फर्रुखाबाद : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय सर्च लाइट भवन में शनिवार को प्रातः 9 बजे दादी प्रकाशमणि की पांचवीं पुण्यतिथि को बडे ही श्रृद्धा एवं प्रेम से मनाया गया। बी॰के॰ प्रियंका ने दादी जी के नेतृत्व में संस्था के दिव्य सफर के बारे में बताते हुए कहा कि सन 1922 में दादी प्रकाषमणि जी का जन्म हैदराबाद सिंध (पाकिस्तान) में हुआ था। 1937 मे दादी जी नें अपना जीवन ईश्वरीय सेवार्थ समर्पित किया। 1937-50 तक दादी जी नें स्वयं सर्वशक्तिवान परमपिता के सानिध्य में राजयोग की गहन साधना कर आत्मिक बल अर्जित किया। 1954 में दादी जी के नेतृत्व में द्वितीय विश्व धर्म सभा में भाग लेने संस्था का प्रतिनिधी मण्डल बनाया गया 1956 में दादी जी नें दिल्ली पटना कोलकाता और मुम्वई में नयें सेवा केन्द्रों की स्थापना की।
1956-61 तक दादी जी नें मुम्वई के सेवाकेन्द्रों की निदेशिका के रूप में 100 से भी अधिक कान्फ्रेन्सों का आयोजन किया। 1964 में दादी जी महाराष्ट्र जोन की निदेशिका बनी। 1965-68 में दादी जी को महाराष्ट्र गुजरात एवं कर्नाटक जोन की निदेशिका के रूप में नियुक्त किया गया।
1969 में दादी जी को संस्था का मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया। 1972 में दादी जी 6 सदस्यों के प्रतिनिधि मण्डल के साथ विदेष सेवा पर गयीं और विभिन्न सेवाकेन्द्रों की स्थापना की 1986 में संस्था का गोल्डन जुवली वर्श मनाया गया। चौथें ष्यूनिवर्सल पीस कान्फ्रेंन्सए का आयोजन किया गया। 88 देषों से ष्मिलिएन मिनिट्स आंफ पीसश कार्यक्रम की लाचिंग की गयी। 1987 में संस्था को संयुक्त राश्ट्र के सेक्रेटरी जनरल ने दादी जी को ष्पीस मेसेन्जरए अवार्ड प्रदान किया गया। ऐसे महान व्यक्तित्व की धनी दादी प्रकाषमणि के कार्य को दुनिया के सामनें लानें कि लिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।
केन्द्र संचालिका बी॰के॰मंजु बहन ने संस्था की पूर्व प्रशासिका दादी प्रकाशमणि जी के बारें में बताते हुए कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान से भरी दादी प्रकाशमणि जी एसी सशक्त महिला थी जिन्होंने सारे विष्व का महिलाओं को शक्ति स्वरूपा बननें का पाठ पढाया और उनकी छिपी हुई प्रतिभा को निखारकर उन्हे इसका अहसास कराया। सही वजह हैं कि आज महिलायें समाज के हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभानें को तत्पर है। उन्होने कहा कि दादीजी के नेतृत्व में संस्था को संयुक्त राश्ट्र संघ नें 1987 में में शान्ति पदक प्राप्त हुआ तथा 5 राष्ट्रीय स्तर के शान्तिदूत पुरूस्कार भी प्राप्त हुए। दादी जी नें संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित अनेक कार्यक्रम में भाग लेकर उन्हें नई दिषा प्रदान की। जैसेंः- अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व में मिलियन मिनिट्स आंफ पीस का आयोजन किया। 2.अन्तर्राश्ट्रीय यूवा वर्श में यूवा उत्सवों एवं यूवा पद यात्राओं का आयोजन किया गया 3. अन्तर्राश्ट्रीय महिला वर्श में महिला जागरण अभियान एवं सम्मेलनों का आयोजन किया गया। 4.अन्तर्राश्ट्रीय साक्षरता वर्श में अनेक साक्षरता अभियानों का अयोजन किया गया। इन सभी कार्यक्रमो का कुषल नेतृत्व दादी जी के द्वारा किया गया।
विषिश्ट अतिथि भ्राता राजन माहेष्वरी जी ने कहा कि दादी प्रकाषमणि जी ममता मयी मां तो थी एवं वह कुषल मुख्य प्रषासिका थीं। विष्व स्तर पर जो स्थान उन्होने वनाया (08 हजार षाखाएं 135 देषों में दस लाख व्यक्ति) इस वट वृक्ष को संरक्षण देते रहें। यह उनकी सच्ची श्रृद्धांजली होगी। और विष्व वन्धुत्व को आगें बढायें एैसा सुसंकल्प लें और पालन करें।
मुख्य अतिथि भ्राता भगवानदीन वर्मा जी(अपरजिलाधिकारी) ने कहा कि विष्व वन्धुत्व के रूप में दादी मां दादी के योगदान ओर उनके मानवीय सेवाओं को पूरा करते नर से नारायण नारी से लक्ष्मी के रूप को साकार करें भारत सदैव ही आध्यात्मिकता का देष रहा है उनके सपनें और उनके कार्यो को पूरा करें यही हमारी उनके प्रति सच्ची श्रृद्धांजली होगी।
कार्यक्रम अध्यक्ष भ्राता अरूण प्रकाष तिवारी (ददुआ) ने अपने सम्बोधन में कहा कि दादी प्रकाषमणि का ये योगदान संसार में कम नहीं हैं उन्होनें स्वयं के द्वारा 135 देषों में विष्व वन्धुत्व की भावना का जों प्रसारण किया एवं देष विदेष की वन्धुत्वा को बढाया ब्रह्माकुमारी बहनें भी उन्ही के आचरण एवं संकल्प अनुसार संसार में विष्व वन्धुत्व की भावना एवं सदभावों कों चारों ओर फैला रहीं हैं
अतिथि भ्राता विश्राम सिंह जी यादव ने आए हुए सभी का धन्यवाद किया एवं दादी जी के द्वारा किए गए कार्यो की एवं संस्था की सराहना की।
इस कार्यक्रम में भारत ंिसंह, देवप्रकाष रामदास रामप्रकाष अग्रवाल उमेन्द्र बेबी श्रीवास्तव संजीव वर्मा महावीर प्रसाद साधना बहन दुर्गेष सोनी सुरेन्द्र सोमवंषी सतीष गुप्ता रोहित गोयल धर्मेन्द्र सिंह रीता बहन उमा ज्ञानदेवी कंचन रजनी अग्रवाल आषा दुबे गुडडू पंकज हृदेष एवं आए हुए अनेक लोगों नें इस कार्यक्रम का लाभ उठाया एवं दादी प्रकाषमणि जी को श्रृद्धीन्जली अर्पित की एवं ब्रह्माभोजन स्वीकार किया