‘‘जल जीवन रक्षक है, किन्तु प्रदूषित होकर मौत का कारण भी बन जाता है। हमारे देश में पाँच में से चार बच्चे जल प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियों से मरते हैं।’’ जनपद फर्रूखाबाद के फतेहगढ़ नगर में स्वच्छ एवं शुद्ध पेय जल का लगभग पूर्णतया अभाव है। सार्वजनिक जल आपूर्ति हेतु भारत सरकार एवं प्रदेश सरकार तथा विश्वबैंक की योजनाओं सहित जिला एवं नगर के तहत जलकल्याण के नाम पर अनेकों योजनायें संचालित हो रहीं हैं। जिनमें करोड़ों-अरबों रूपयों की धनराशि सार्वजनिक जल आपूर्ति, प्रबन्धन, निगरानी तथा मरम्मत के नाम पर व्यय हो रही है। जिसके अन्तर्गत इण्डिया मार्का-2 सरकारी हैण्डपम्प, सरकारी नलकूप, जल टैंक, तालाब, नालों आदि का निर्माण, मरम्मत, रख-रखाव, निगरानी एवं प्रबन्धन व्यवस्था आदि है।
इस परिपेक्ष में डॉ. नीतू सिंह (स्वतंत्र समाजशास्त्रीय शोधकर्ता) ने दिनांक 25-7-2012 से दिनाँक 31-7-2012 तक (7-दिन) सार्वजनिक जल आपूर्ति का अध्ययन किया। जिसमें सर्वेक्षण, अवलोकन एवं साक्षात्कार आदि के आधार पर अध्ययन में जल-प्रदूषण कारण के जो तथ्य पाये उनका संक्षिप्त सार रूप विवरण इस प्रकार से हैं-
मैंने अपने अध्ययन में पाया कि सार्वजनिक जल आपूर्ति व्यवस्था के अन्तर्गत फतेहगढ़ नगर में वर्ष 2010-11 में एक भी सरकारी हैण्डपम्प, नयी पानी की टंकी या ट्यूबवेल नहीं लगाये गये हैं, जब कि नगर की जनसंख्या में लगभग 3.5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हुई है। नगर के रेलवे स्टेशन, प्राथिमिक स्कूलों, उच्च प्राथिमिक स्कूलों, महाविद्यालयों, परास्नातक महाविद्यालयों, चिकित्सालयों, बस-अड्डों, व्यवसायिक-सहकारी क्षेत्र के बैंकों, सरकारी गल्ले की दूकानों, डाकघरों, पंचायतघरों यहाँ तक की जिला मुख्यालयों के प्रमुख कार्यालयों में जहाँ पर हजारों की संख्या में जनता की भीड प्रतिदिन एकत्रित होती है, शुद्ध पेय जल का पूर्णतया अभाव है। पेय जल के नाम पर इन जगहों पर यदि कुछ उपलब्ध है तो गन्दगी से परिपूर्ण खुली, टूटी-फूटी पानी टंकियों से प्रदूषित जल व मनमाने दामों पर बिकने वाला पाउचों में पैक बंद प्रदूषित जल तथा होटलों व चाय की दूकानों के गन्दें डिब्बों में भरा पानी आदि।
इसी प्रकार सरकारी हैण्डपम्पों के पास टूटी-फूटी पटियों के बीच से कीचड़ युक्त गन्दे जल का रिसाव से प्रदूषित जल, जल में क्रोमियम आदि जहरीले पदार्थों की अधिकता, नलों के पास जानवरों का जमाव, हैण्डपम्पों की खराबी व पानी उतर जाने, सरकारी हैण्डपम्पों में लोगों द्वारा जबरदस्ती समरसेबिल-पम्प लगाये जाने तथा सरकारी नलों को लोगों द्वारा उखाड़ कर बेंच लिए जाने, सरकारी नलों की मरम्मत व रख-रखाव का अभाव, कागजी खानापूर्ति तथा सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही से फतेहगढ़ नगर की सार्वजनिक जल आपूर्ति बुरी तरह से प्रदूषित है।
सार्वजनिक जल आपूर्ति व्यवस्था के अन्तर्गत नगर की जल आपूर्ति अत्यन्त प्रदूषित है। नगर की सार्वजनिक जल आपूर्ति की पाइप-लाइने पुरानी, अति-जर्जर एवं टूटी-फूटी हैं जो कि लगभग सभी प्रमुख स्थानों पर नगर की खुली नालियों में डूबी हुई हैं और इनके द्वारा नगर की सार्वजनिक जल आपूर्ति बुरी तरह से विषाक्त हो रही है। फतेहगढ नगर में जल टैंक व ट्यूब-वेल प्रमुख रूप से स्टेडियम, कर्नलगंज, अस्पताल, भोलेपुर, जिला कारागार आदि स्थानों पर लगे हैं जिनमें सफाई, लालदवा (पोटेशियम परमैग्नेट) व्यवस्था आदि का पूर्णतया अभाव है।
