लखनऊ: पति और पत्नी में किसी का व्यवहार भी यदि एक-दूसरे के प्रति इतना क्रूर हो जाए कि एक का दूसरे के साथ रहना मुश्किल हो तो उसे तलाक का हक है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। इस मामले में पति ने तलाक की अर्जी दाखिल की थी और हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय द्वारा अर्जी को मंजूर करने के फैसले को सही ठहराया था। कोर्ट ने पत्नी की ओर से दाखिल वैवाहिक संबंध बहाल करने की अर्जी भी खारिज कर दी थी।
इस मामले में पत्नी रुचिता श्रीवास्तव ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी और अपने पति विवेक स्वरूप को प्रतिवादी बनाया था। विवेक पीसीएस अधिकारी हैं और वर्तमान में नैनीताल में उत्तराखंड एकेडेमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन में कार्यरत हैं। याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एचएल गोखले और न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर ने हाईकोर्ट के फैसले को जायज ठहराया और कहा कि इसमें हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं बनता।
वाद के तथ्यों के अनुसार इलाहाबाद के ममफोर्डगंज निवासी विवेक स्वरूप का विवाह अल्लापुर की रुचिता श्रीवास्तव से 12 फरवरी, 2007 में हुआ था। विवेक उस समय हरिद्वार में सीनियर ट्रेजरी ऑफिसर के पद पर तैनात थे। शादी के छह माह बाद ही पति-पत्नी के संबंधों में इस कदर दरार आ गई कि रुचिता ने विवेक व उनके परिवार वालों के खिलाफ 27 जुलाई, 2007 को दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया। इसके बाद विवेक ने चार अक्टूबर को परिवार न्यायालय में तलाक का मुकदमा दायर किया जो मार्च 2010 में उनके पक्ष में निर्णीत हुआ। रुचिता ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने सुनवाई में यह पाया कि पति विवेक स्वरूप मानसिक क्रूरता का शिकार हुआ है। अदालत ने मानसिक क्रूरता की व्याख्या भी की और कहा कि यदि एक पक्ष को मानसिक तौर पर पीड़ा, घृणापूर्ण व्यवहार और इतनी बेरुखी का सामना करना पड़ता है कि उसका दूसरे के साथ रहना मुश्किल हो जाए तो इसे मानसिक क्रूरता कहा जाएगा। अदालत ने इस प्रकरण को इसी परिधि में पाया जिसमें विवेक को दहेज उत्पीड़न के मुकदमे का सामना करना पड़ा, जेल जाना पड़ा और वह नौकरी से निलंबित किया गया। पत्नी की ओर से उच्चाधिकारियों को पत्र लिखना भी इसी परिधि में पाया। अदालत ने इन तथ्यों के आधार पर परिवार न्यायालय के इस फैसले को सही करार दिया था कि पति मानसिक क्रूरता का शिकार हुआ है। कोर्ट ने विवेक स्वरूप को यह भी निर्देशित किया था कि वह रुचिता को स्थायी भरण-पोषण के तौर पर साढ़े सात लाख रुपये अदा करे।