फर्रुखाबाद परिक्रमा: त्रिस्कृत होते गुरुजन और नेताजी के मैंगो लस्सी समारोहों में बिजली का जलवा

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

खबरीलाल विधि मंत्री के रोजा अफ्तार से लौट रहे थे। महादेवी प्रतिमा से चौक की ओर जा रहे थे। इसी बीच मुंशी हरदिल अजीज और मियां झान झरोखे पटेल पार्क से आने वाली गली से निकलते हुए मिल गए।

दुआ सलाम के बाद मियां ने खबरीलाल को छेड़ा। बताओ भाई क्या हाल चाल हैं तुम्हारे सलमान साहब के। खबरीलाल बोले अब क्या बतायें मियां। कभी कभी बड़ा अफ़सोस होता है कि इतने बड़े और महान देश में महत्वपूर्ण पदों पर कितनी घटिया और छोटी सोच के लोग बैठे हैं। उन्हें केवल और केवल अपने निजी स्वार्थों के अलावा किसी बात से कुछ भी लेना देना नहीं है।

बड़े नेताओं में बढ़ रहा है – फांसी पर चढ़ने का शौक

मुंशी हर दिल अजीज बोले। भाई खबरीलाल सीधी बात कहो। लंबी तानने की क्या जरूरत है। खबरीलाल बोले जिन लोगों ने अंग्रेजों की गुलामी की है। वह आंदोलन के नाम से ऐसे चौंकते हैं जैसे सांड लाल कपड़े को देखकर भड़क जाता है। अपनी सरकार में आम सहमति नहीं। आपकी पार्टी में आम सहमति नहीं। बात मानने पलटने और आंदोलन के बाद मानने का आपका पुराना रिकार्ड है। अब इन श्रीमान जी को कौन समझाये और याद दिलाये कि अगर आजादी के लिए क्रांतिकारियों और राष्ट्रपिता महात्मागांधी के नेतृत्व में आंदोलन न हुआ होता तब फिर यह देश आजाद नहीं होता। तत्कालीन राय बहादुरों और खान बहादुरों ने तो अंग्रेजों के तलबे चाटने की आम सहमति बना ही ली थी।

मुंशी हर दिल अजीज बोले कितने लंबे समय से जन लोकपाल बिल का मामला अटका पड़ा है। आम सहमति नहीं बन पाई। अब जब अन्ना हजारे ने आंदोलन प्रारंभ किया तब फिर आम सहमति का राग अलाप रहे हैं सलमान साहब। अन्ना के विषय में उनके आंदोलन के विषय में बिना कुछ सोंचे समझे कुछ कहने के पहले अन्ना जैसी सादगी और ईमानदारी पर आम सहमति करके दिखाओ। जन लोकपाल बिल का रास्ता स्वयं साफ हो जाएगा।

खबरीलाल बोले आज से अन्ना का अनशन शुरू हो रहा है। इस पर फिर चर्चा करेंगे। हमें तो बड़े नेताओं में फांसी पर चढ़ा देने के बढ़ रहे शौक पर चिंता हो रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान मुस्लिमों को आरक्षण के संदर्भ में सलमान मियां की वयानबाजी पर केन्द्रीय चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस जारी किया था। तब सलमान साहब ने कहा था कि वह अपना अभियान जारी रखेंगे भले ही चुनाव आयोग उन्हें फांसी पर चढ़ा दे।

मियां बोले खबरीलाल सही कह रहे हो। चुनाव आयोग का मामला लिखा पढ़ी में निपट गया। परन्तु जनता ने विधानसभा चुनावों में केवल सलमान साहब को ही नहीं उनकी गैर मुनासिब टीकाटिप्पणियों के चलते पूरी की पूरी कांग्रेस को ही सूली पर चढ़ा दिया। नई और बड़ी भूमिका की तलाश में लगे राहुलगांधी तक उत्तर प्रदेश की छोटी भूमिका में भी पूरी तरह फ्लाप हो गए।

खबरीलाल बोले अब भाजपा के तारनहार की केन्द्रीय भूमिका में आने को बेताब नरेन्द्र मोदी साहब गर्ज रहे हैं। गुजरात दंगों के लिए माफी मांगने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि भले ही उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाए। वह माफी नहीं मांगेंगे।

मुंशी हरदिल अजीज बोले यह क्या बात हुई मोदी साहब! आप तो बड़े समझदार हैं। विकास पुरुष हैं। रामभक्त हैं। गुजरात के गौरव हैं। देश के गौरव बनने की ओर अग्रसर हैं। गुजरात दंगों के समय गुजरात के मुख्यमंत्री आप थे या नहीं। फिर जब गुजरात के विकास और सारे अच्छे कार्यों का श्रेय आप बढ़ चढ़ कर ले रहे। तब फिर इस कालजयी कलंक कथा के लिए आप जिम्मेदार नहीं है। तब फिर और कौन है।

