खुल गई बाढ़ की कागजी तैयारियों की पोल:
मियां झान झरोखे कंपिल से कायमगंज, शमशाबाद, राजेपुर, कमालगंज होते हुए फतेहगढ़ पहुंचे। हालात देखकर गुस्सा सातवें आसमान पर था। जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर और आसपास खड़े बाढ़, वर्षा और सूखे से पीड़ित लोग प्रशासन की कागजी तैयारियों और जनप्रतिनिधियों के हवाई आश्वासनों की पोल खोल रहे थे। मियां झान झारोखे लगभग पन्द्रह दिनों से पूरे क्षेत्र में घूम रहे थे। खबरें ले रहे थे दे रहे थे। पीड़ितों में बहुत से लोग उन्हें जानते थे। उन्हें देखकर बोले भाई साहब! आप तो हमारे गांव में गए थे। हमने आपसे अपनी समस्या भी रखी थी। आपने कहा था। कलेक्ट्रेट साहब बहुत कड़क और सख्त हैं। इस बार तैयारियां पुख्ता और मुकम्मिल हैं। किसी को भी चाहे वह तराई के लोग हों या कटरी के जरा सी भी दिक्कत नहीं होगी। आपने ही हमें बताया था कि राहत चौकियां बन गयी हैं डियुटी बांट दी गई है। मंत्री जी समीक्षा बैठक ले चुके हैं। नाव राहत सब मौके पर ही मिलेगी। कोई कभी नहीं रहेगी। परन्तु यहां तो गंगा, रामगंगा, बूढ़ी गंगा किनारे बसे गांवों में हालात हर पल हर क्षण बद से बदतर होते जा रहे हैं। धीरे-धीरे बातें बढ़ती गईं। लोग मियां झान झरोखे को ताने मारने लगे। मियां का धैर्य जबाब देने लगा। चिल्लाकर बोले चुप करो भाई। यह क्या मछली बाजार बना रखा है।
सभी शिकायत करने वाले मियां की जबर्दस्त आवाज पर सन्नाटे में आ गए। ऐसा लगा जैसे सभी को सांप सूंघ गया हो। मियां गंभीर आवाज में बोले भाइयों! हम आपकी शिकायतों से नाराज नहीं हैं। हमें जनसेवकों और जनप्रतिनिधियों के तौर तरीकों से हैरानी है। यह जितना कहते हैं। जितनी तैयारियों का व्यौरा देते हैं। उसकी आधी तैयारियां भी अगर अमल में लाई जायें, तब फिर बाढ़, वर्षा और सूखे से होने वाली यह वर्वादी और तबाही स्थायी रूप से रुक जाए। हकीकत यह है बड़े नौकरशाह वास्तविकता को समझ कर काम करने के स्थान पर अपने अधीनस्थों को डांटने फटकारने और अपमानित करने में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। हालात इतने खराब हो गए हैं कि बड़े नौकरशाहों की रोजरोज की चीख पुकार का अधीनस्थों पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बड़े अधिकारियों की हालत बड़े घर के बड़े बुजुर्ग की तरह हो गई है। घर पर वह चारपाई पर बैठा बैठा कामकाज क्रिया कलापों में कभी निकालता रहता है। चीखता चिल्लाता रहता है। परन्तु परिवार का कोई भी सदस्य उसकी बातों पर जरा भी ध्यान नहीं देता। आप में अपने आदेशों को अमल कराने की ताकत नहीं है। आप में अपेक्षित मनोबल नहीं है। तब फिर आप मीडिया में भले ही सुर्खियां बटोरते रहें। नतीजा वही ढाक के तीन पात रहेगा।