फतेहगढ़ नगर की सार्वजनिक जल आपूर्ति पूर्णतय: यहाँ पर कार्यरत नगर पालिका कर्मचारियों की कृपा पर निर्भर है तथा इनकी कृपा से दिन के 24 घंटों में मात्र एक बार फतेहगढ नगर में प्रातः 5 बजे के बाद लगभग 30 से 60 मिनट के लिये जल आपूर्ति दी जाती है। यदि किन्ही कारणों से जल आपूर्ति प्रातः 6 बजे तक प्रारम्भ नहीं हो पाती है तो फिर पूरे दिन तक किसी भी हालात में जल आपूर्ति नहीं दी जाती है जो कि यहाँ की जनता के लिए एक बहुत गंभीर संकट बना हुआ है।
सार्वजनिक जल आपूर्ति से संबन्धित कर्मचारी गुटबाजी व यूनियन तथा अपनी दबंगई का प्रदर्शन कर जनता से अवैध बसूली में लगे रहते हैं तथा जल आपूति से सम्बन्धित कर्मचारी एवं स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी अपने निर्धारित दायित्वों का निर्वाहन नहीं कर रहे हैं और न ही अपनी ड्यूटी काल में जल की गुणवत्ता की जाँच करने के लिये सार्वजनिक जल वितरण स्थानों पर उपलब्ध होते हैं, और न ही जनता की समस्याओं के समाधान के लिये सार्वजनिक स्थानों व अपने कार्यालयों में उपलब्ध रहते हैं। यह लोग ज्यादातर अपनी ड्यूटी से गायब बने रहते हैं। जिसके कारण नगर की जनता विषाक्त जल सेवन करने को मजबूर है।
फतेहगढ़ नगर का प्रमुख जल स्रोत गंगाजल भी बुरी तरह से प्रदूषित हो रहा है। गंगाजल को दूपित करने में नगर के गन्दे नालों का जल, औद्योगिक कारखानों का गंन्दाजल, सामूहिक स्नान, मल विसर्जन, धोबीघाट आदि प्रमूख भूमिका निभा रहे हैं जिसके कारण गंगाजल की गुणवत्ता नष्ट होकर जन-जीवन के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध हो रहा है।
जनगणना-2011 के अनुसार जनपद फर्रूखाबाद की कुल जनसंख्या 1,887,577, जिसमें 1020802 पुरूष, 866775 स्त्रियाँ, नगरीय 429990, ग्रामीण 1457587, जनसंख्या घनत्व 865 प्रति वर्ग किमी है। जिला मुख्यालय फतेहगढ नगर में स्थिति है। जनपद में 1 लोकसभा, 4 विधानसभा क्षेत्र, 3 तहसील, 7 ब्लाक, 87 न्याय पंचायत, 1007 ग्राम जिनमें 885 आबाद व 124 गैर-आबाद, 2 नगर पालिका परिषद, 4 नगर पंचायत, 1 छावनी क्षेत्र, 13 पुलिस स्टेशन जिसमें 8 नगर व 5 ग्रामीण, 95 बस स्टेशन/स्टाप, 19 रेलवे स्टेशन/हाल्ट, 151 डाकघर, 103 व्यवसायिक-सहकारी बैंक, 716 सरकारी गल्ले की दूकानें, 69 शीतगृह, 3265 बायो गैस संयन्त्र, 1799 प्राथमिक विद्यालय, 872 उच्व माध्यमिक विद्यालय, 200 माध्यमिक विद्यालय, 19 महाविद्यालय, 9 परास्नातक महाविद्यालय, 1 मेडिकल कालेज, 1 आई.टी.आई, 1 पोलिटेक्निक, 43 एलोपैथिक चिकित्सालय, 16 आयुर्वेदिक, 19 होम्योपैथिक, 3 यूनानी, 5 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 28 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, 17 परिवार एवं मातृ शिशु कल्याण केन्द्र, 191 परिवार एवं मातृ शिशु कल्याण उप केन्द्र, 1 टीबी अस्पताल, हैण्डपम्प इण्डिया मार्का 3000, 43 नलकूप, 8 जलटैंक, 4 सिनेमाघर हैं जहाँ पर प्रतिदिन हजारों छात्र-छात्राएँ, व्यक्ति एकत्रित होते हैं ।
मानव शरीर में 60 प्रतिशत भार जल का होता है। जल के बिना न तो किसी जीव की कल्पना की जा सकती है और न ही किसी वनस्पति की। संसार का 4 प्रतिशत जल पृथ्वी पर है और शेष समुद्रों में। पृथ्वी पर जितना जल है उसका केवल 3 प्रतिशत भाग ही स्वच्छ एवं शुद्ध है तथा इसी पर सारी दुनियाँ निर्भर है। ज्यों-ज्यों विश्व की जनसंख्या बढ़ती जा रही है त्यों -त्यों जल का खर्च भी बढ़ता जा रहा है। औद्योगिक देश विकासशील देशों की तुलना में 20 गुना अधिक जल खर्च करते हैं।