मोदी जी इतना अहंकार उचित नहीं है। राम का नाम ही मत लीजिए। राम की मर्यादा का ध्यान भी रखिए। इससे आप का गौरव बढ़ेगा। घटेगा नहीं। सलमान साहब की तरह फांसी पर चढ़ा देने की बचकानी बातें मत करिए। लोकतंत्र में जनता से बड़ा कोई नहीं है। सावरमती के संत राष्ट्र पिता महात्मागांधी ने राम को माना जाना समझा। उनकी मर्यादा का कभी तिरस्कार नहीं होने दिया। सत्य और अहिंसा के रास्ते वह पूरी दुनियां में श्रद्धा और प्रेम के पात्र बने। परन्तु नाथूराम गोडसे जैसे हत्यारों को कोई पूछता नहीं। सच्चे ह्रदय से गुजरात के दंगों के लिए माफी मांग लोगे। तब फिर छोटे नहीं हो जाओगे। बहुत बड़े हो जाओगे। सलमान साहब की तरह बात बात में फांसी पर चढ़ा देने का शौक मत पालो। वैसे जैसी आपकी मर्जी खबरीलाल इतना कहकर अपने घर चले गए।

शिक्षकों का अपमान दर अपमान

वर्तमान में कार्यरत सहित विगत दो बेसिक शिक्षा अधिकारियों के कार्यकाल में शिक्षकों का जितना अपमान, तिरस्कार, उपेक्षा और शोषण हुआ। उसकी दूसरी मिशाल मिलना मुश्किल है। शिक्षक न हुए गरीब की जोरू हो गए। जो आता वही फजीहत करता चला आता। जिलाधिकारी सहित आला अधिकारियों ने शिक्षकों की समस्याओं, परेशानियों पर मिल बैठकर बातचीत कर स्थायी समाधान निकालने की कोई कोशिश नहीं की। केवल धमकी, चेतावनी, अल्टीमेटम की आंधी चलती रही जिसमें बेचारा शिक्षक तिनके की तरह उड़ता रहा, परेशान होता रहा। हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं। छोटे छोटे विभागों के अधिकारी कर्मचारी मौज कर रहे हैं। परन्तु शिक्षकों की कोई सुनने वाला ही नहीं है। बेसिक शिक्षा विभाग सही मायने में बाबुओं के बल पर चल रहा है। शिक्षक सबसे ज्यादा चलायमान है। जब चाहो जिसे चाहो उसे कहीं भी पटक दो। परन्तु बाबू शिक्षा विभाग की अचल सम्पत्ति हैं। चंद दिनों में सारे दांव पेंच उसे सिखा देते हैं। लूट का सिलसिला जारी हो जाता है। शिक्षक रोता है, कराहता है, चिल्लाता है। परन्तु उसकी कोई सुनता नहीं। आपसी अर्न्तविरोधों के चलते शिक्षा विभाग में वह सब हो रहा है जो किसी भी रूप में क्षम्य नहीं है। परन्तु अन्याय सहकर शान्त रहना यह महादुष्कर्म है। न्यायार्थ अपने बन्धु से भी बैर लेना धर्म है। का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षकगण यह सब क्यों बर्दास्त कर रहे हैं। यह बात समझ में नहीं आती।

जुलाई समाप्त हो रही है। अगस्त के बाद शिक्षक दिवस पर बड़े-बड़े भाषण होंगे। परन्तु हालात देखकर ऐसा लगता है कि ‘बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय’ का गायन अब निरर्थक और प्रभावहीन हो गया है। बजीफा, ड्रेस, पुस्तकें, मिड डे मील, भवन निर्माण, स्थानांतरण, नियुक्ति, प्रोन्नति, समायोजन की भूल भुलैया में फंसे हमारे श्रद्धेय गुरुजन दिन पर दिन आभाहीन, प्रभावहीन, अपमानित लांक्षित होकर शोषण का शिकार हो रहे हैं। आखिर कब गांडीव उठाओगे गुरुदेव।

कथनी और करनी का भेद- सब कष्टों की जड़

भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है जो देश की मनोदशा में निराशा का संचार कर रही है। इससे देश की प्रगति बाधित होगी। महामहिम प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति के रूप में अपने पहिले संबोधन में यह बात कही। लगा देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों का हाथ देश की नब्ज पर है।

अन्ना हजारे और उनकी टीम के लोग भी यहीं कहते हैं। देश के प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत रूप से बेईमान बताने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता। पन्द्रह अगस्त तक राष्ट्र में आजादी के दीवानों, क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों की गौरवगाथा पर कार्यक्रमों की होड़ रहेगी। अच्छी-अच्छी बातें होंगीं। केवल बातें। कार्य नहीं होंगे। जो भ्रष्टाचार, बेईमानी, दिखावे  के रास्ते की ओर जाते हैं।