मियां की बात सुनकर शिकायतकर्ताओं के तेवर थोड़े ढीले पड़े। मियां बोले हमारा क्या जो इलाके में समस्या देखते हैं। वह बिना लाग लपेट के यहां कहते हैं। यहां जिन राहत कार्यों की योजनाओं की तैयारियां होती हैं। वह तुम लोगों को बताते हैं। प्रदेश में नयी सरकार बने स्वाधीनता दिवस को पांच माह हो जायेंगे। शीर्ष स्तर पर व्यापक तब्दीलियां हुईं। जिले, तहसील, ब्लाक, थाने से लेकर हर विभाग में जमकर छापे पड़े। बदलाव हुए, नियुक्तियां, स्थानांतरण हुए। जनप्रतिनिधियों ने सरकार मुख्यमंत्री की शान में कसीदे पढ़े। परन्तु पूरे जिले में सुधार कहां पर हुआ। आप कितने भी आशावादी हों। परन्तु हालात ऐसे हैं कि आप संतोष व्यक्त नहीं कर सकते। नेताओं में जनता का दुख दर्द जानना समस्याओं को समझने के स्थान पर प्रायोजित दरबार लगाने का राजसी शौक लगा है। अधिकारी समीक्षा और निर्देशों की वैसाखियों पर चल रहे हैं। नतीजतन शासन, प्रशासन दौड़ नहीं पा रहा है। तहसील दिवस, थाना दिवस यह दरबार, वह दरबार, यह समीक्षा, वह गोष्ठी। अपने ही गुनाहों से दबे मीडिया की यह मजबूरी है। उसे वास्तविकता से दूर रहकर वह सब छापना है जिसकी उससे अपेक्षा की जाती है। तमाम घोषणाओं के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, तहसील, थानों, विकासखण्डों, गांवों, मोहल्लों में क्या कोई सुधार हुआ है। मियां ने कलेक्ट्रेट प्रांगण में एकत्र फरियादियों से ऊंची आवाज से सवाल किया। लोगों ने उतनी ही जोरदार आवाज में कहा नहीं बिलकुल नहीं। मुंशी हर दिल अजीज ने भी अपनी हाजिरी दर्ज कराई। बोले लो देखो खुल गई तैयारियों की पोल।
जमीनी हकीकत
1. बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के प्रति ढिलाई बरत रहा है प्रशासन- लोगों में गुस्सा
2. घरों में घुसा पानी छतों पर डेरा
3. शमशाबाद के दर्जन से ऊपर गांव जलमग्न
4. पानी पहुंचा चेतावनी बिन्दु से ऊपर- अब पहुंचा नीचे
5. सड़कें डूबीं, गांवों में आवागमन ठप
6. सदर के दर्जनों गांव बाढ़ की लपेट में
7. हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न होने के कगार पर
8. बाढ़ग्रस्त गांवों में संक्रामक रोगों की संभावनायें
9. कड़ाही को नाव बना रास्ता किया पार – कहां गईं नावें
10. चौरा मार्ग पर बहने लगा पानी
11. तीन अगस्त से नरौरा से गंगा में 10 लाख क्यूसेक से अधिक छोड़ा गया पानी
12. स्कूल में भी भरा पानी
13. बाढ़ का बहाना नहीं बना पायेंगे गुरू जी (सरकारी हंटर)
14. गंगा का सैलाव रोकने को डाली गई बोरियां फटीं
15. किसी भी ठोकर पर नहीं बना पावर प्वाइंट- प्रशासन को चिंता ही नहीं। करोड़ों रुपये की लागत से बनी ठोकरें निरर्थक।
16. कड़क्का बांध टूटने का खतरा
17. खड़गपुर पंचायत घर के पास कटान
18. पट्टिया गांव में पहुंचा पानी
19. निजामुद्दीन चौघड़ा मार्ग पर कमर तक पानी
20. किराचन पुलिया पर बाढ़ का पानी- दर्जनों गांवों का आवागमन ठप- कभी भी ध्वस्त हो सकती है किराचन की पुलिया
21. हरसिंगपुर तराई में एक दर्जन घर गंगा में कटे
22. दर्जनों गांवों में घुसा पानी
23. गंगा को बांधने में जुटे बाढ़ पीड़ित
यह कुछ छोटी झलकियां हैं जो शासन प्रशासनकी बाढ़ राहत तैयारियों की पोल खोलती है। स्थिति इससे भी कई गुना बदतर है।
सर्व शिक्षा अभियान का सच : पूरी पीढ़ी को असहाय बनाने का षड़यंत्र
नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हो गया। समायोजन स्थानांतरण सहित हर वर्ष की तरह पुनः सब कर्मकाण्ड दोहराए जा रहे हैं। शिक्षा और शिक्षकों की गरिमा और मर्यादा गिराने का अभियान शिक्षा अधिकारियों और उनके मुहं लगे कारिंदों की देखरेख में चल रहा है। सच पूछो तो वास्तविकता यह है पूरी पीढ़ी को असहाय पर मुखापेक्षी और भिखारी बनाए रखने का षड़यंत्र चल रहा है।
मुंशी हरदिल अजीज बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से निकल कर यह सब सोचते विचारते चले आ रहे थे। उन्हें पता नहीं क्यों प्रदेश के नए और युवा मुख्यमंत्री से शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़े सुधार और चमत्कार की उम्मीद थी। परन्तु मुंशी हाल देखकर बहुत ही बेचैन और हताश निराश लग रहे थे। सोच रहे थे एक ओर पब्लिक स्कूल हैं। भले ही यह अभिभावकों की जेबें जमकर ढीली करते हों। परन्तु पढ़ाई के प्रति शिथिलता नहीं बरतते। हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने इनकी मनमानी पर बहुत कुछ लगाम लगाई है।
मुंशी फतेहगढ़ चौराहे पर पहुंचे। एक ओर मिलेट्री स्कूल, ब्लूवेल दूसरी ओर केन्द्रीय विद्यालय कुछ दूर पर सेन्ट ऐंन्थोनी कैन्ट क्षेत्र में सब कुछ चकाचक साफ सुथरा और एक स्वस्थ प्रतियोगिता। हाथीखाना आदि में गरीबों के स्कूल हैं। पूरे नगर क्षेत्र में इनका जाल बिछा है। गामीण इलाकों में भी शिक्षा प्रसार के नाम पर जमकर पैसा लुटाया जा रहा है। सभी लोग ऊपर से नीचे तक लूटने में लगे हैं। यहां सब कुछ निःशुल्क है। पढ़ो या न पढ़ो। फेल न होने की पक्की गारंटी है। शिक्षकों को पढ़ाने के अतिरिक्त सभी कार्य करने हैं। बीएसए से लेकर नीचे तक के अधिकारी कर्मचारी सभी बढ़ाते हैं शिक्षकों की परेशानी। जमकर करते हैं लूटपाट। अध्यापिकाओं का जमकर होता है शोषण, उत्पीड़न, ट्रांसफर पोस्टिंग के नाम पर।
मुंशी हरदिल अजीज पैदल ही सोंचते विचारते भोलेपुर बिजली दफ्तर तक आ गए। सोंचने लगे यह विभाग रोज ही हजार दो हजार के बिजली बिल को लाखों में बदल देता है। किसी पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। परन्तु अपने निवास स्थान से 70 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल पर प्रातः 7 बजे न पहुंचने वाले शिक्षक पर पड़ता है कठोरतम कार्यवाही का डंडा।
मुंशी हरदिल अजीज यह सब सोंच देखकर समझ नहीं पा रहे थे। यह सब सर्वशिक्षा अभियान है या छात्रवृत्ति, एमडीएम, मुफ्त किताबें, ड्रेस, बस्ते, हाजिरी अनिवार्य नहीं के प्रलोभनों के बीच से ही नयी पीढ़ी को प्रारंभिक शिक्षा से ही मुफ्तखोरी लूट और बद इंतजामी को बढ़ावा देने का षड़यंत्र। भोलेपुर से लोकोरोड, बेबर रोड, नेकपुर, बढ़पुर क्षेत्र के स्कूलों की स्थिति देखकर मुंशी का मन फूटफूट कर रोने को हो रहा था। सोंच रहे थे कि जब नगर और इसके आस पास लगे क्षेत्र के स्कूलों का यह हाल है। तब फिर तराई और कटरी के स्कूलों में सर्व शिक्षा अभियान की गति प्रगति क्या होगी।
दिखावे की तेजी इतनी कि ग्रीष्मावकास सहित विभिन्न छुट्टियों में भी शिक्षकों की डियुटी रहती है। इस समय निरीक्षण की तलवार। इसी के जरिये चलता है झूठ बहानेवाजी, फर्जी चिकित्सा प्रमाणपत्रों और दानदक्षिणा के खेल। मुंशी हर दिल अजीज घनी आबादी के बीच स्थित बदहाल जर्जर स्कूलों को देखते जा रहे थे। सर्वशिक्षा अभियान का जो सच उभर कर उनके सामने आ रहा था। वह बहुत ही भयावह था। शिक्षा विभाग की नजर हर समय शिक्षक को नाकारा निकम्मा और कामचोर ठहराने में लगी रहती है। उनकी समस्याओं चाहे वह व्यक्तिगत हो या संस्थागत उससे किसी को भी कुछ भी लेनादेना नहीं है। शिक्षकों की बढ़ी हुई सेलरी ने विभाग में जमकर बढ़ाया है भ्रष्टाचार।
मुंशी हर दिल अजीज से यह सब देखकर नहीं रहा गया। सीधे मुख्यमंत्री को टेलीफोन मिला दिया। संयोग से टेलीफोन मिल भी गया। कुछ गुस्से कुछ बेबसी और लाचारी में युवा मुख्यमंत्री से पूछा भैया जी। कहां गया ‘झांसी डिक्लेरेशन’ हजूर और मजूर के बच्चों के एक ही साथ पढ़ाने की व्यवस्था का संकल्प। डा0 भीमराव अम्बेडकर और जनेश्वर मिश्र के नाम पर बने बनाए जा रहे स्मृति पार्कों के पचड़े में पड़ने के स्थान पर नई पीढ़ी की शिक्षा व्यवस्था में अमूल चूल परिवर्तन करिए। मुख्यमंत्री ने सांत्वना भरे लहजे में कहा- बिल्कुल ठीक फर्मा रहे ‘ झांसी डिक्लेरेशन’ की फाइल निकलवाकर तत्काल कार्यवाही प्रारंभ करवा दूंगा। हमारे सभी विभाग कार्यालय नीचे से लेकर ऊपर तक हाईटेक हैं। जल्दी ही सब सही कर देंगे। परन्तु मंुशी जी की बेबसी लाचारी और गुस्सा कम नहीं हो रहा था।
स्वाधीनता दिवस से पहले सोचिए
आज तक केन्द्र में बनी किसी भी सरकार को 50 प्रतिशत मत नहीं मिला। 36 प्रतिशत मत पाकर सरकार बनती है। वह अपनी सर्वोच्चता का बखान करती है। ऐसी सरकार जनसाधारण के हितों की बात नहीं कर सकती।
1984 में राजीवगांधी की सरकार को भी 48 प्रतिशत मत मिले थे। किसी भी दल, किसी भी नेता की दिलचस्पी चुनाव सुधारों और मतदान का प्रतिशत बढ़ाने में नहीं हैं।
ब्रिटिश संसद की साल में न्यूनतम 160 बैठकें अनिवार्य रूप से होती हैं। पिछले बीस वर्षों में कभी भी हमारी संसद वर्ष में 100 दिन नहीं चली। बैठकों में समय बर्बादी का रिकार्ड अलग है।
प्रोन्नति में भी आरक्षण के हिमायती नेता और राजनैतिक दलों में आजादी के इतने वर्षों बाद भी साठ दलितों की सूची जारी करने की हिम्मत नहीं है जो छाती ठोंक कर कह सकें कि नहीं अब उन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं है। अब यह लाभ हमारे दलित समाज के कमजोर और योग्य लोगों को मिलना चाहिए। ऐसा आरक्षण यदि हजारों साल भी लागू रहेगा। तब भी आम दलित के स्थान पर मुट्ठी भर लोगों का ही भला करेगा।
संसद से मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के स्थान पर संासद निधि वेतन भत्ता सांसदों की सुविधायें बढ़ाने की कोशिश क्यों होती रहती है। कमजोर और अल्पमत की आजादी को मजबूत और शतप्रतिशत की स्वाधीनता में बदलने के लिए 15 अगस्त को निष्पक्ष और निर्भीक होकर शतप्रतिशत मतदान का संकल्प करिए। सब ठीक हो जायेगा।
और अंत में …………..
