यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की दूसरी बार बीजेपी में वापसी ने एक बार फिर कई सवालों को जन्म दे दिया है। इस वापसी से किसे फायदा होगा, बीजेपी को या कल्याण सिंह को? आखिर कल्याण सिंह दूसरी बार बीजेपी का दामन थामने के लिए क्यों मजबूर हुए? क्या कल्याण सिंह अपना पुराना करिश्मा दोहरा पाएंगे?
इन तमाम सवालों के जवाब कल्याण सिंह के उतार-चढ़ाव से भरे लंबे सियासी सफर में छुपे हैं। कल्याण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने साल 1962 में राजनैतिक चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से प्रेरित होकर राजनीति में प्रवेश किया। वे 1967, 1969, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 में यानी दस बार विधायक चुने गए। बीजेपी में रहते हुए वो दो बार 1991 और 1997 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। बीजेपी से नाराज होकर कल्याण सिंह ने 1999 में अपने 77वें जन्मदिन पर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी नाम से एक नई पार्टी बनाई।
साल 2002 का विधानसभा चुनाव बीजेपी और कल्याण ने अलग-अलग लड़ा था। यही वह चुनाव था जहां से उत्तर प्रदेश में बीजेपी का ग्राफ गिरना शुरू हुआ। बीजेपी की सीटों की संख्या 177 से गिरकर 88 हो गई। प्रदेश की 403 सीटों में से 72 सीटों पर कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी ने दावेदारी ठोंकी थी और इन्हीं सीटों पर बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा। नतीजा कल्याण की घर वापसी की कोशिशें शुरू हुईं और 2004 में कल्याण बीजेपी में शामिल हो गए।
2007 में विधानसभा चुनाव में कल्याण की मौजूदगी के बावजूद बीजेपी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। कल्याण के नेतृत्व में बीजेपी को सिर्फ 51 सीटें हासिल हुईं। 2009 में कल्याण का बीजेपी से फिर मोहभंग हुआ और उन्होंने मुलायम सिंह से दोस्ती कर ली। अपने बेटे राजवीर सिंह को उन्होंने सपा का राष्ट्रीय पदाधिकारी भी बनवा दिया। लेकिन ये दोस्ती भी ज्यादा नहीं टिकी। 2012 में कल्याण ने अपनी एक और पार्टी जन क्रांति पार्टी बना ली। लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव 2012 में उनकी पार्टी के हाथ कुछ नहीं लगा। उधर, बीजेपी भी महज 47 सीटों पर सिमट गई।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कल्याण और बीजेपी की इसी मजबूरी ने इन्हें दोबारा दोस्त बनाया है। कल्याण सियासत की दुनिया में गुमनाम हो चले थे। बीजेपी भी लाख कोशिशों के बावजूद यूपी में तीसरे नंबर पर सरक गई है। ऐसे में उसे यूपी में एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी जो लोकसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कर सके। उधर, कल्याण सिंह के पास भी विकल्प नहीं था। उनकी पार्टी यूपी में अपना आधार नहीं बना सकी। ऐसे में कल्याण सिंह और बीजेपी दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है।
खास बात ये है कि कल्याण की बीजेपी में वापसी को लेकर फायर ब्रांड नेता उमा भारती काफी सक्रिय रहीं। दोनों नेताओं की जुगलबंदी बीजेपी को यूपी में पुरानी स्थिति में ना सही, एक सम्मानजनक स्थिति में भी ला सकी तो पार्टी का मकसद हल हो जाएगा।
कल्याण सिंह की बीजेपी में वापसी, पार्टी का भी विलय
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की आज बीजेपी में वापसी हो गई। इसी के साथ कल्याण सिंह की पार्टी का भी औपचारिक रूप से बीजेपी में विलय हो गया। इस मौके पर लखनऊ में रैली भी हुई जिसमें बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी, वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह, मुख्तार अब्बास नकवी और प्रदेश के कई नेता शामिल थे।
लखनऊ में रैली के दौरान कल्याण सिंह ने पुराने अंदाज में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि हिन्दू आतंकवाद की बात हो रही है, लेकिन हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता| सोनिया जी को माफ़ी मांगनी चाहिए|
मंच पर आंखों से छलके आंसू
बीजेपी में वापसी के मौके पर कल्याण सिंह का दिल भर आया और जब मंच से बोले तो गला रूंध गया और आंखो से आंसू छलक आए. कल्याण सिंह ने कहा कि मेरी ख्वाहिश बीजेपी में ही जीऊं और बीजेपी में ही मरूं।
शिंदे को पागलखाने भेजा जाना चाहिए: कल्याण सिंह
बीजेपी में आते ही कल्याण सिंह खूब गरजे और शिंदे के बयान के लिए कांग्रेस को खूब खड़ी खोटी सुनाई. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकते.
केंद्र और यूपी की सरकार वोट के लिए आतंकवाद को बढ़ावा देती है. कल्याण सिंह ने प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी से शिंदे के बयान के लिए माफी मांगने के लिए कहा और सलाह दिया कि इस तरह के बयान के लिए शिंदे को पागलखाने भेजा जाना चाहिए.
गौरतलब है कि शिंदे ने रविवार को आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा था कि आरएसएस के कैंप में हिंदू आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. उसके बाद उन्होंने सफाई देते हुए कहा था कि उन्होंने हिंदू नहीं बल्कि भगवा आतंकवाद के बारे में कहा था. सोमवार को एक बार फिर उन्होंने कहा कि मुझे जो कहना था वह कल ही कह दिया है. इस पर आरएसएस नेता राममाधव ने टिवटर पर लिखा है कि शिंदे अब आतंकी संगठन जमात-उद -दावा के चहेते हो गए हैं