पृथ्वी पूरे ब्रह्माण्ड में अभी तक एकमात्र ऐसा ज्ञात ग्रह है जहाँ जीवन का अस्तित्व है। पृथ्वी सौरमण्डल का पाँचवां सबसे बड़ा ग्रह है। इस ग्रह का निर्माण लगभग 4.45 अरब वर्ष पूर्व हुआ था और इस घटना के एक अरब वर्ष पश्चात् यहाँ जीवन का विकास शुरू हो गया था। पृथ्वी का क्षेत्रफल 510,100,500 वर्ग किमी. है जिसमें जलीय क्षेत्रफल 361,149,700 वर्ग किमी., कुल थलीय क्षेत्रफल 148,950,800 वर्ग किमी है। संयुक्त राष्ट्र सघ के आंकलन के आधार पर 31 अक्टूबर, 2011 को विश्व की जनसंख्या 7-अरब हो गई है। भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 1,210,193,,422 है, जिनमें 623,724,248 पुरूष, 586,469,174 स्त्रियाँ हैं।
पूरे सौर मण्डल में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर भारी मात्रा में जल उपस्थिति है। यह एक ऐसा तथ्य है जो पृथ्वी को अन्य ग्रहों से विशिष्ठ बनाता है। पृथ्वी के धरातल के लगभग 70 प्रतिशत भाग को घेरे हुई जल राशियों को जलमण्डल कहा जाता है। जलमण्डल में मुख्य रूप से महासागर शामिल है लेकिन तकनीकी रूप से इसमें पृथ्वी का सम्पूर्ण शामिल है। जिसमें आन्तरिक समुद्र, झील, नदियाँ, और 2000 मीटर की गहराई तक पाया जाने वाला भूमिजल शामिल है। महासागरों की औसत गहराई 4000 मीटर है। विश्व के महासागरों का कुल आयतन लगभग 1.4 मिलियन घन किलोमीटर है। पृथ्वी पर उपस्थिति कुल जलराशि 97.7 प्रतिशत महासागरों के अन्तर्गत आता है जब कि बाकी 2.3 प्रतिशत ताजे जल के रूप में है। ताजे जल में लगभग 68.7 प्रतिशत जल बर्फ के रूप में है।
समुद्री जल में औसत लवणता लगभग 34.5/1000 ग्राम होती है अर्थात 1 किग्रा. जल में 34.5 ग्राम लवण उपस्थिति होता है। महासागर घुली हुई वातावरणीय गैसों के भी बहुत बड़े भण्डार होते हैं। यह गैसें समुद्री जीवों के जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। समुद्री जल का विश्व के मौसम पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
बिना मुण्डेर और जाली वाले कुँओं का पानी दूषित हो जाता है। तालाबों का पानी नहाने, कपड़े धोने और पशुओं के नहाने से दूषित होता है। धार्मिक अन्धविश्वास, स्नान और अस्थि विसर्जन, मल-जल की नदियों में निकासी आदि के कारण नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है। समुद्र भी प्रदूषण से मुक्त नहीं है। समुद्रों में जहाजरानी, परमाणु अस्त्रों के परीक्षण, समुद्रों में फेंकी गई गंदगी, मल विसर्जन एवं औधोगिक अवशिष्टों से विषैले तत्वों के कारण समुदी जल निरन्तर प्रदूषित हो रहा है।
प्रदूषित जल के उपभोग से अनेक रोगों के होने की संभावना रहती है, जैसे लकवा, ज्वाण्डिस, टाइफाइड, हैजा, डायरिया, टीबी, पेचिस, कंजक्टीवाइटिस आदि। यदि जल में रेडियो सक्रिय पदार्थ और लेड, क्रोमियम, आर्सेनिक जैसे विषाक्त धातु हों तो कैंसर जैसे भयंकर रोग हो सकते हैं। हमारे देश में प्रदूषित जल के सेवन से प्रतिवर्ष भारी संख्या में लोग काल के गाल में समाते जा रहे हैं। जल की मछलियाँ व अन्य जन्तुओं तथा वनस्पतियों को जल की विषाक्तता जान से मार रही है जिससे बहुत बड़ा परिस्थितिक असन्तुलन उत्पन्न होने की संभावनायें अति प्रबल हैं। प्रदूषित जल से प्राकृतिक जल का पी-एच मान इसकी ऑक्सीजन व कैल्सियम मात्रायें परिवर्तित हो जाती हैं। जस्ता व सीसा से प्रदूषित जल में कोई जीव जिन्दा नहीं रह सकता है।