छुट्टी का दिन मुंशी हर दिल अजीज, मियां झान झरोखे और खबरीलाल नेहरू रोड के पटरी बाजार का नजारा देखते चले जा रहे थे। एक दिलजला मिल गया। तीनो को आवाज दी। ए विध्न संतोषियों। तुम्हें कुछ अच्छा भी दिखायी देता है या हर समय हर जगह हर काम में, हर हाल में चाल में, हर व्यक्ति में बुराई ही निकालते रहते हो। जरा सोचो सब ठीक हो जायें सब सही हो जायें सुधर जायें। आप दारू की बोतल नकद पैसा लेकर वोट डालें या वोट डालने ही न जायें। बैठे बैठे बहाना करते रहें, लानत मलामत करते रहें। सबकी छीछालेदर करते रहें। अरे भाई चेहरे से तुम तीनो भले आदमी लगते हो भले घर के लगते हो। परन्तु यह छिछोरी हरकतें करते तुम तीनों को शर्म नहीं आती। तुम्हारे लिए कोई कुछ है ही नहीं। जो भी मिला उसी पर राशन पानी लेकर पिल पड़े। यह सब करने के स्थान पर लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करो। दिलजले की यह बातें सुनकर तीनो में से कोई कुछ बोलता कि दिलजला बोला बस हो गई बोलती बंद। हम कहते हैं अब भी संभल जाओ। हाथ पैर चलाओ। आंख कान खुले रखा करो। बड़े तीसमारखां बनते हो बताओ अकूत सम्पत्ति से भरा कलश किसके यहां निकला है। उसका असली हकदार कौन है। एक सप्ताह का समय देते हैं। पता करके बताना। तीनो ने चुपचाप रहना ही ठीक समझा।
चलते…………..चलते
जिले की सबसे बड़ी शिक्षा संस्था में 15 अगस्त के कार्यक्रम की तैयारियां चल रहीं थीं। संयोजक ने छात्र-छात्राओं से एक पहेली पूंछी। बच्चों बताओ उत्तर प्रदेश में सरकार किसी की रही हो। मुख्यमंत्री, मंत्री कोई भी रहा हो। सबसे ज्यादा डकैती या लूट किस विभाग में होती है। छात्रों ने सोंच सोंचकर विभागों के नाम बताना शुरू किया- सहकारिता, सिंचाई, सार्वजनिक निर्माण विभाग, शिक्षा स्वास्थ्य – इससे पहले छात्र किसी अन्य विभाग का नाम जोड़ते संयोजक अपनी कुर्सी से उछल पड़े। वाह रे मुलायम सिंह के छोटे। तू तो बड़ा नटखट निकला रे। कौन सी दोस्ती दुश्मनी निकाल रहा है अपने चाचा से। बच्चों तुमने जो विभाग बताये हैं उनमें से पहले तीन तो कद्दावर मंत्री शिवपाल सिंह यादव के पास ही हैं। जहां तुम्हारे हिसाब से सदैव डकैती ही पड़ती रही है। अब इस खुली डकैती को छोटी मोटी चोरी में बदलने का कठिन काम भतीजे ने चाचा को सौंपा है। यह मीडिया वाले तभी तो यहां वहां धौल, धप्पण मार खाते हैं। बात को समझा नहीं, काम को समझा नहीं और पिल पड़े चाचा शिवपाल सिंह के पीछे। पहिले देखो कितना महीन काम है जो मुख्यमंत्री ने अपने चाचा को सौंपा है। संयोजक और सभी छात्र अपनी कुर्सियों से खड़े हो गए। सबने मिलकर परम्पिता परमात्मा से प्रार्थना की कि मंत्री जी मुख्यमंत्री की इच्छा के अनुरूप अपने विभागों में सदैव से पड़ती आई डकैती को छोटी मोटी चोरी में बदलने में सफल हों। केरी आन चाचा विश यू गुड लक। आज बस इतना ही। जय हिन्द!
सतीश दीक्षित, एडवोकेट