प्रणब दा : जो बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता था, होगा अगला राष्ट्रपति

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भारत: बचपन में प्रणब मुखर्जी स्कूल नहीं जाना चाहते थे, बल्कि पुजारी बनना चाहते थे। यह कहना है प्रणब की बड़ी बहन अन्नपूर्णा बनर्जी का। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के छोटे से शहर कीर्णाहार में अपने घर में बैठीं 83 वर्षीया अन्नपूर्णा ने कहा, “वह हमारे गांव मिराती के प्राथमिक स्कूल में पढ़ने नहीं जाना चाहता था। उसे स्कूल ले जाना मुश्किल था। एक बार मेरी मां ने बुरी तरह उसकी पिटाई कर दी थी, लेकिन वह फिर भी नहीं गया। तब मेरे पिता (कमादा कुमार मुखर्जी) ने उससे पूछा था कि वह पढ़ना चाहता है भी नहीं। इस पर प्रणब ने कहा था, ‘मेरा दाखिला कीर्णाहार शिब चंद्र ब्वॉयज स्कूल में करा दें।’ इसके बाद मेरे पिता ने स्कूल के प्रधानाध्यापक से मिलकर उसका दाखिला वहां करवाया था।”

अन्नपूर्णा ने बताया कि मुखर्जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और पूजा करना उन्हें अच्छा लगता है। उन्होंने कहा, “नेबान्न पूजा (नए चावल को खाने का त्योहार) के दौरान वह मेरे पिता को पूजा करते हुए तथा फल इत्यादि घर के देवता को चढ़ाते हुए करीब से देखता था। उसने बांस की डालियों से अस्थाई तौर पर एक कक्ष बनाया और वहां देवता की स्थापना की।”

मुखर्जी तभी से हर साल दशहरा पूजा के लिए मिराती पहुंचते हैं और करीब चार दिन तक पुजारी का वस्त्र धारण किए रहते हैं। अन्नपूर्णा के अनुसार, सार्वजनिक जीवन में सख्त छवि के बावजूद उनके भाई जिंदादिल हैं और बच्चों के साथ घुलमिलकर रहते हैं। उन्होंने कहा, “वह बहुत हंसता है। रात 11 बजे के बाद वह मेरी पोतियों के साथ खेलता है, मजाक करता है, कविता पाठ करता है तथा उनके साथ गाने गाता है।”

उन्होंने बताया कि प्रणब को शाकाहारी भोजन पसंद है। खास तौर पर बहन के हाथों का बना भोजन उन्हें खूब पसंद है। लेकिन उम्र अधिक होने की वजह से अब वह उनके लिए भोजन नहीं पका सकतीं। ऐसे में उनकी बहू प्रणब के लिए भोजन पकाएंगी। यह पूछे जाने पर कि वह प्रणब को उपहारस्वरूप क्या देंगी, उन्होंने कहा, “मैं उसे आशीर्वाद व स्नेह दूंगी।”

सरकार के नंबर 2 अब देश के नंबर 1

पिछले चार दशकों तक जनसेवा से जुड़े रहे 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी रविवार को भारत के 13वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। उथल-पुथल भरे दिनों में सरकार के संकटमोचक माने जान वाले प्रणब को समूचे राजनीतिक हलके में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के मनोनीत उम्मीदवार प्रणब अब राष्ट्रपति भवन पहुंच ही गए। रायसीना हिल्स पर ब्रिटिश शासन काल में निर्मित राष्ट्रपति भवन में 340 कमरे हैं।

अपने कांग्रेसी सहयोगियों के बीच प्रणब चाणक्य माने जाते हैं, लेकिन देशभर के लोग उनकी विद्वता और दूरदर्शिता के कायल हैं। वह व्यवहार-कुशल और संकोची हैं। कई मौकों पर उन्होंने स्वीकार किया है कि वह परिष्कृत अंग्रेजी नहीं बोल पाते। वह आत्मविश्वास से भरे हुए और विनम्र स्वभाव के हैं।

कभी शिगार के शौकीन रहे प्रणब अब धूम्रपान छोड़ चुके हैं। आज वह लोगों से इस बुरी लत को छोड़ने के लिए कहते हैं। फिल्म देखने में उनकी दिलचस्पी तो नहीं रही, सिनेमा देखने वालों के प्रति उनकी रहमदिली मई में बजट पेश करते समय दिखी थी। उन्होंने फिल्मों को सेवा कर से मुक्त रखा और कहा था कि राष्ट्रीय एकता काम रखने में यह उनका बड़ा योगदान है।