युवा पीढ़ी से बहुत आशायें हैं। उत्तर प्रदेश में तो और भी ज्यादा। देश के सबसे बड़े प्रदेश का सर्वाधिक युवा मुख्यमंत्री। शपथ लेते ही अपनी सम्पत्ति की घोषणा के साथ ही अपने मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों से भी यही अपेक्षा की। पहली जुलाई को अपना जन्मदिन बहुत ही सादगी से मनाया। मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों से पुनः अपनी सम्पत्ति की घोषणा करने को कहा। नतीजा कुछ भी नहीं।

शपथ लेते ही पार्टीजनों से संयम, अनुशासन के साथ जनहित में कार्य करने को कहा। पोस्टर, होर्डिंग पर रोक। झंडों के सम्बंध में दिशा निर्देश। नतीजा कुछ भी नहीं। पूरे जिले में गौर करिए- सपा पर्यवेक्षक के समक्ष जो कुछ हुआ किसी को पछतावा नहीं। अपने हाथों अपनी ही फजीहत। राशन चोरों, माफियाओं, अवसरवादियों, ठेकेदारों की पौवारह। अच्छी-अच्छी बातें लेकिन काम सब वही जिन्हें करने की मनाही है। कथनी और करनी के बीच की यह जबर्दस्त खाई। हमें कहीं का नहीं रखेगी। स्वाधीनता दिवस से पूर्व के दिनों में इस पर स्वयं विचार करिए और देश समाज और परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का सच्चे मन से पालन का संकल्प करिए।

और अंत में – मैंगो पार्टी से लस्सी समारोह तक

कहते हैं कि व्यापार हो सार्वजनिक जीवन हो, व्यवसाय हो या कुछ और जब व्यक्ति की विश्वसनीयता नहीं रहती। तब फिर उसके अपने ही कहे जाने वाले लोग उससे मुहं मोड़ लेते हैं। जिले में दो दो मंत्री हैं। दोनो ताकतवर हैं। केन्द्र सरकार को तीन वर्ष से अधिक हो गए। वायदों की झड़ी लगी थी। पैरों में घुंघुरू बांधने पर चाल देखने और बिजली न मिलने पर बिजली गिरा देने की बातें हुईं। परन्तु तीन साल में जिले को क्या मिला। घोषणाओं की ही बात करें। तब तो किसी पर अमल नहीं हुआ। हाल फिलहाल में उम्मीद भी नहीं है। ऐसे में मैंगो पार्टी और लोहाई रोड के लस्सी समारोह को ही मंत्री जी के व्यस्त कार्यक्रम की बानगी माना जा सकता है। फिर प्रत्यूश की बेबफाई का कुछ असर दिखेगा ही।

दूसरे मंत्री प्रदेश के हैं। साढ़े चार माह हो गए। अभिनंदन स्वागत समारोह का दौर धीरे-धीरे ठंडा पड़ रहा है। उपलब्धियों के नाम पर बिजली रोस्टर बदलवाने की होड़ है। उसमें भी नगर विधायक शीरत कमेटी, डा0 शफीक, ज्याउद्दीन सहित जाने कितनों की हिस्सेदारी। चलो कुछ न सही प्रायोजित कार्यक्रम सही। पार्टी परिवार नहीं है। परिवार ही पार्टी है। ग्राम प्रधानी से लेकर सांसदी जिला पंचायत अध्यक्षी सहित सब कुछ हमी को चाहिए। वरिष्ठों के सम्मेलन में बड़बोले चंपुओं के अतिरिक्त न वरिष्ठ दिखे और न कनिष्ठ। खुद ही मियां कवर खोदें खुद ही दफन हों। पिता मुख्य अतिथि आयोजक पुत्र श्री। प्रायोजक वह सब जो और चाहें कुछ भी हों। परन्तु समाजवादी कहीं से भी नहीं।

हम फिर दोहराते हैं-

किसी को क्या पड़ी सोंचे तुझे नीचा दिखाने को,
तेरे आमाल काफी हैं तेरी हस्ती मिटाने को!

चलते-चलते……………..

याद करिये विगत विधानसभा चुनाव से पहले पोस्टर और होर्डिंग लगाने का लंबा दौर किस किस ने चलाया था। इस बार लोकसभा चुनाव से पहले पोस्टर होर्डिंग का दौर कौन चला रहा है या चलवा रहा है। हम कुछ भी करें। कुछ भी कहें। लोकतंत्र में सर्वोपरि जनता है। निर्णय उसी के हाथ में है। आप यह समझते रहिए कि जनता हमारे झांपे फर्जी लालबत्ती, थानों चौकियों के फरमानों, पंचायतों से खुश होकर कमजोरों को दबाने के हमारे अभियान को नहीं समझ पायेगी। परन्तु यह जनता है। यह सब जानती है। वक्त आने पर सब हिसाब बराबर कर देगी। तुम्हारा भी और हमारा भी। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट