गुरुपूर्णिमा : ..तस्मै श्रीगुरुवे नम:

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फर्रुखाबाद : अषाण मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन किया गया दान पुण्य अत्यधिक लाभप्रद होता है। मंगलवार को इसी उपलक्ष में शहर के मंदिरों में श्रद्धालुओ का जमावड़ा रहा। लोगों ने पवित्र गंगा में डुबकी लगा व प्रसाद आदि वितरित कर पुण्य लाभ अर्जित किया। शहर के लोगों ने घटियाघाट व अन्य घाटों पर बड़ी ही श्रद्धा से स्नान किया व घरों में भी पूजा पाठ का दौर चलता रहा। गुरु पूर्णिमा पर लोगों ने अपने_अपने गुरुओ को नमन किया। भारतीय परम्परा में भी गुरु का सम्मान करना पुराना इतिहास है। जिसे आज भी लोग कायम किये हैं।

गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।

गुरु: साक्षात्परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नम:।

गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। आज गुरु पूर्णिमा यानी गुरु के पूजन का पर्व है। गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का सबसे पुरातन पहलू है। भारतीय वैदिक परंपरा का तो आधार ही गुरु-शिष्य थे। वेदों को श्रुति कहा जाता है, यानी जो गुरु के मुख से सुन कर शिष्यों ने आत्मसात किया और पीढ़ी दर पीढ़ी उसे आगे बढ़ाया। लिहाजा गुरु पर्व का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। आज भी आध्यात्मिक गुरु-शिष्य परंपरा बड़े पैमाने पर हमारे यहां प्रचलित है। गुरुपूर्णिमा के दिन पूरे भारत में लोगो अपने गुरु की आराधना करते हैं। संतों के आश्रमों में शिष्यों का तांता लग जाता है। दान, स्नान और पूजापाठ का इस दिन विशेष महत्व बताया गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरुपूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शाति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान पाने के अपने कर्तव्य की याद दिलाने वाला, मन में दैवी गुणों से विभूषित करनेवाला, सद्गुरु के प्रेम और ज्ञान की गंगा में बारंबार डूबकी लगाने हेतु प्रोत्साहन देने वाला है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान वेद व्यास ने पंचम वेद महाभारत की रचना इसी पूर्णिमा के दिन की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्य ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेद व्यास जी का पूजन किया और तभी से व्यास पूर्णिमा मनाई जा रही है।

अपने जीवन में गुरुका महत्त्व !

 

गुरुका महत्त्व और गुरुशब्दका अर्थ

अपने देशकी विशेषता अर्थात् गुरु-शिष्य परंपरा । गुरु ही हमें अज्ञानसे बाहर निकालते हैं । शिक्षक ये अपने गुरु ही हैं । इस कारण हमें गुरुपूर्णिमाके दिन ही ‘शिक्षकदिन’ मनाकर उनके चरणोंमें कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । प्रथम हम ‘गुरु’ इस शब्दका अर्थ समझ लेते हैं । ‘गु’ अर्थात् अंधकार और ‘रु’ अर्थात् नष्ट करना ।’ गुरु हमारे जीवनके विकारोंका अज्ञान दूर कर आनंमय जीवनयापन वैâसे करें, वह हमें सिखाता है ।


मनुष्यके जीवन में तीन गुरु !

हम पर विविध संस्कार कर हमें समाजसे एकरूप होना सीखानेवाले मां-बाप ही हमारे प्रथम गुरु ! : बचपनमें मां-पिताजी हमें हर बात सीखाते हैं । उचित क्या और अनुचित क्या है, इसका भान कर देते हैं । साथ ही हमें योग्य आचरण करना सीखाते हैं । उदा.

१. सुबह शीघ्र उठना, भूमिको वंदन करना, ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी’ यह श्लोक पठन करना ।
२. बडोंको नमस्कार क्यों और कैसे करें?
३. शामको ‘शुभंकरोती’ कहना, भगवानके आगे दीपक जलाना; क्योंकी दीपक अंधःकार नष्ट करता है ।
४. मित्रोंको मिलनेके पश्चात नमस्कार करें; कारण प्रत्येक व्यक्तिमें ईश्वर होता है ।
५. साथ ही हमारे घरमें कोई मेहमान आए, तो उनका स्वागत ईश्वरसमान करें ।

ऐसी सभी बातें मां-पिताजी हमें सीखाते हैं, अर्थात् हमारे प्रथम गुरु मां-पिताजी हैं; अतएव हमें उनका सम्मान करना चाहिए और प्रतिदिन उन्हें नमस्कार करना चाहिए । अब बताइए कि, आपमेंसे कितने बच्चे अपने मां-पिताजीको प्रतिदिन नमस्कार करते हैं ? आज हम निश्चय करेंगे कि,‘मां-पिताजीको प्रतिदिन नमस्कार करेंगे ।’ यही उनके प्रति वास्तविक कृतज्ञता है ।