वर्ष 2006 में जब आमिर खान अभिनीत फिल्म ‘रंग दे बसंती’ रिलीज हुई थी, उस समय प्रणब रक्षा मंत्री थे। उन्होंने कहा था, “पहले मैं कुछ फिल्में देखा करता था लेकिन हाल के दिनों में ऐसा कोई मौका नहीं मिला एक मूवी को छोड़कर, जिसको देखकर मुझे लगा कि यह तो मेरे पेशे का एक हिस्सा है। वह वायुसेना पर आधारित थी..’रंग दे बसंती’।”

वह किताबें बड़े चाव से पढ़ते हैं, आधी रात तक काम करते हैं। अपने परिवार के लिए मुश्किल से वक्त निकाल पाते हैं। अपनी पत्नी से उनकी बातचीत कम ही हो पाती है। रात में सोने से पहले पत्नी को ‘गुड नाइट’ बोलना मगर नहीं भूलते। वार्षिक दुर्गा पूजा के मौके को छोड़कर वह कभी कोई पर्व नहीं मनाते। दुर्गा पूजा में वह बीरभूम जिले में स्थित अपने गांव मिरिती जरूर जाते हैं, जो कोलकाता से लगभग 200 किलोमीटर दूर है।

उनकी तेज याददाश्त, तीक्ष्ण बुद्धि और दूसरों को समझाने-बुझाने की कुशलता की सर्वत्र प्रशंसा की जाती है। तभी तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार टिप्पणी की थी कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार प्रणब के बगैर एक दिन नहीं चल सकती।

वह कांग्रेस के ऐसे नेता रहे हैं, जिन्हें संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हर मुश्किल घड़ी में उनकी ओर रुख करते थे। पार्टी में उनका स्थान एक निर्विवाद नेता के रूप में रहा। 15 जून को जब संप्रग ने उनका नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तावित किया, उस समय वह 183 में से 83 मंत्री समूहों के अध्यक्ष थे। वह विदेश, रक्षा और वित्त मंत्रालय संभाल चुके हैं।

25 वर्षो के कार्यावधि के दौरान जब भी प्रधानमंत्री देश से बाहर जाते थे, कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता प्रणब मुखर्जी ही करते थे। प्रधानमंत्री भले ही इदिरा गांधी रही हों, राजीव गांधी या मनमोहन सिंह। उनका जन्म दिसम्बर 1935 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी कांग्रेस के राजनेता थे। युवा प्रणब में राजनीति के गुण स्वाभाविक रूप से आए।

उन्होंने इतिहास, राजनीति विज्ञान और कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। राजनीति में आने से पहले उनके दो शौक थे- शिक्षण और पत्रकारिता। वह 1969 में पहली बार सांसद चुने गए थे। उस समय पश्चिम बंगाल में नक्सलवादी आंदोलन चरम पर था। लोकसभा 2004 तक वह कई बार राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाते रहे। इसके बाद से वह लगातार लोकसभा के सदस्य रहे।

प्रणब 1973 में पहली बार इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं बैंकिंग राज्यमंत्री बने। उसके बाद से वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई विभाग संभालते रहे हैं। वह 1982 में भी वित्त मंत्री बने थे।

प्रणब को एक समर्पित पारिवारिक व्यक्ति माना जाता है। उनका विवाह प्रसिद्ध रवींद्र संगीत गायिका सुर्वा से हुई थी। उनके एक बेटे और एक बेटी हैं। बेटी शर्मिष्ठा कथक नृत्यांगना हैं। बेटे अभिजीत अपने पिता के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं, वह पश्चिम बंगाल विधानसभा के सदस्य हैं।

प्रणब की कमी खलेगी : डीएमके

केंद्र में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के एक प्रमुख घटक द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी की जीत पर खुशी जताते हुए कहा कि संप्रग में उनकी कमी खलेगी। मुखर्जी से उनके आवास पर मुलाकात के बाद डीएमके नेता टी. आर. बालू ने कहा, “हमें उनकी बहुत कमी खलेगी। मेरे नेता एम. करुणानिधि तथा मेरी पार्टी मुखर्जी की जीत की खबर सुनकर खुश है।”