फर्रुखाबाद: नगर के कई सड़क छाप बिना कोई कल कारखाना लगाये अरबपति बन चुके है| नगर में अल्पसंख्यक समुदाय की दर्जनों सम्पतियाँ जो अब बहुसंख्यको की मिलकियत है| इस काम में जनपद में पिछले 30 साल से चल रहा सरकारी सर्वे माल खाकर बराबर मदद करता रहा| जानकारों का कहना है कि जब तक नगर में एक इंच भी जमीन नजूल, कब्रिस्तान या सरकारी बची रहेगी ये सर्वे चलता रहेगा| कम ही लोग जानते है कि इसका कार्यालय घटियाघाट के पास एक तंग गली के पुराने से मकान में है- नाम है “कार्यालय नायब तहसीलदार सर्वे| तीस सैलून में ये कार्यालय फर्रुखाबाद नगर का सर्वे का काम निपटा नहीं पाया है|
पुराने दस्ताबेजो में हेरफेर करके नजूल, तालाब, कब्रिस्तान और वक्फ की सम्पतियों का नामांतरण पिछले वर्षो में कराया जाता है| ये दस्ताबेज आमतौर पर सरकारी मुलाजिम के पास ही रहते है| जाहिर है सरकारी तंत्र बिना किसी लालच के अपनी कलम नहीं फसायेगा| यही लेखपाल सरकारी अफसरों से भी आदेश कराते रहे है| साल दर साल नगर की खली पड़ी जमीनों पर भूमाफिया, नेता और दबंग कब्जे कर बैठे| नगर में तैनात रहे कई लेखपालो के पास नॉएडा, दिल्ली और गाजियाबाद में करोडो के फ्लेट इन्ही कब्जो की देन है|
कैसे होता है ये खेल-
अदालत में एक फर्जी मुकदमा दाखिल कर उसे अफसरों को रिश्वत देकर जीते लेने और फिर उस अदालती आदेश के सहारे पुलिस की मदद से कब्ज़ा लेने की कहानी कोई नयी नहीं है| कई दर्जन लोग इस खेल में लिप्त है| इनमे से कई माननीय हो चुके है तो कई कतार में है| अचानक बढ़ी हुई इनकी सम्पत्ति किसी कल कारखाने से नहीं बल्कि मुफ्त जमीनों को हडपने से आई है| हो सकता आपके आसपास ऐसा ही कोई शातिर नेता या सरकारी अफसर रहीस हो रहा हो|
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तब बसपा की सरकार थी, दो साल पहले की बात है| बढ़पुर में क्रिश्चियन ग्राउंड के बाहर एक दबंग और एक छोटे से बड़े नेता के बीच सम्पत्ति का मामला उछला तो एक नया मामला पकड़ा गया| एक बसपा के बड़े नेता की बीबी नाम पुरानी तारीखों में दर्ज हुई जमीन पकड़ी गयी थी| उसमे एक मृतक लेखपाल की बीबी का भी नाम था| मामले में इसी सर्वे के कर्मचारियों ने नेताजी की बीबी और मृतक लेखपाल की बीबी सहित एक अन्य नाम के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने की संस्तुति की थी| नेताजी ने आनन् फानन उस महिला को अपनी बीबी मानने से इनकार कर दिया था| घटियाघाट सर्वे नायब तहसीलदार के कार्यालय से चली फाइल के पन्नो पर लिखी इबारत तहसील कार्यालय में बैठ कर बदली गयी| तत्कालीन एसडीएम ने जमीन को वापस सरकारी खाते में दर्ज करने के आदेश कर दिए थे| मायाराज में लखनऊ से बड़े साहब को फरमान आया| मगर मीडिया में मामला लीक हो चुका था| कुछ दस्ताबेज भी मीडिया के हाथ लग चुके थे| लिहाजा मामला थाने तो नहीं पंहुचा अलबत्ता फर्जीवाड़े को वापस कर लेने के आदेश जरुर साहब कर गए थे| नेताजी एमएलसी भी बन गए, उनकी सरकार भी चली गयी मगर अभी तक अनुसार सर्वे विभाग ने ये जमीने वापस सरकारी अभिलेखों में दर्ज नहीं करा पायी|
पांच साल पहले ठंडी सड़क पर नरेश अग्रवाल (तब बसपा की टिकेट पर चुनाव लड़ने आये थे) और अन्य पर भी वक्फ की जमीन बैनामा कराने का मामला सुर्ख़ियों में आया था| वक़्त के साथ अफसरों से लेकर वक्फ बोर्ड भी बिना डकार के शांत हो गया| अब उसी जमीन पर एक विशाल बैंकेट हाल बन रहा है| जिसका नक्शा गोदाम का पास है| और साहब कहते है कि उनके पास कोई शिकायत नहीं है| हजारो बिगाह का तालाब सिकुड़ कर चंद फुट का रह गया| क्या सपा और क्या बसपा, जिसकी सरकार आई उनकी पार्टी के नेताओ पर कब्रिस्तान से लेकर वक्फ और अल्पसंख्यको (इसाई) समुदायों की सम्पत्ति पर कब्जे के मामले उठे, सड़क पर आये और कई अदालत में चले गए| दो पूर्व विधायक जिनका जुडाव अब सपा के साथ है भी कब्रिस्तानो के बैनामे कराने में पीछे नहीं रहे|
बढ़पुर स्थित बस अड्डे के सामने गोशाला, वक्फ और चारागाह की जमीन पर अब अरबो का एक बैंकेट हाल, पेट्रोल पम्प और एक बैंक बनी है| मामले की जाँच चल रही है| एक अफसर के तबादले के बाद दूसरा आता है और मायावी शांति के साथ तृप्त होकर आंखे बंद कर कब्जे की जगहों से आगे निकल जाता है| जांचो की फाइल उसे तब तक ही याद आती है जब तक कब्जेदार साहब के बंगले के दर्शन नहीं कर लेता उसके बाद तो उसे वो फाइल “कौन सी फाइल” लगने लगती है| भले ही विवाद के बाद मामला कानून व्यवस्था पर बन आये| जमीनों पर कब्जे के मामलों में पुराने अभिलेखों में बड़े पैमाने पर फेरबदल बहुत साल पहले ही किये जा चुके है| जो जमीन अभी खाली दिख रही है असल में वो खाली नहीं है| जरा टटोल कर देखिये तो सही जो जमीन कभी मुर्दों को चैन की नींद लेने के लिए दर्ज थी मालखानो की गठरी में सुरक्षित उनके दस्ताबेजो में जिन्दा नेता और भूमाफिया काबिज हो चुके है|
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