खबरीलाल का रोजनामचा: पेड न्यूज देने वालों की मांगे खैर, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर

Uncategorized

सोनाली गुप्ता के यहां से खबरीलाल चल दिए। मन में थोड़ी सी उदासी थी। कैसी है राजनीति आज की। किसके लिए क्या कहा जाए। गाढ़ी के वाईपर की तर्ज पर हिलते हाथ। भावनाशून्य हाथ जोड़ना और पैलगी। स्टीरियो टाइप वायदे। मत और समर्थन की याचना। उनसे ज्यादा औपचारिक मतदाता। सभी को मत और समर्थन देने का एक सा वायदा। इसी भंवर जाल में फंसे प्रत्याशी और उनके समर्थक। यह भ्रमजाल टूटता है मतगणना के बाद। केवल एक ही जीतता है। बांकी सब हारते हैं। यह कहने लगते हैं, विशेष रूप से वह लोग जिन्होंने जीतने वाले उम्मीदवार को वोट ही नहीं दिया, हमतो पहिले ही कहते थे। भैया के मुकाबले कोई जीतेगा ही नहीं। जीता हुआ प्रत्याशी सब जानता है फिर भी कुछ नहीं कह सकता। समर्थन करने वाले, नारे लगाने वाले, पोस्टर चिपकाने वाले, दिन रात एक करने वाले पीछे हो जाते हैं। अवसरवादी और ठेकेदार भारी मालाओं, रायफलधारियों और गाड़ियों के लंबे काफिले के साथ आगे हो जाते हैं।

खबरीलाल कुचिया, बजरिया, दिलावरजंग आदि मोहल्लों की गलियों में पूरे तीन घंटे घूमते रहे। हालचाल लेते रहे। सभासद प्रत्याशियों के समर्थक झुंड बनाए परचे बांटते, स्टीकर चिपकाते, अस्थायी चुनाव कार्यालयों में रणनीति बनाते हुए मिले। चार छः झुंड में चबूतरों, घर के बाहर कुर्सियों, मंदिरों पर गर्मी से निजात पाने को बैठे लोगों में बस चुनाव की चर्चा हो रही थी। बातें खबरीलाल के कानों में भी पड़ रहीं थीं। परन्तु खबरीलाल एक गली से दूसरी गली चले ही जा रहे थे। दुआ सलाम, राम जुहार भी चल रही थी। परन्तु खबरीलाल की तरफ से कोई गर्मजोशी नहीं थी। चलते जा रहे थे सोंचते जा रहे थे। काहे के सम्बंध। कैसा परिवार, कैसी निष्ठा, कैसी आस्था। लोग जिंदगी भर चाहे अनचाहे सम्बंधों को ढोते हैं। अचानक कुछ ऐसा घट जाता है कि सारे सम्बंध रिश्ते झूठे लगने लगते हैं। आदमी अपने आपको ठगा हुआ महसूस करने लगता है। परन्तु किसी को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। खबरीलाल जैसे सोनाली गुप्ता और उनके पति को समझाने के अंदाज में कह रहे थे। लेकिन अन्याय करने वाले का विरोध केवल इस लिए न किया जाए कि वह बहुत ताकतवर है। यह कायरता है। इसलिए कहा गया है कि अन्याय करने वाले से अन्याय सहने वाला अधिक जिम्मेदार है। सच बात यह है-

अन्याय सह कर शांत रहना यह यहां दुष्कर्म है,
न्यायार्थ अपने बंधु से भी बैर लेना धर्म है।

खबरीलाल और जाने कितनी देर इसी तरह घूमते रहते। इसी बीच पीछे से किसी ने हाथ कंधे पर रखा। खबरीलाल ने सर उठाकर देखा। सामने खड़े व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा। कहां-कहां नहीं देखा आपको। सोनाली गुप्ता के मकान से जब आप चले थे। तभी मनोज भैया ने गाढ़ी तिकोना चौकी के पास खड़ी करके हमें आपको खोजने भेजा। आप सब्जी मण्डी से कुचिया मोहल्ले होकर चाहें जहां भी गए हों। आपको हम ढाई तीन घंटे से खोज रहे हैं। जिससे भी पूछो एक ही बात कहता हां अभी पांच मिनट ही हुए इधर से निकले। कुछ अनमने से दिख रहे थे। हमारी रामजुहार का पहिले की तरह जबाव नहीं दिए। चाय पानी के लिए रोकते रहे रुके नहीं। हर जगह लोग यही कह रहे थे कि खबरीलाल जैसे खिलंदड़े और मस्त मौला आदमी को हमने इतना खामोश पहिले कभी नहीं देखा।

