2 दशक से अत्याचार और भ्रष्टाचार के बीच भटक रहा उत्तर प्रदेश

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अत्याचार से निपटने को जिन्हें चुना वे जमकर भ्रष्टाचार कर गए और जब भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जिन्हें चुना वे फिर अत्याचार पर उतर आये| वर्ष 2007 में समाजवादी पार्टी की सत्ता उत्तर प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था के चलते बसपा के हाथो चली गयी| पूर्ण बहुमत से गद्दी पर बैठी मायावती और उनके कुनबे ने हिटलरशाही के अंदाज में पांच साल शासन चलाया| जाहिर है ऐसे में कानून व्यवस्था कुछ मजबूत नजर आई| मगर इस हिटलरशाही की सत्ता के पीछे का मुखौटा वर्ष 2012 आते आते उतर गया| प्रदेश में घपले घोटालो की बाढ़ आ गयी| भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार निरकुंश हो गयी| लेखपाल से लेकर मंत्री तक दोनों हाथो से जनता और जनता का धन लूटने में लग गया| पूर्ण बहुमत की खतरनाक इरादों वाली मायावती का तख्ता चुनाव में पलट गया| मगर जिन्हें चुना है, वे पुरानी परम्परा को नहीं रोक पा रहे है|

एक नमूना फर्रुखाबाद जनपद का-
पुलिस के सिपाही कितने बेलगाम हो गए हैं, इसकी बानगी जनपद में पिछले दिनों घटी कई घटनाएँ हैं| जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो जायेंगे| कायमगंज में सिपाही पर एक युवक को छत से फेक क़त्ल करने का आरोप लगा तो कुछ दिनों पहले मेरापुर के थाना इंचार्ज पर सुपारी किलिंग का| पुलिस के सिपाहियों को अजब- अजब शौक लग गए हैं| इस बदले माहौल से पुलिस महकमे की शान में भी बट्टा लग रहा है| यह अलग बात है कि पुलिस अपनों की बचत भी कर रही है और ऐसे रास्ते निकाल रही है जिससे कोई कानूनी अड़चन न पड़े| पर हकीकत क्या है यह पुलिस के आला अधिकारी भी जानते हैं|

आईये दो घटनाओं को देखें और समझें कि खाकी के कामकाज में कितना बदलाव आया है|
पहली घटना- कायमगंज में तैनात सिपाही पवन पचौरी की 23 साल के विकास उर्फ़ बंटी गंगवार से ऐसी दोस्ती हुई कि बंटी अक्सर रात में भी सिपाही के कमरे पर सो जाता था| घर के लड़के की पुलिस वाले से दोस्ती हो तो रौब झाड़ने का मौका घर वालों को भी मिलता है| घर वालों ने अपने लाडले को कभी भी यह बेमेल दोस्त्ती रोकने की सलाह नहीं दी. दोस्ती का कारण क्या हो सकता है वह भी एक नज़र में समझा जा सकता है| बंटी घर से ठीक ठाक है और ठेकेदारी का काम करता था| पीने खाने की आदत थी और हाथ खोलकर खर्च करने की भी| जाहिर है कि बंटी ने समाज में रौब गांठने के लिए ही खाकी वाले से दोस्ती की होगी| लेकिन यही दोस्ती उसकी मौत का कारण बन गयी | एक रात बंटी अपने उसी पुलिस वाले के कमरे पर रुका था| रात में क्या हुआ यह जांच का विषय हो सकता है पर सुबह उसी खाकी वाले के कमरे के पीछे बंटी की लाश मिली| बंटी की पंकज परमार और दूसरे सिपाही दिनेश से दोस्ती के बारे में बंटी के पिता अनिल गंगवार को भी मालूम था और जब लाश वहां मिली तो आरोप लगने लाजिमी थे| जो भी हो अनिल गंगवार की तहरीर पर दोनों सिपाहियों के खिलाफ रिपोर्ट लिख ली गयी| पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण गिरने से सिर में चोट होना आया| जिले के बड़े अधिकारी महकमे के आदमी को बचाने में लग गए|
दूसरी घटना- दूसरी घटना मेरापुर थाना क्षेत्र की है| मेरापुर थानाध्यक्ष महोदय दबिश मारने के लिए गाँव के प्रधान की जीप मांग कर ले गए| जीप ही नहीं प्रधान जी का ड्राइवर भी साथ ले गए| रास्ते में क्या हुआ, लौट कर ड्राइवर की लाश आई| थाना इंचार्ज ने अलग अलग मीडिया को अलग अलग बयां दिए| एक से बोले कि ड्राइवर की तवियत बिगड़ने पर बेवर में इलाज कराया| मगर डॉ साहब का नाम नहीं बता सके हाँ उन्हें डॉ की डगरी जरुर याद रही बोले डॉ एम् बी बी एस था| दूसरी मीडिया से बोले बेवर और मोहम्दाबाद के बीच मदनपुर में डॉ को दिखाया| खैर झूठ के पैर नहीं होते| पोस्ट मार्टम में पुलिस की चलनी थी सो कारण आया ह्रदय गति रुकना| मृतक दलित था और बहुत गरीब| आवाज बहुत देर तक नहीं उठी दब गयी| यह मामला फर्रुखाबाद जिले के मेरापुर थाने का था| थानाध्यक्ष ऐ के सिंह को नबीगंज में दबिश में जाना था| दरोगा जी ने प्रधान जी की बुलेरो जीप मंगाई और प्रधान जी का ही ड्राईवर लेकर निकल गए सरकारी सेवा में, रास्ते में ड्राईवर राजीव की मौत हो गयी| दरोगा जी ने ड्राइवर की लाश को मोर्चरी में लाकर रख दिया| राजीव के घर वालों को पता चला तो वे अस्पताल पहुंचे| राजीव के परिवार वालों ने जब लाश देखि तो भड़क गए| सह्रीर नीला पद चुका था, मुह से झांक आ रहा था| शरीर पर चोटों के निशाँ भी थे| मगर पोस्ट मार्टम में ऐसा कुछ नहीं निकला| दरोगा पर राजीव की हत्या करने या कराने का आरोप लगाकर जाम कर हंगामा किया| इन दोंनो घटनाओं में पुलिस ने अपनों को बचने का रास्ता निकाल लिया पर क्या इससे खाकी की बदनामी बच गयी क्यों कि हकीकत क्या है फर्रुखाबाद की जनता के जेहन में बैठ चुका है|

