फर्रुखाबाद: खांटी समाजवादी पत्रकार सतीश दीक्षित एडवोकेट को श्रमसंविदा बोर्ड के अध्यक्ष बनाने के माध्यम से कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिये जाने के पीछे सपा की मिशन 2014 की रणनीति भी देखी जा रही है। अबसे 50 वर्ष पूर्व फर्रुखाबाद संसदीय सीट से राममनोहर लोहिया ने केंद्रीय मंत्री डा. बीवी केसकर को हराकर शानदार जीत हासिल की थी। स्वयं सतीश दीक्षित भी इस संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं। [bannergarden id=”8″]
विदित है कि गण्तंत्र दिवस के दिन अचानक सतीश दीक्षित को श्रमसंविदा बोर्ड का अध्यक्ष बनाये जाने के साथ ही प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिये जाने की खबर आयी तो राजनीति के गुरुघंटाल भी भौंचक्के रह गये। जिले में पहले से ही एक राज्यमंत्री नरेंद्र सिंह यादव के मौजूद होते हुए भी श्री दीक्षित को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलना अधिकांश सपाइयों के लिये भी चौंकाने वाली बात थी। परंतु यदि श्री दीक्षित को अचानक महत्व दिये जाने की पृष्ठभूमि को गौर से देखा जाये तो इसके पीछे सपा के मिशन 2014 की रणनीति साफ नजर आती है। जनपद की राजनीति में ब्राह्मणों की अहम भूमिका के बावजूद अभी तक आगामी लोकसभा चुनाव में किसी भी महत्वपूर्ण राजनैतिक दल में किसी ब्राहमण प्रत्याशी की चर्चा तक नहीं है। कल्याण सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद लोधी वोट उनके साथ जाना लगभग तय है। सपा के लोकप्रिय मुस्लिम-यादव समीकरण को यदि देंखें तो यहां से कांग्रेस के केंद्रीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के चुनाव मैदान में मौजूद रहते अधिकांश मुस्लिम मतों के उनके साथ जाने की संभावना, और आस पास की अधिकांश सीटों पर यादव प्रत्याशियों की घोषणा के चलते यहां से किसी यादव प्रत्याशी को न उतार पाने की मजबूरी के चलते सपा के सामने विकल्प काफी सीमित हैं। ऐसे में विकल्प तलाश रहे ब्राह्मण मतों के साथ यादवों को जोड़कर एक मजबूत विकल्प देने की रणनीति साफ नजर आ रही है। जाहिर है कि मुस्लिम मत भी भाजपा को हराने वाली पार्टी के साथ जाने की अपनी मानसिकता के चलते अंत में सपा के साथ ही खड़े नजर आयेंगे। यदि ऐसा हुआ तो फर्रुखाबाद एक बार फिर 50 साल पुराने इतिहास को दोहरा सकता है। फिर श्री दीक्षित के सलमान खुर्शीद के 36 के आंकड़े भी जगजाहिर हैं। आज से लगभग दो दशक पूर्व श्री खुर्शीद के कारण ही उनको अमर उजाला अखबार छोड़ना पड़ा था।
अपनी लोहियावादी राजनैतिक कार्यप्रणाली के चर्चित व हाल ही में कैबिनेट मंत्री का दर्जा पाये सतीश दीक्षित भी इस दिशा में काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह वर्ष 1963 में हुए अपने राजनैतिक आदर्श राम मनोहर लोहिया के चुनाव में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं। उन्होंने कहा कि यदि पार्टी ने अवसर दिया तो वह एक बार फिर अपने राजनैतिक आदर्श के इतिहास को जीवंत कर सकते हैं।