खबरीलाल- सलमान के सहारा बाड्रा जी बनाम राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय जीजा जी

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सतीश दीक्षित की कलम से-मुंशी हर दिल अजीज प्रातः कालीन सैर के बाद आज सवेरे सीधे मियां झान झरोखे के यहां जा धमके। मियां बाहर आए। मुंशी को देखकर चौंके। अरे मुंशी सब ठीक ठाक तो है। मंुशी बल्लियों उछल कर बोले। अरे देख आज के अखबार। अपने खबरीलाल ने वह काम करके दिखा दिया जो सलमान के कट्टर से कट्टर समर्थक और विरोधी तक नहीं कर सके। मियां झान झरोखे मसला ही नहीं समझ पाए। हक्के बक्के ठगे हुए से खड़े रहे। मुंशी और खबरीलाल की तारीफ दोनो ही लिएंडर पेश और भूपति की तरह अपने फन में माहिर परन्तु जोड़ी बनाने में हमेशा नानुकुर और बहाने बाजी।

मुंशी मियां को शांत खड़ा देखकर तैश में आ गए। बोले क्या बात है। खबरीलाल की हमने तारीफ कर दी। इससे तुम्हारे अपर बिजली क्यों गिर गयी। मियां को जैसे करंट लगा हो। हत्थे से उखड़ कर बोले कुछ बोलोगे भी या यूं ही पहेलियां बुझाते रहोगे। मुंशी हर दिल अजीज बोले मियां कुछ तो अकल से काम लिया करो। कल तक सलमान पर हमले दर हमले हो रहे थे। परन्तु सारे कांग्रेसी दिग्गज मुहं में दही जमाए खामोश बैठे थे। खबरीलाल सलमान खुर्शीद की रविवार की पत्रकार वार्ता में गए। कायमगंज के उनके कट्टर समर्थकों के कानों में मंत्र फूंक आए।

खबरीलाल ने एक के कान में कहा तुमने खुदगर्जी की हद देखी। एक अपने सलमान साहब ही हैं। हर एक के दुख सुख में काम आते हैं। चाहें जिस मंत्री या नेता पर विपक्ष का बार हो हमला हो। एक दम आगे आकर सारे बार झेलते हैं। चाहें अन्ना हजारे हों, बाबा रामदेव हों चाहें केजरीबाल सभी के हमलों से कपिल सिब्बल से लेकर श्री प्रकाश जायसवाल तक का बचाव करने में सबसे आगे दिखाई देते हैं। जैसे कांग्रेस का छप्पर उठाने का ठेका सलमान ने ही ले रखा हो। अब देखा सारे के सारे नेता मंत्री कान में तेल डाले बैठे हैं।

बाद में खबरीलाल दूसरे कायमगंजी के पास पहुंचे। वह बार बार कोल्हू मिस्त्री रंगी को समझा रहा था। वहीं कहना जो तुम्हें बताया गया है। कोई कुछ भी कहे। तुम ज्यादा मत बोलना। बार बार कान की सुनने वाली मशीन मिलने की बात दोहराना। फिर तुम देखना सलमान सहित हम सब लोग कितनी जोर से तालियां बजाते हैं। खबरीलाल ने धीरे से उस कायमगंजी के कंधे पर हाथ रखा। बोले वाह रे मेरे कायमगंज के शेर। अंग्रेज तुम्हारे पैदा होने से पहले ही चले गए। आज होते तब तुम्हें खान बहादुर का खिताब हंसी खुशी दे देते।

कायमगंजी थोड़ा चकराया। खबरीलाल बोले चौंको नहीं। हम तुम्हारे भले के लिए ही कह रहे हैं। बताओ मुरादाबाद के वाड्रा साहब तुम्हारे कौन हैं। मित्र हैं, नातेदार हैं। कोई नहीं न। परन्तु सलमान साहब ने उन्हें केवल इस लिए अपना मान लिया क्योंकि वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के दामाद हैं। वह सोनिया जिनके लिए अपने सलमान साहब हर समय जान हथेली पर लिए घूमते हैं। इसी से सारे कांग्रेसी नेता और मंत्री उनसे जलते हैं। खबरीलाल अपनी बात पर बजन देते हुए बोले। अब तुम्ही देखो वाड्रा साहब के बचाव के लिए पूरी कांग्रेस कौरवों की सेना की तरह एक जुट होकर विरोधियों के सामने खम ठोंक कर आ गये। परन्तु सलमान साहब पर आज सारे विरोधी झूठे अनर्गल और आधारहीन आरोप लगा रहे हैं। परन्तु सबके सब ऐसे बैठे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

मुंशी खुशी में दुहरे तिहरे होते हुए बोले पत्रकार वार्ता के पहिले और बाद में खबरीलाल द्वारा प्रारंभ किया गया यह ‘‘आपरेशन कानाफूसी’’ दिल्ली के सिपाही हल्कों में रंग दिखाने लगा। कांग्रेसी ही आपस में कहने लगे। हमारी पार्टी में भ्रष्टाचारियों की लंबी लाइन है। वाड्रा के लिए सब कुछ और सलमान के लिए कुछ नहीं। कल को हमारे ऊपर या किसी और के ऊपर केजरीवाल जैसे किसी दिलजले ने हमला किया। तब हमारे बचाव में कौन आगे आएगा। चिनगारी सुलगी और शाम तक कांग्रेस मुख्यालय से लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष के आवास तक पहुंच गयी। केजरीवाल के द्वारा घोषित किये गए नए कार्यक्रम से कांग्रेस के राष्ट्रीय जीजा जी माननीय वाड्रा जी भी चौंकन्ने हो गए। फिर एक ही दो घंटे में जाने क्या हुआ। यह तो खबरीलाल को भी नहीं मालूम।