हमें अनेक बातें सीखाकर सभी अंगोंसे परिपूर्ण करनेवाले शिक्षक, ही हमारे दूसरे गुरु !  वास्तवमें हमें शिक्षकदिन गुरुपूर्णिमाके दिन मनाना चाहिए और इस दिन उन्हें भावपूर्ण नमस्कार कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए । गुरु अर्थात् हमारे शिक्षक और शिष्य अर्थात् हम होते हैं; अतएव हमें इसी दिन शिक्षकदिन मनाना चाहिए ।
शिक्षक हमें अनेक विषयोंका ज्ञान देते हैं । वे इतिहास सीखाते हैं । उससे वे हमारा राष्ट्राभिमान जागृत करते हैं । ‘हमें हमारे लिए नहीं, अपितु राष्ट्र हेतु जीना है ’ ऐसा व्यापक विचार वे हमें प्रदान करते हैं । भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव इत्यादि क्रांतिकारकोंने  राष्ट्र हेतु प्राणार्पण किया, उनके अनुसार हमें त्याग करना चाहिए । ‘त्याग ही हमारे जीवनका आधार है’, यह हमें शिक्षक बताते हैं । त्यागी बच्चे ही राष्ट्रकी रक्षा कर सकते हैं । इतिहासद्वारा हमारे आदर्श निश्चित होते हैं, उदा. छत्रपति शिवाजी महाराज, वीर सावरकर ही हमारे वास्तविक आदर्श हैं । उनके अनुसार हमें त्यागी वृत्तिका बनना चाहिए ।

विविध विषय निःस्वार्थी वृत्तिसे सीखकर हमें विकासके मार्गपर ले जानेवाले हमारे शिक्षक !  शिक्षक हमें मराठी भाषा सीखाते हैं । उसकेद्वारा वे हममें मातृभाषाका अभिमान जागृत करते हैं और रामायण, महाभारत, दासबोध जैसे ग्रंथोंका अभ्यास करनेमें रस भी निर्माण करते हैं । उससे वे हमें हमारे संतोंकी पहचान करा देते हैं और ‘उनके समान हम बनें’, इसके लिए प्रयास भी करते हैं । साथ ही वे हमें समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र जैसे विषय सीखाते हैं । हम जिस समाजमें रहते हैं , उस समाजका ऋण हमपर रहता है, इस बातका भान वे करा देते हैं । अर्थशास्त्र द्वारा योग्य मार्गसे (धर्मसे) पैसा कमाएं और अयोग्य मार्गसे(अधर्मसे) पैसा ना कमाएं, यह भी सीखाते हैं । आज हम देखते हैं कि, संपूर्ण देश भ्रष्टाचारसे पीडित है । परंतु इनमें परिवर्तन करना है, ऐसा ही शिक्षकोंको लगता है ।

ऐसे महान शिक्षकोंके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका दिन अर्थात् गुरुपूर्णिमा ! विद्यार्थी मित्रो, अब आपके ध्यानमें आया होगा कि, ‘जीवनके विविध मूल्य शिक्षक हमें सीखाते हैं और वे कृत्यमें लाने हेतु आवश्यकताके अनुसार दंड भी देते हैं । इसके पीछे उनका शुद्ध उद्देश होता है कि, हम आदर्श जीवन जीएं ।’ कुछ बच्चे शिक्षकोंकी  चेष्टा करते हैं, यह पाप है । इसलिए हमें उनकी क्षमा मांगकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए ।
३. आध्यात्मिक गुरु

आध्यात्मिक गुरुद्वारा हमारे जीवनका वास्तविक अर्थ विशद करना : आजतक हमने इस भौतिक विश्वके संदर्भमें मार्गदर्शन करनेवाले गुरु देखे । अब हम आध्यात्मिक गुरु वैâसे होते हैं, यह देखेंगे । तीसरे गुरु अर्थात् आध्यात्मिक गुरु ! प्रत्येक व्यक्तिके जीवनमें गुरु आते हैं । जैसे श्रीकृष्ण-अर्जुन, श्री रामकृष्ण परमहंस-स्वामी विवेकानंद, समर्थ रामदासस्वामी-शिवाजी महाराज ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा ही हमारे देशकी विशेषता है ।

आध्यात्मिक गुरु हमें अपनी वास्तविक पहचान कर देते हैं । हमारे अज्ञानके कारण हमें ऐसा  लगता है कि, मैं एक व्यक्ति हूं; परंतु वास्तविक रूपसे हम व्यक्ति न होकर आत्मा हैं, अर्थात् ईश्वर ही हममें रहकर प्रत्येक कृत्य करता है; परंतु अहंकाररूपी अज्ञानके कारण हमें लगता है कि, ‘हम प्रत्येक कृत्य करते हैं।’ सोचो, आत्मा हममेंसे निकल गई, तो हम क्या कर सकते हैं ? तब ईश्वर ही सभी कुछ करता है । वह अन्नका पचन करता है, वही रक्त बनाता है, इसका भान हमें गुरु कर देते हैं ।

आनंदी होनेका सरल मार्ग, अर्थात् अपने हाथोंसे हुई प्रत्येक चूकके मूल दोषोंको ढूंढकर उसे दूर करनेका प्रयत्न करना : अहंकारके कारण व्यक्ति स्वयंको ईश्वरसे अलग समझते हैं, तथा जीवनमें सतत दुःखी रहता है । इसलिए यदि हमें जीवनमें आध्यात्मिक गुरुका लाभ चाहिए, तो हमें प्रार्थना, कृतज्ञता एवं नामजप अधिकाधिक करना चाहिए । कोई भी कृत्य करनेसे पूर्व सर्वप्रथम कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । साथ ही कृत्य उत्तम रीतिसे हो, इस कारण प्रार्थना करें । हमपर गुरुकी कृपा हो; इसलिए प्रतिदिन हमसे होनेवाली चूकोंको लिखकर उसका मूल दोष ढूंढें । इस कारण हमारे दोष शीघ्र दूर होकर हममें ईशवरीय गुण आएंगें तथा हम आनंदित रह सकते हैं । ’