2002-2007 की सपा सरकार में निठारी जैसे देश के दर्दनाक काण्ड पर सपा के मंत्री शिवपाल बोले थे- ये तो छोटी मोटी घटना है, होती ही रहती है| निठारी कांड पर उनका सीओ घटना को घुमा फिरा रहा था| एसपी साहब कागजो पर अमन चैन और बेहतर कानून व्यवस्था के दस्ताबेज लखनऊ भेज रहे थे| मगर कागजो पर सुधरी कानून व्यवस्था काम नहीं आई| समाजवादी पार्टी की सरकार बनते ही मुलायम सिंह यादव के सजातीय दबंगई करने लगते है| 2007 के चुनाव हुए तो जो सपा को हरा सके उसे चुनो पर बसपा का हाथी लखनऊ पहुच गया| उनकी दबंगई से निपटने के लिए अगड़ी जात की जनता ने दलित जात के नेता को चुना|

मायावती ने पूरा काम किया| बसपा की सरकार में हरिजन एक्ट सक्रिय हो गया| चार छ: महीने में ही सैकड़ो मामले हरिजन उत्पीडन के दर्ज हो गए| उत्पीडन करने वाले सलाखों के पीछे चले गए| फिर तो बसपा को हरिजन एक्ट एक शानदार हथियार नजर आया| सैकड़ो मामले हरिजन एक्ट के दर्ज होने लगे| असली से ज्यादा बनावटी और बदले की भावना वाले| नतीजा ये हुआ कि कानून के दरवाजे पर पहुचते पहुचते हरिजन उत्पीडन के दर्ज मामले दम तोड़ने लगे| 70 फ़ीसदी से ज्यादा मामले फर्जी पाए गए| मगर दबंगई एक वर्ग की शांत हो गयी| सत्ता बदलने का इन्तजार करने लगी| सत्ता परिवर्तन के लिए एक बड़े वर्ग में उत्साह होने लगा| सिर्फ एक वर्ग को छोड़ अन्य सभी की उपेक्षा और चरम सीमा पर भ्रष्टाचार मायावती के लिए प्रदेश में अनदेखे गड्डे तैयार कर रहे थे| चुनाव हुआ तो मायावती के हाथी से निपटने के लिए साइकिल मजबूत दिखी और बहुमत से लखनऊ में जनता ने पंहुचा दिया| नौजवान मुख्यमंत्री बनेगा ये इशारे चुनाव के दौरान ही नजर आ रहे थे| अपने हाथ से बनायीं साइकिल मुलायम ने अखिलेश को थमाई और प्रदेश को कुछ नया होने का अरमान जागा|