मुंशी बोले शाम होते होते संदीप दीक्षित से लेकर दिग्विजय सिंह तक और बेनी प्रसाद वर्मा से लेकर अंविका सोनी तक सलमान साहब के पुरजोर बचाव में जमीन आसमान एक करने लगे। पत्रकार वार्ता से भन्नाए और आपा खो देने वाले सलमान साहब ने राहत की सांस ली। जब यह खबर आई कि सलमान को त्यागपत्र देने की कोई जरूरत नहीं। तब तक कायमगंज के उनके चमचों ने उन्हें खबरीलाल की सारी कहानी बता दी। कई दिन बाद मंत्री आवास पर हंसी खुशी का माहौल दिखाई पड़ रहा था। इसी बीच लोग कहने लगे चाहें जो कुछ भी हो। सच्ची कुर्बानी कभी व्यर्थ नहीं जाती। आज बुरे वक्त में राष्ट्र वाड्रा ही सलमान साहब के लिए तारनहार बन कर आए। न वाड्रा साहब सोनिया गांधी के दामाद होते। न सलमान साहब सोनिया जी के लिए जान तक देने की बात करते। नहीं पूरी कांग्रेस सलमान के पीछे उनके समर्थन में चट्टान की तरह खड़ी होती। हंसी खुशी के माहौल में मिठाइयां बटने लगीं और बधाइयां दी जाने लगीं और ली जाने लगीं।

मुंशी मियां झान झरोखे का कंधा पकड़कर बोले खबरीलाल तो खबरीलाल ठहरे। सीधे संसद मार्ग पर केजरीवाल के धरने में पहुंच गए। बोले देख रहे हो। सारे बेईमान एकजुट हो गए हैं। यहां बैठे बैठे मर जाओगे। कांग्रेस न हिलेगी न डुलेगी। कहे कोई कुछ भी। परन्तु जनलोक पाल वित्त के लिए तुम्हारे आग्रह को देखकर सारी पार्टियों के नेता तुमसे नाराज हैं। क्योंकि हमाम में सब नंगे हैं।

धरने पर बैठे लोग सकते में आ गए। खबरीलाल बोले चैनलों के लाइव कवरेज का मोह छोड़ो। इन्हें जहां भी दूसरी वाइट मिलेगी। तुम से मुहं मोड़ लेंगे। जड़ों पर हमला करो। जड़ें काटो भ्रष्टाचार की, धांधली की, लूट की, शोषण की, अत्याचार की। जड़ों पर हमला करोगे। तब फिर जान कर लोग तुम्हें प्रमाण सहित इतनी जानकारियां देंगे। जिसके सामने विकलांग कैंप घोटाला छोटा पड़ जाएगा। खबरीलाल बोले उठो जवानों चलो जड़ों की ओर। नवाबगंज, शमसाबाद, कंपिल, कायमगंज, घटियाघाट, विश्रांत घाटों, के बहुत से खेल सामने आयेंगे। जो आज अकड़ रहे हैं कि त्याग पत्र नहीं देंगे। वही जनता की आवाज में डरकर मैदान छोड़कर भाग जायेंगे। नए कारखानों, प्रोजेक्टों के बहाने नफरीह और सैर सपाटों मस्तियों की पालें खुलेंगी।

खबरीलाल के कहे अनुसार मुंशी हरदिल अजीज बोले। अरविंद केजरीवाल ठहरा आयकर का अधिकारी। खबरीलाल के इशारे को समझ गया। आनन फानन में धरना समेटा और एक नवम्बर 2012 को फर्रुखाबाद कूच करने का ऐलान कर दिया। प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के भी हाल फिलहाल में फर्रुखाबाद आने की तैयारियां हो रहीं हैं। लगता है डा0 लोहिया की कर्मभूमि में मई 1963 के ऐतिहासिक चुनाव के पचास वर्ष बाद होने जा रहा लोक सभा चुनाव नया इतिहास रचने जा रहा है। मियां झान झरोखे बोले खबरीलाल को कल धरना स्थल और पत्रकार वार्ता स्थल पर मिले दो लिफाफों का मामला क्या है। मुंशी बोले प्रत्यूश शुक्ला की तरह दोनो लिफाफे आईसीयू में हैं। प्रार्थना कीजिए कि दोनो लिफाफे और प्रत्युश शुक्ला एक नवम्बर से पहिले स्वस्थ होकर फर्रुखाबाद आ जायें। मुंशी सारे अखबार समेट कर मियां की चाय पिये बिना जैसे आए थे वैसे ही चले गए। चलते चलते वह खबरीलाल की जिंदाबाद करना नहीं भूले।

सतीश दीक्षित
एडवोकेट