रमजान के जुमे में उमड़ी नमाजियो की भीड़

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फर्रुखाबाद: रमजान के महीने में बरकत बरसती हैं। ये महीना बुराइयों का खात्मा कर अमन के पैगाम के आगाज के साथ रोजेदारों के रूह व जेहन दोनों की खराबियों को दूर करता है। शुक्रवार को जुमे का दिन होने के कारण शहर की जामा मस्जिद में भारी संख्या में नमाजियों ने जुमे की नमाज अदा की।

नमाज से पहले पेशइमाम ने नमाजियों को रमजान की अजमत के विषय में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि रोजा इस्लाम के पाच फरायज [जरूरी इबादतों] में से एक है। इस्लाम में पूरे एक महीने का रोज़ा फर्ज करार दिया गया है। यह माहे रमज़ान का चाद दिखाई देने के बाद से शुरू होता है। कुरान में अल्लाहतआला फरमाता है कि हमने तुम पर रो़जा फर्ज किया जिस तरह तुमसे पहले कि कौमों पर फर्ज किया गया था! रमज़ान मुबारक़ इबादत का महीना है। रोज़े का मतलब सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है। यह आत्मा में अच्छाइयों और सद्भावनाओं को जगाने की प्रक्रिया है। रोज़े के दौरान इंद्रियों पर वश रखना सबसे जयादा ज़रूरी है। इस दौरान बुरी बातों की तरफ़ जाना तो दूर, उनके बारे में सोचना भी गुनाह है। दूसरों के बारे में बुरा सोचकर, झूठ या तकलीफ़ पहुंचाने वाली बात कहकर, पीठ पीछे बुराई कर रोज़े नहीं रखे जा सकते। रोज़े इसलिए भी कठिन हैं, क्योंकि दुनिया की तमाम उलझनों और तल्ख़ सच्चाइयों के बीच रोज़ेदार को मन, वचन और कर्म से खुद को अनुशासित और सयमित रखना होता है। यह आत्मिक शुद्धि और नेकी का आध्यात्मिक महीना है।