दिल्ली: महाराष्ट्र में ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून’ लाने की कोशिशों में जुटे नरेंद्र दाभोलकर को दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से जो आखिरी धमकी दी गई थी उसमें कहा गया था ‘गांधी को याद करो: याद करो हमने उसके साथ क्या किया था’। दाभोलकर की अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति पिछले 14 सालों से इस बिल के लिए कैंपेनिंग कर रही है।
मंगलवार को अज्ञात हमलावरों ने सोशल ऐक्टिविस्ट नरेंद्र दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। समाचार एजेंसी पीटीआई ने पुलिस सूत्रों के हवाले से बताया कि दाभोलकर सुबह की सैर के लिए निकले थे कि तभी मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने उनके सिर पर करीब से गोलियां दाग दीं। उन्हें शहर के ओंकारेश्वर पुल पर घायल अवस्था में पाया गया। बाद में उन्होंने ससून अस्पताल में दम तोड़ दिया।
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दाभोलकर पिछले 40 सालों से अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून बनवाने के लिए प्रयासरत थे। 2005 में उनका यह विधेयक महाराष्ट्र विधान परिषद में पेश भी हुआ लेकिन इसे पुनर्विचार समिति के पास भेज दिया गया। बीते 8 सालों से यह वहीं अटका हुआ है।
जुलाई में टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए दाभोलकर ने कहा था, ‘मुझे 1983 से ऐसी धमकियां मिल रही हैं। मैं इनका आदी हूं। लेकिन मैं संविधान के दायरे में रहकर लड़ रहा हूं और जो लोग इस बिल के खिलाफ हैं वो जितनी बार चाहें इसपर चर्चा और बहस कर सकते हैं। इस बिल से डरने की जरूरत सिर्फ उन्हें है जो आम आदमी को बहकाते हैं। पिछले 6 सत्रों से यह बिल विधानसभा में पेंडिंग है। कुछ गुमराह ताकतें इसकी राह में रोड़ा अटका रही हैं और सरकार इस बिल को पास करने में हिचकिचा रही है।’
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दाभोलकर के परिवारवालों और दोस्तों ने बताया कि उन्हें अक्सर धमकियां मिलती रहती थीं और उनपर कई बार हथियारों और लाठियों से हमला भी किया गया। लेकिन उन्होंने पुलिस प्रोटेक्शन लेने से मना कर दिया। अब, उनके अनुयायियों और दोस्तों को इस बात का अफसोस है कि उन्होंने उन धमकियों को कभी गंभीरता से नहीं लिया।
वेटरन कम्युनिस्ट नेता गोविंदराव पंसारे ने कहा कि अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। उन्होंने कहा, ‘दाभोलकर की हत्या इस बात का संकेत है कि हमारे बीच कुछ ऐसे कट्टरपंथी और फासीवादी हैं जो हिंसा से सभी तर्कसंगत आवाजों को दबा देना चाहते हैं।’ दाभोलकर को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘वह एक बहादुर समाजसेवी थे जो उस खतरनाक रास्ते को बखूबी पहचानते थे जिसपर वह चल रहे थे। अंधविश्वास के जरिए सामाजिक-आर्थिक फायदे उठाने वाले लोगों के खिलाफ उनके द्वारा शुरू की गई यह लड़ाई जारी रहेगी और हम सब इस मुहिम को और मजबूत बनाएंगे।’
दाभोलकर पर इससे पहले हुए हमलों के बारे में बताते हुए अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकर्ता प्रदीप पाटिल ने बताया, ‘उनपर और जाने-माने अभिनेता श्रीराम लागू पर 1991 में सांगली के एक गुट ने लाठियां बरसाई थीं। 1994 पर सांगली में ही हथियार लेकर लोग उनपर टूट पड़े लेकिन दाभोलकर ने पुलिस कम्प्लेंट करने से मना कर दिया।’