फर्रुखाबाद: राजस्व विभाग द्वारा जारी हो रहे आय जाति और निवास प्रमाण पत्रों की ऑनलाइन प्रक्रिया में ओवरलोड हो जाने के कारण सदर तहसील में जिलाधिकारी ने मैनुअल प्रमाण पत्रों जारी करने के लिए क्या कहा, लेखपालो और दलालों की पौ बारह हो गयी है| ऑनलाइन में घूस वसूली में मुश्किलें आने पर जो आय प्रमाण पत्र अधिक आय के जारी हो रहे थे वही प्रमाण पत्र लेखपाल 500 से 1000 की घूस लेकर जारी करवा रहे हैं| इस खेल में दलालों की भी पौ बारह हो रही है क्यूंकि पूरा खेल तहसील में बैठे दलाल ही खेल रहे हैं| इस खेल में आवेदक के साथ धोखा होने का पूरा चांस है क्यूंकि अधिकांश मैनुअल प्रमाण पत्र इंटरनेट पर जांचने पर फर्जी साबित हो रहे हैं| एन नजर नीचे दिए प्रमाण पत्र पर डालिए| ये प्रमाण पत्र इंटरनेट की जाँच में दूसरे के नाम पर लगा है| मैनुअल में ये प्रमाण पत्र विनोद कुमार के नाम है जबकि इंटरनेट पर इस क्रमांक का प्रमाण पत्र धीरज सोनी के नाम दर्ज है| ऐसे दर्जनों मामले जे एन आई के पास आ चुके है|-
दूसरा नमूना-
पल्लवी शर्मा नाम की बच्ची को तहसील से जारी प्रमाण पत्र की कर्म संख्या पर तारिख और नाम दोनों फर्जी पाए गए| इस खेल का बड़ा खुलासा जल्द ही विडियो और ऑडियो टेप के साथ इसी वेबसाइट पर जल्द ही आपको मिलेगा| आप भी नजर डालिए-
तहसील परिसर में दलालों और लेखपालो के खेल को तोड़ पाना बहुत आसान काम नहीं लगता| आम जनता को ये लेखपाल आवेदन निरस्त होने, रिपोर्ट ज्यादा आय की लगा देने की धमकी से रिश्वत वसूलते हैं| चौकाने वाली बात ये है कि आवेदक बेरोजगारी भत्ता पान के लिए 36000 की आय का प्रमाण पत्र चाहता है जिसे लेखपाल रिश्वत मिलने पर ही जारी करते है, भले ही वो व्यक्ति मोती आमदनी कर रहा हो| अगर रिश्वत न मिले तो जारी होने वाली आय के भी पैमाने है| 40000, 50000, 48000 या 60000 यानि फुटकर रुपयों में कोई नहीं कमाता| गृहणी की खुद की आय ये लेखपाल आँख मीच कर 48000 लिखने में नहीं चूकते| जबकि प्रमाण पत्र में इस आय में उसके पति या पिता की आय अंकित नहीं होती| ऐसे ही कई मामलो में छात्रो की आय भी ये लेखपाल 40000 लिख देते है|
कुल मिलकर रिश्वत न मिलने पर लेखपाल बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ते से अयोग्य ठहराने में लगे है| ऐसे मामले नगर में ज्यादा है| सभी लेखपालों ने रिश्वत वसूलने के लिए अपने चेले पाल रखे हैं| ये दलाल/चेले ही लेखपालों की और से भौतिक सत्यापन के लिए घर घर पहुच रहे है| रिश्वत मिल जाने पर करोडपति को 36000 की वार्षिक आय का प्रमाण पत्र जारी कराने में इन चेलो या दलालों का योगदान रहता है| वसूली जाने वाली रिश्वत में आधा हिस्सा लेखपाल का होता है| खास सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अधिकांश वसूली वाली जगहों पर तबादले पर आये लेखपाल लाखो की घूस देकर तैनाती पाए है और उसी की वसूली में जनता पर मार पड़ रही है|
सोचने वाली बात ये है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में गयी मायावती सरकार और समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार में क्या अंतर है? शायद कुछ नहीं| तब भी लेखपाल बेलगाम थे अब भी है| तब भी नेता रिश्वत लेकर ट्रांसफर पोस्टिंग करते थे अब भी कर रहे है| वर्ना एक भी सपा का विधायक इस रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज क्यूँ नहीं उठाता| ऐसे में अगर ये आरोप लगाया जाए कि इस भ्रष्टाचार की गंगा में वर्तमान सपा नेता भी डुबकी लगा रहे है तो क्या बुरा है?