नई दिल्ली। नेशनल ऑडिटर कैग ने अपनी रिपोर्ट में यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा में फर्जीवाड़े की पोल खोली है। संसद में मंगलवार को पेश रिपोर्ट के मुताबिक, करीब सभी राज्यों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के क्रियान्वयन में भारी अनियमितताएं बरती गईं हैं।
मनरेगा के फंड का इस्तेमाल उन कामों के लिए किया गया, जो इसके दायरे में नहीं आते हैं। दायरे से बाहर के कामों में जमकर रकम झोंकी गई है। कैग के मुताबिक, मनरेगा के 13,000 करोड़ रुपये की बंदरबांट हुई है। मनरेगा का लाभ भी उचित लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। इस रिपोर्ट के खुलासे के बाद यूपीए सरकार शर्मनाक स्थिति में आ गई है।
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कैग ने 14 राज्यों में ऑडिट के दौरान पाया कि सवा चार लाख जॉब कार्ड्स बिना फोटो के थे यानी वे जॉब कार्ड पूर्ण रूप से फर्जी थे। 1.26 लाख करोड़ रुपये के 129 लाख प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी दी गई, लेकिन इनमें से सिर्फ 30 फीसदी में ही काम हुआ। ऑडिटर ने यह भी पाया कि 2, 252 करोड़ रुपये ऐसे प्रॉजेक्ट्स के लिए आवंटित कर दिए गए, जो नियम के मुताबिक मनरेगा के तहत नहीं आते हैं। सीएजी का यह भी कहना है कि मनरेगा से छोटे राज्यों को फायदा हुआ है, लेकिन बड़े राज्य जैसे असम, गुजरात, बिहार, यूपी, कर्नाटक, बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को कोई खास फायदा नहीं हुआ है। यूपी, महाराष्ट्र और बिहार में 46 फीसदी लोग गरीब हैं, लेकिन सिर्फ 20 फीसदी फंड का ही लाभ उन लोगों को मिला है।
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कैग के अनुसार, मार्च 2011 में इस योजना के तहत करीब 1960.45 करोड़ रुपये निकाला गया, जिसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। सबसे ज्यादा फर्जी मनरेगा के मजदूर कर्नाटक में पाए गए हैं। इस स्कीम के तहत काम करने वाले मजदूरों को पेमंट भी देरी से किया जा रहा है और इसका कोई मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा है। कैग की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि करीब 54 फीसदी ग्राम पंचायतों में रिकॉर्ड्स सही तरीके से नहीं मैनेज किया जा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा इस स्कीम की मॉनिटरिंग से भी कैग संतुष्ट नहीं है। उल्लेखनीय है कि मनरेगा यूपीए सरकार की फ्लैगशिप वेलफेयर स्कीम है। इस योजना के तहत गांवों में रहने वाले मजदूरों को 100 दिन का रोजगार मुहैया कराया जाता है।