अगर वे अल्पसंख्यक नहीं है तो उन्हें अल्पसंख्यको को दी जाने वाली सारी सुविधाए क्यूँ दी जाती है| और अगर हैं तो कैसे और कौन से कानून/आदेश या नियम के तहत| ये सवाल जब भारत सरकार से फर्रुखाबाद के एक ग्रामीण ने सूचना के अधिकार के तहत पूछा तो भारत सरकार के हाथ पाँव फूल गए| हाथ पाँव फूलने का मतलब ये कि वे इस सवाल का कोई सीधा जबाब नहीं दे पाए अलबत्ता इशारो इशारो में जो सूचना दी उसका सार ये निकला कि भारत सरकार किसी भी नियम या कानून के तहत भारत में रहने वाले मुस्लमान नागरिको को अल्पसंख्यक नहीं मानती उन्हें अलग से मुसलमान सम्प्रदाय में गिना जाता है| अल्पसंख्यक मानने और बताने का कोई भी नियम या पैमाना भी नहीं है|
फर्रुखाबाद में गाँव के एक प्राइवेट स्कूल के मास्टर ब्रजराज सिंह राजपूत ने अप्रैल 2012 में भारत के गृह मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत सवाल पूछा था जिसका जबाब गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले महारजिस्ट्रार का कार्यालय की सामाजिक अध्ययन प्रभाग ने पत्र संख्या 28/2/2012-आर०टी०आइ०/एस० एस०, दिनांक 4 मई 2012 को भेजा| सवाल कुछ थे जबाब कुछ थे| मगर भेजने वाले अफसर बाबुल राय वरिष्ठ अनुसन्धान अधिकारी एवं केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने बड़ी सफाई से बात भी पूरी कह दी और राजनेताओ के लिए सफाई में बोलने को भी छोड़ दिया| सवाल था कि भारत में किसी भी जाति या धर्म को अल्पसंख्यक मान लेने के क्या पैमाने/नियम/कानून है? भारत में कौन कौन सी अल्पसंख्यक जातियां है और उनकी कितनी आबादी है? क्या मुसलमान अल्पसंख्यक है और उनकी कितनी आबादी है| बाबूल राय ने जबाब भेजा कि आप द्वारा जो जानकारी चाही गयी है उसमे जनगणना 2001 के अनुसार निम्न प्रकार की जानकारी है-
कुल जनसँख्या- 1,028,610328 है
1- अल्पसंख्यको की जनसंख्या में ईसाई- 24088165 (2.34 प्रतिशत), सिख-19215730 (1.87 प्रतिशत), जैन- 4225037 (0.41 प्रतिशत), बौध- 7954305 (0.77 प्रतिशत) है एवं
2- मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या 138180680 (13.43 प्रतिशत) है|
(जबाब में मुसलमानों की जनसंख्या को अल्पसंख्यक आबादी वाले कालम या पैरा के साथ नहीं लिखा गया)
कुल मिलकर भारत सरकार द्वारा जारी की गयी ये सूचना अपने आप में दर्शाती है कि मुसलमानों को भारत सरकार लिखा पड़ी में अल्पसंख्यक नहीं मानती और सरकार के पास किसी को भी अल्पसंख्यक मान लेने का कोई पैमाना या कानून या नियम नहीं है| फिर भी गृह मंत्रालय अपनी भेजी सूचना के अनुसार मुसलमानों को अल्पसंख्यक में न लिखकर अलग से मुसलमान सम्प्रदाय लिखकर भेज रहा है| यानि भारत सरकार मुसलमानों को अल्पसंख्यक नहीं मानती तो हर साल करोडो रुपये की सब्सिडी अल्पसंख्यको के नाम पर मुसलमानों को कैसे बात देती है| हालाँकि मुसलमानों में भी कुछ जातियां अल्पसंख्यको में गिनी गयी है| शिक्षा में ही अल्पसंख्यको को दी जाने वाली छात्रवृति में मुसलमानों का अलग से कोटा निर्धारित किया जाता है| अगर मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं तो कौन से नियम/कानून/पैमाने के तहत ये खैरात बटती है| लगता है केंद्र में सरकार चलाने वाले नेता और मंत्री देश की सरकार को अपनी घर की दूकान की तरह चला रहे है| जिसे चाहे जिस भाव में सौदा बेच दो| सलमान खुर्शीद पसमांदा मुसलमानों को आरक्षण देने का नया वोट बटोरू फंडा लाते है जबकि फ़कीर (मुसलमानों का एक वर्ग) पहले से ही सामान्य अल्पसंख्यक में गिने जाते है और आरक्षण का लाभ उठाते है| केंद्र में सरकार चल रही है या लालाजी की दूकान| सवाल खड़ा है और जबाब मांगेगा| ये सवाल देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के संसदीय क्षेत्र के ही एक वोटर में उठाया है| जबाब भी कानून मंत्री को देना ही पड़ेगा| आज नहीं तो कल|