फर्रुखाबाद: मुख्यमंत्री गत 25 मई को जनपद में लैपटॉप वितरण कर गए| जाते जाते कमिश्नर को निपटा गए| जिला विद्यालय निरीक्षक को निलम्बित कर गए| और डीएम और माध्यमिक शिक्षा सचिव को चेतावनी दे गए| चार दिन बाद भी जिले के सरकारी अधिकारिओ, राजस्व कर्मचारियो और शिक्षको में एक अजीब सा सन्नाटा है| चाहे कोई भी जाँच हो रही हो या नहीं| रह रह कर “अखबारों में जाँच होगी/हो रही” की छप रही खबरे सबकी धडकने बढ़ा देती है| अधिकारी और कर्मचारी अपनी अपनी गलती पर जबाब क्या देना है, तैयार किये बैठे है|
मगर असल में हुआ क्या था? कैसे गड़बड़ी हुई? और क्या क्या गड़बड़ी हुई? जाँच शुरू कैसे हो और क्या क्या देखा परखा जाए इसके लिए ज्यादा कुछ करने की जरुरत नहीं सिर्फ लैपटॉप वितरण की फिल्म फ़्लैश बैक में चलाने की जरुरत है| देखिये और समझिये क्या हुआ था उस दिन-
लैपटॉप वितरण होने की सम्भावना का पत्र कई सप्ताह पहले जिला प्रशासन को आ गया था| कई अधिकारी लखनऊ ट्रेनिंग लेने भी गए थे| इसी के साथ लिखित वितरण व्यवस्था नियमावली और ड्राइंग तक आई थी| जिला प्रशासन को सिर्फ भेजे गए आदेशो का अनुपालन करना और करना था| कोई योजना खुद नहीं बनानी थी| इसके बाबजूद व्यवस्था गड़बड़ा गयी| तो मतलब साफ़ है कि हमेशा की तरह सरकार के अन्य आदेशो की तरह इन आदेशो को भी बड़े ही सहज और हलके में लिया गया| अन्य आदेश जनमानस के हित के लिए होते है इसलिए उनकी उपेक्षा तो चल जाती है मगर इस बार का आदेश सरकार के मुखिया के कार्यक्रम के लिए था इसलिए अवहेलना का करारा जबाब मिल ही गया| तो क्रम से चलते है और आम जनता को भी बताते है कि क्या क्या आदेश थे और चित्रवार बताते है कि कैसे अवहेलना हुई थी|
सर्वप्रथम लखनऊ से भेजे गए दिशा निर्देशों के क्रम में जिलाधिकारी कार्यालय द्वारा एक दिशानिर्देशो का पत्र और लैपटॉप वितरण के पंडाल में लगे कर्मचारियो और अधिकारिओ की ड्यूटी का चार्ट सभी कर्मचारियो और अधिकारिओ को उपलब्ध कराया गया| इसमें कोई छूटा नहीं था जो यह कह सके कि उसे नहीं मालूम था| पढ़िये और देखिये उस सरकारी चिट्ठी का पहला भाग-
इस के अनुसार लैपटॉप तो बच्चो को मुख्यमंत्री के आने से पहले ही बट जाने चाहिए थे| पंक्ति (एक लाइन में बैठे बच्चे) प्रभारी जो अधिकतर लेखपाल थे का काम छात्र का क्रमांक एवं लैपटॉप का नंबर सीट पर चस्पा करेंगे (एक पर्ची जो सीट पर चिपकाई गयी थी) और लैपटॉप बच्चो के आने से पहले ही लाभार्थी के निर्धारित क्रमांक के अनुसार सीट पर रखवायेंगे| पंक्ति प्रभारी का काम यह भी देखना था कि कोई लाभार्थी डबल लैपटॉप न जाने पाए| और जो लाभार्थी अनुपस्थित रहे उसका लैपटॉप उसकी सीट पर ही रखा रहे और कार्यक्रम के बाद बचे हुए लैपटॉप ब्लाक प्रभारी को सौपना होगा|
मगर अफ़सोस कि ऐसा हुआ नहीं| पंक्ति प्रभारी अपने काम और अपनी ड्यूटी नहीं निभा पाए| जैसा की आमतौर पर देखा जाता है कि ड्यूटी के प्रति गैरजिम्मेदार होना फितरत हो चली है और झेलने वाला आम आदमी होता है और इसीलिए अफसर भी आम आदमी को धिक्कारता और अपने मुलजिमो बचाता है| मगर जब बात खुद पर बन आये तो क्या होगा ये देखने वाली बात होगी| जेएनआई की वो तस्वीरे जो मुख्यमंत्री के कार्यक्रम से पहले 8 बजे से 10 बजे के बीच ली गयी है खुद बताती है कि मुख्यमंत्री के आने से पहले बच्चो के हाथो में लैपटॉप नहीं पसीना पोछने वाला रुमाल था और उनकी झोली खाली थी और सरकारी कर्मचारी अधिकारी इधर उधर टहल रहे थे या बतिया रहे थे| देखिये तस्वीरे-
तो ऊपर की तस्वीरो में आपने देखा कि किस तरह पंडाल में बच्चे बिना लैपटॉप के बैठे है और पंक्ति प्रभारी लाभार्थियो को लैपटॉप देने की जगह गप्पे मरने में जुटे है| अब सवाल उठता है कि क्या केवल पंक्ति प्रभारी ही जिम्मेदार है| या फिर ब्लाक प्रभारी भी जिनकी जिम्मेदारी पूरे कार्यक्रम को निपटाने की थी| यही नहीं लैपटॉप प्रभारी जो लगभग सभी अफसर थे वे अपने अधिनस्थो से काम कराने में नाकाम रहे या उन्होंने भी जिलाधिकारी के आदेश को रद्दी समझ केवल डायरी में रखना या अपने बाबू को सौप दिया था| ऐसा ही जनता की शिकायत मिलने पर अधिकारी करते है| खुद कोई फैसला नहीं लेने की आदत जो छूट गयी है| ऐसा हम नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल कई बार कहते नजर आते है| तो अंतिम तस्वीर जो नीचे दे रहे देख लिए कि अफसरों की क्या जिम्मेदारी थी और बेचारे शिक्षक तो केवल हेल्पर थे| जिलाधिकारी का ख़त यह कहता है कि जिम्मेदारी पंक्ति प्रभारी, लैपटॉप प्रभारी और ब्लाक प्रभारी की थी| देखिये उस आदेश का पैरा-