फर्रुखाबाद: बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधने पहुची| कल से लेकर आज तक सामूहिक राखी बांधने के दर्जनों कार्यक्रम हुए| मगर नगर के एक मात्र अनाथालय ( जसमई रोड बाई पास स्थित छक्कू लाल बाल गृह) के 7 मासूम अनाथ बच्चो की कलाई खबर लिखने तक सूनी है| ये वो मासूम है जिन्हें या तो गरीबी के कारण इनके माँ बाप लावारिस छोड़ गए या चल बसे| इनमे से कईयों के नाम तो बाल गृह की देन है|
सुन्दर मासूम हर चेहरे की एक अलग कहानी है| इनकी बहन यहं राखी बंधने नहीं आने वाली| कईयों की तो बहनें हैं नहीं और जिनके हैं भी उन्होंने बल गृह में रह रहे भाइयों से नाता तोड़ लिया है| वे कभी वैसे भी देखने नहीं आतीं की उनका भाई किस हालत में है| इन्हें मलाल है कि उनसे कौन कहेगा भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना| बाई पास रोड पर बने बाल गृह में रह रहे 7 बच्चों ने यहाँ रह रहे बच्चों को ही अपना परिवार बना लिया है| इनमे से किसी को उसके घर वाले ट्रेन में छोड़ गए थे और किसी को यह खुद सुध नहीं कि उसे जन्म देने वाले मां- बाप कहाँ हैं| जन्म देकर छोड़ दिया और अब कोई उन्हें याद भी नहीं करता| रक्षाबंधन के दिन किस भाई को अपनी बहन की याद नहीं आती| कई को अपनी बहन के बारे में हल्की- हल्की याद है| तो कई को मालूम भी नहीं कि उनकी कोई बहन भी है| मासूम बच्चो से रिपोर्टर दीपक शुक्ल ने बात की तो उनकी आँखों में आंसू भर आये| बोले उनकी कोई बहन नहीं है| रक्षाबंधन के दिन बहन की बहुत याद आती है|
मगर इससे बड़ा सवाल ये है कि जिले के प्रथम नागरिक और नगर की प्रथम नागरिक के क्या सामाजिक कर्तव्य है? जिले के प्रशासनिक व्यवस्था के सबसे बड़े अफसर जिलाधिकारी से भी सवाल बनता है| नगर के समाजसेवी संगठनो का क्या दायित्व है? और राखी का सबसे धूम धाम से त्यौहार मनाने वाली ब्रह्मकुमारियो की सामाजिकता केवल नामी और दौलत वालो के लिए है? जिले के बड़े अफसर, बड़े नेता, चर्चित नामी चेहरे और मीडिया बन्धु बस यहीं तक सीमित है इनकी सामाजिकता| नगर में रह रहे ये 7 अनाथ बच्चे तो ऊपर वाले से बस अच्छे जीवन की दुआ कर सकते है मगर नीचे वाले तो कुछ कर सकते थे? सेन्ट्रल जेल से लेकर अग्रवाल सभा भवन धर्मशाला तक में सामूहिक रक्षाबंधन का कार्यक्रम हुआ| किसी को 250 बहनों ने राखी बाँधी तो किसी की कलाई सूनी| सवाल सवाल है इसके कई जबाब हो सकते है| जबाब उन पाठको से जो इन कथित दिखावटी समाजसेवियो की तारीफ करते है?