मगर शपथ ग्रहण करने के ही दिन मंच पर हुई अराजकता ने फिल्म का ट्रेलर पेश कर दिया| जनता ने सोचा जोश है कोई बात नहीं कुछ दिन बाद अखिलेश यादव समझदार होने लगेंगे अपने कार्यकर्ताओ को अनुशासन में रहना सिखा देंगे| बहुत कुछ हुआ भी यही| सपाई अनुशासन में दिखने लगे| एक समस्या सुलटी तो दूसरी शुरू हो गयी| दबंगई! कोई भी कर सकता है| सो सबसे पहले सपा और उत्तर पुलिस का गठजोड़ हुआ| उतने ही पुलिस वाले| पहले बसपाई कहे जाते थे अब सपाई कहे जायेंगे| आखिर इन्हें ये सुनने में परहेज भी नहीं होना चाहिए| उत्तर प्रदेश की पुलिस कानून व्यवस्था का पालन करने की बजाय राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओ की सहयोगी बनना ज्यादा पसंद करने लगी है| बसपा की सरकार में बसपा के कार्यकर्ता की सुनी जाती थी, सपा की सरकार में सपाई कार्यकर्ता की| व्यवस्था और कानून के तहत इन्साफ करने में कोई दिलचस्पी नहीं| चौकी के सिपाही से लेकर जिलों के कप्तान तक यही करने में लगे है| इसके नतीजे घातक होंगे| वे भ्रष्टाचार पर जाते हैं तुम अत्याचार पर जाओगे|

आखिर बहुमत की सरकार बनने का मतलब ये नहीं निकला जा सकता की प्रदेश की जनता बहुमत में तुम्हारे काम पसंद करती है| ये लोकतंत्र है, पड़े हुए वोटो में से बहुमत गिना जाता है| मगर आज तक ये 35 फ़ीसदी से ज्यादा नहीं हो पाया है| यानि बहुमत की कहलाने वाली सरकार भी ठीक से थर्ड डिविजन भी पास नहीं होती| प्रदेश की 65 प्रतिशत आबादी की नापसंद वाली सरकार अत्याचार और भ्रष्टाचार करेगी तो सत्ता दुबारा मिलना बहुत मुश्किल है|

प्रदेश में एक बार फिर कानून व्यवस्था पटरी पर नहीं है| थाने चौकिओं में मामले दर्ज नहीं किये जा रहे| दबंग और सत्ता से जुड़े लोग तो गुंडई और अत्याचार कर ही रहे थे अब पुलिस भी निरंकुश हो चली है| कहीं थाने में दरोगा बलात्कार कर रहा है तो कहीं सुपारी लेकर पुलिस हत्या करने करवाने में जुटी है| पुलिस वालो के हाथ में डंडा है, एक के मारा दूसरे के हाथ में थमा कर कर दिया अन्दर| तो अब दलितों की बारी है दबंगई झेलने की| पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य यूपी में पिछड़ी और निचली जात के लोग अपनी पैत्रक जमीन ज्यदाद झोपडी गाँव छोड़ पलायन कर रहे है| और पुलिस अपनी रिपोर्ट में अखिलेश को सब ठीक ठाक का प्रेषण कर रही है| लोकसभा चुनाव की तैयारी है| सपा की लगभग हर कार पर लक्ष्य मिशन 2014 के स्टीकर लगे है| क्या इसी अत्याचार की दम पर| 65 फ़ीसदी जनता ने सपा को नहीं चुना है उन्हें अपना नहीं बनाया तो मिशन सफा भी हो सकता है|

प्रदेश आर्थिक रूप से बेहद पिछड़ चुका है| कानून व्यवस्था से लेकर आर्थिक मोर्चे पर देश में बहुत पीछे है| अलबत्ता भ्रष्टाचार और अत्याचार में अव्वल है| और यही अव्वलता है जो पिछले दो दशक से प्रदेश को अत्याचार और भ्रष्टाचार के बीच झुला रही है|