फर्रुखाबाद: वक्त नूर को बेनूर कर देता हैए थोड़े से जख्म को नासूर कर देता हैए कौन चाहता है नशा करना लेकिन वक्त सबको मजबूर कर देता है। वही वक्त कल्लू के साथ भी आ गया। शहर में पनप रहे ड्रग्स और स्मैक के ठेकेदारों ने कल्लू को नशे की लत ऐसी लगायी कि फिर उसने कभी पीछे मुड़कर यह भी नहीं देखा कि वह आम दुनिया को कितना पीछे छोड़ आया है।
बात तकरीबन 15 साल पहले की है। जब कल्लू का परिवार खुशहाल और आनंद से जीवन जी रहा था। कल्लू बाडी मेकिंग के काम में अच्छा माहिर हो गया। दूर दूर से लोग कल्लू से काम कराने के लिए आते थे। कहते हैं जब पैसा बढ़ता है तो यार दोस्त भी अपने आप बढ़ जाते हैं और चिपकते तो ऐसे हैं जैसे शहद में मक्खी। ऐसा ही कुछ कल्लू के साथ हुआ। आस पास के कुछ खास नशेड़ी किस्म के लोगों की नजर कल्लू के धंधे की तरफ पड़ी तो उन्होंने भी सोचा कि अगर इसे भी नशे का आदी बना दिया जाये तो फिर पैसे की क्या कमी। खुद भी पियेगा और मुझे भी पिलायेगा और फिर क्या था। कल्लू को अपनी जेब से नशा कराने में जुट गये उसके कुछ खास दोस्त।
धीरे.धीरे दारूए गांजाए स्मैकए चरस व अन्य जो भी नशे शहर में फल फूल रहे थे सभी का ग्राहक कल्लू बन गया और उसके सारे दोस्त अंदर ही अंदर मुस्करा रहे थे। दौर शुरू हुआ कल्लू की बर्बादी का। धीरे.धीरे कल्लू नशे की गर्त में गिरता चला गयाए गिरता चला गया। अब बगैर नश में इंजेक्शन द्वारा नशा भरे कल्लू को चैन नहीं आता था। जिससे अब उसका कारोबार धीरे.धीरे ठप होने लगा। घर में भी कलह ने प्रवेश कर लिया। नशे की ऐसी लत चढ़ी कि कल्लू का घर भी न बस सका और रुपये को वह मोहताज हो गया।
यह सिर्फ एक कल्लू की ही नहीं शहर में न जाने कितने ऐसे सीधे साधे लोग हैं जो आये दिन किसी न किसी नशेड़ी दोस्त के शिकंजे में फंसकर अपने आपको नशे का ग्राहक बना देते हैं। प्रशासन इस तरफ बिलकुल भी चौकन्ना नहीं हैए उसे तो बस इतना ही आता है कि जिसे चाहो उसे लकूला स्थित दारू निर्माण केन्द्र से पांच लीटर दारू लाकर कच्ची दारू बनाने में चालान कर दिया। शीघ्र ही अगर प्रशासन ने इस तरह के नशे के व्यापार पर रोक नहीं लगायी तो न जाने कितने घर बसने से पहले ही उजड़ जायेंगेण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्।