फर्रुखाबाद: प्रदेश के आला अधिकारी जल्द ही गांवों की खाक छानते नज़र आएंगे। अखिलेश सरकार ने अपने विकास एजेंडे की जमीनी हकीकत का पता लगाने के लिए सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों को फील्ड में भेजने का फैला किया है। ये अफसर गांवों में जाकर पता लगाएंगे कि विकास कार्यों का क्रियान्वयन कितने प्रभावी ढंग से हो रहा है।
खास बात ये है कि गांवों में अफसरों का यह दौरा हवाई नहीं होगा। यानी उन्हें किसी गांव में एक रात रुककर लोगों की समस्याएं सुननी होंगी तथा उनसे सरकारी योजनाओं के बारे में फीडबैक लेना होगा। फील्ड में जाने वाले अधिकारी विकास कार्यों और कानून व्यवस्था पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेंगे। इसके आधार पर सरकार आगे की कार्ययोजना तैयार करेगी।
सीएम के निर्देश पर अमल करते हुए अफसरों ने इस बारे में पूर्ववर्ती मायावती सरकार के मॉड्यूल की तहकीकात शुरू कर दी है। माया सरकार में अफसरों को ऐसे दौरे करने पड़े थे।
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जल्द ही पूरी योजना मुख्यमंत्री के सामने रखी जाएगी। मुख्यमंत्री की हरी झंडी मिलने के बाद अधिकारियों को नामित करके जिलों में भेजा जाएगा। सरकारी योजनाओं का लाभ नीचे तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकार ने विकास एजेंडा तय कर उस पर अमल तो शुरू कर दिया, लेकिन सही फीडबैक नहीं मिल पा रहा है।
सरकारी तंत्र जो सूचनाएं भेज रहा है, सरकार को उसी पर भरोसा करना पड़ रहा है। योजनाओं की वास्तविक सूचनाएं जुटाने के लिए सरकार आला अधिकारियों को जिलेवार जिम्मेदारी सौंपकर सीधे गांवों से फीडबैक लेने की कवायद में जुटी है, ताकि जहां कमियां हों, उन्हें दूर कराया जा सके।
हाल में, तहसील दिवस की शिकायतों की समीक्षा के दौरान अफसरों की लापरवाही सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने निगरानी तंत्र और मजबूत करने पर जोर दिया है। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने कुछ प्रमुख सचिवों से मंत्रणा करके पूर्व में लागू इस व्यवस्था की जानकारी ली।
पिछली सरकार में लागू सिस्टम को लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श चल रहा है और जल्द ही अफसरों के फील्ड दौरे का ‘ब्ल्यू प्रिंट’ मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री के समक्ष रखा जाएगा।
अगले महीने से इस पर अमल की तैयारी है ताकि लोकसभा चुनाव से पहले विकास एजेंडे पर अमल की वास्तविक तस्वीर से सरकार रू-ब-रू हो सके।
सूत्रों का कहना है, चूंकि अखिलेश सरकार ने कई नई योजनाएं शुरू कीं जिनमें पहले साल कोई खास प्रगति नहीं रही। इस साल इन योजनाओं को विकास एजेंडे में शामिल किया गया है, इसलिए अब अफसरों को भेजकर क्रियान्वयन की स्थिति का पता लगाने की योजना बनाई गई है।
तय प्रोफॉर्मा पर देनी होगी सूचना
फील्ड में जाकर योजनाओं का जायजा लेने वाले अफसरों को शासन की ओर से तय प्रोफॉर्मा पर अपनी रिपोर्ट देनी होगी। प्रोफॉर्मा में विकास एजेंडे के बिंदु शामिल होंगे।
इनमें संबंधित क्षेत्र के लिए निर्धारित लक्ष्य का उल्लेख होगा। दौरा करने वाले अधिकारी को रिपोर्ट में बताना होगा कि लक्ष्य के मुकाबले कितना काम हुआ है, काम की गुणवत्ता कैसी है, इससे कितने लोग लाभान्वित हो रहे है और क्या इसमें किसी तरह के सुधार की जरूरत है?
इन विभागों की योजनाओं पर होगा फोकस
अफसरों को खास तौर से उन योजनाओं को जांचना होगा जो विकास एजेंडे में शामिल हैं। इनमें कृषि, गन्ना विकास, दुग्ध विकास, पशुधन, किसानों को खाद-बीज वितरण, गेहूं-धान खरीद, बिजली आपूर्ति, प्राथमिक शिक्षा, मिड डे मील, स्वास्थ्य सेवाएं, डॉ. लोहिया समग्र ग्राम्य विकास योजना, ग्रामीण पेयजल योजना, ग्रामीण सड़क योजना, लोहिया ग्रामीण आवास योजना, सिंचाई की व्यवस्था, बेरोजगारी भत्ता, कन्या विद्याधन, पेंशन योजनाएं, लैपटॉप वितरण, राजस्व संबंधी मामले प्रमुख हैं।
माया सरकार में यह था निगरानी सिस्टम
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के निचले स्तर तक अमल व उसकी गुणवत्ता तय करने के लिए अलग-अलग सिस्टम बना कर कई बार अफसरों को जिलों में भेजा।
डीएम व कमिश्नर को जवाबदेह बनाकर उनसे रिपोर्ट ली गई फिर विभागीय मंत्रियों ने हर महीने बैठक शुरू की। इसके अलावा बहुत से प्रमुख सचिव दो-दो दिन के लिए तहसील दिवस, थाना दिवस का हाल जानने निकले।
इसमें एक रात में गांव में बितानी थी। बाद में मुख्यमंत्री सचिवालय के बड़े अफसर जमीनी हकीकत जानने के लिए भेजे गए। इन सबका फीडबैक लेने के बाद मुख्यमंत्री खुद दौरे पर निकलती थीं। सूत्रों का कहना है कि इसी में थोड़ा-बहुत फेरबदल करके निगरानी तंत्र तैयार करने की कवायद चल रही है।