मेरे पत्रकार भी आज कल किसी न किसी पार्टी को चुनाव लड़ा रहे है| इसलिए सतर्क रहना पड़ता है| वर्ना चुनाव के बाद यही टीम निगहबानी का अच्छा काम करती है|
ऐसे ही दो तीन गाव घूमने के बाद भी कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाया| विज्ञापन ऐसा ताक़तवर माहौल रच देता है कि कमज़ोर मज़बूत को देख कर बोलने लगता है। सब वही बोल रहे हैं जो सब सुनना चाहते हैं। इतने शोर शराबे के बीच एक भयानक खामोशी सिकुड़ी हुई है| या तो वो मुखर आवाज़ के साथ है या नहीं है लेकिन कौन जान सकता है। क्यों लोग अकेले में ज़्यादा बात करते हैं। चलते चलते कान में कुछ कहते हैं। धीरे धीरे यह नफ़ासत दूसरे लोग भी सीखने लगे हैं। अब मतदान केंद्र पर बूथ लूटना नहीं होता। वो उसके मोहल्ले में ही लूट लिया जाता है। टीवी को भी एक लठैत ही समझिये। इसके विज्ञापन और खबरों से बने माहौल से इतर होता है मतदान का माहौल|