खबरीलाल बोले ठीक कहते हो भैया। आज सचमुच मन बहुत उदास है। राजनीति के मैदान में रिश्तों और सम्बंधों की ऐसी छीछालेदर और नाफरमानी अवमानना हमने आज तक नहीं देखी। अब तो सवाल यह है कि कौन किसका साथ दे। कौन कब कहां रिश्तों, सम्बंधों को धता बताकर अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति में लग जाए। भैया आज हम तुम्हारे मनोज भैया और तुम्हारी वत्सला भाभी से नहीं मिलेंगे। आज हम जब तक पूरी तरह थक नहीं जायेंगे। ऐसे ही गली कूंचों मकानों की खाक छानेंगे। चुनाव अपनी जगह है। राजनीति अपनी जगह है। परन्तु हमें इस नगर की गंगाजमुनी तहजीब को बनाए रखना है। जिसे बिगाड़ने का पूरा खेल वोटों के सौदागरों ने पूरी मुस्तैदी से किया है। ऐसा नहीं करेंगे तब हमको रात में नींद नहीं आएगी।

मनोज अग्रवाल का संदेश वाहक बोला। आपकी बात खबरीलाल जी पूरी तरह से सही है। परन्तु हम जाकर क्या कहें। खबरीलाल बोले अरे जाओ यार जो मर्जी हो कह देना। तुम नेता लोग बहाने बनाने में विशेषज्ञ हो। कुछ भी बहाना न सूझे कह देना बहुत खोजा खबरीलाल मिले नहीं। फिर हम किसी समय चौक की तरफ आयेंगे तब मिल लेंगे। खबरीलाल बोले हमसे मिलने को उतावले न हो। हमसे मिलने में क्या होगा। पूरे कार्यकाल में अपने नगर पालिका क्षेत्र में गाड़ी के काले शीशे चढ़ाकर घूमने के स्थान पर पैदल, रिक्शा या मोटरसाइकिल से चलते रहते। तब फिर आज पति पत्नी को गर्मी में इस तरह पसीना नहीं बहाना पड़ता।

संदेशवाहक ने जाने की जल्दवाजी नहीं दिखाई। चुपचाप हाथ जोड़ खड़ा रहा। खबरीलाल बोले अब हमें जाने दो। जो नेता और छात्र रोज पढ़ता है। उसे चुनाव/परीक्षा के दिनों में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती जितनी तुम्हारे मनोज भैया और वत्सला भाभी को करनी पड़ रही है। लोगों ने उन्हें पिछले चुनाव में दमदमी माई के विरुद्व इसलिए जिताया था कि उन्हें लूट, खसोट, भ्रष्टाचार और मनमानी के विरुद्व अच्छे परिवर्तन की उम्मीद थी। अब यदि पांच साल के कार्यकाल में सार्थक परिवर्तन हुआ होगा। तब फिर तुम्हारे भैया की तरह तुम्हारी वत्सला भाभी जीत जायेंगी। खबरीलाल बोले अच्छा अब तुम जाओ और हमें भी जाने दो।

अन्ततः संदेश वाहक ने खबरीलाल को अभिवादन कर जाने में ही अपनी भलाई समझी। खबरीलाल फिर अपने मिशन पर निकल पड़े। एक्साइज इंस्पेक्टर की तर्ज पर शराब के एक ठेके की ओर बढ़ गए। सेल्समैन से पूछा पिछले महीने और इस महीने में कितना उठान किया। दोनो महीनों के उठान में जबर्दस्त अंतर था। बोले वाइस जून से शराब के ठेके बंद हो जायेंगे। जून में जबर्दस्त गर्मी है। फिर इस महीने इतना उठान क्यों। सहालग भी ज्यादा नहीं है। सेल्समैन हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। काहे मजाक करते हो खबरीलाल जी। आप तो सब जानते हैं। क्या कुछ आपसे छुपा हुआ। मालिक ठेकेदार का कहना है कि यदि फरवरी/मार्च (विधानसभा चुनाव के दौरान) से जून में कम उठान हुआ तब फिर हम यही मानेंगे कि ठेके की आड़ में कच्ची शराब की विक्री करवा रहे हो। ऐसे में हमारे पास तुम्हारी नौकरी लेने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होगा।

खबरीलाल बोले यहां भी नौकरी, जान का खतरा है। दारू के बाद अब मीडिया की बारी है। अभी तक ‘पेड न्यूज’ का बाजार गर्म था। ढोल नगाड़ा, ताशा बाजा, हार फूल माला और डिजिटल कैमरा। साथ में कथित डील के नाम पर मोटा लिफाफा। मीडिया खड़ा बजार में पेड न्यूज देने वालों की मांगे खैर, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। मुख्यालय और स्थानीय लोगों में खींचतान हुई। तब फिर खुली बेशर्मी पर आ गए। पेड न्यूज प्लस विज्ञापन सब एक ही तर्ज पर बराबर जो माल खर्च करे उसी का भला। बाकी सब तमाशा देखो लला। सब जीत रहे हैं। सब धुआंधार जनसम्पर्क कर रहे हैं। समर्थन से सब गदगद हैं। विकास की गंगा बहाने को सब तैयार हैं। अभी तो सब चुनाव जीतने के लिए पैसा, दारू, विरादरी का खेल खेल रहे हैं। अब जो भी जीतेगा करोड़ों रुपया खर्च कर। उसमें आप (मतदाता) ईमानदार रहने की उम्मीद करते हो। तब फिर आपकी बुद्धि पर खबरीलाल ही नहीं सभी को तरस आयेगा।

आज बस केवल इतना ही। जय हिन्द

सतीश दीक्षित
एडवोकेट