मुंशी हरदिल अजीज और मियां झान झरोखे स्थानीय निकाय चुनाव की खाक छानकर आए। दोनो ने एक दूसरे को अपनी-अपनी बात बताई। दोनो ही इस बात पर पूरी तरह सहमत थे कि स्थानीय निकाय चुनाव में परिणाम चाहे कुछ भी हों। परन्तु केन्द्र और प्रांत में सत्ताधारी दलों ने इन चुनावों में जो रीति अपनायी है। इससे आगे आने वाले दिनों में उनके इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे। इनके स्थानीय दिग्गज नेता गली-गली मुहल्ले-मुहल्ले हंसी के पात्र बनेंगे। सपा तो सपा है कांग्रेस को जिले में किरकिरी कांग्रेस कहना ही ठीक होगा।
मियां झान झरोखे बोले कल जब से लौटे हैं। तबसे सैकड़ों लोगों ने सपा के कथित समर्थन पर उंगलियां उठाई हैं। किसी से पूछो भइया मेरे सपा समर्थन का जिला कार्यकारिणी का प्रस्ताव कहां है। पार्टी के तीनो विधायकों का संस्तुति पत्र कहां है। प्रदेश नेतृत्व का समर्थननामा कहां है। जिसे समर्थन दिया है उसकी साधारण सदस्यता सक्रिय सदस्यता और समाजवादी बुलेटिन की आजीवन सदस्यता की रसीद कहां है। इस बात पर सबके सब बगलें झांकने लगते हैं। रेलवे रोड के एक आलीशान रेस्टोरेंट में चाय की चुस्कियों के बीच मुंशीहर दिल अजीज बोले। क्या हो गया मियां बड़ी पार्टियों के बड़े नेताओं की सोच को। इतनी घटिया सोच होगी। हम तो सोच भी नहीं सकते थे। हमें अब ऐसा लगने लगा है कि इन नेताओं को अपने परिवारीजनों के सिवाय अन्य किसी पर रत्तीभर भी भरोसा नहीं है।
मियां झान झरोखे बोले मुंशी बात बिलकुल सही है। व्यक्तियों का अहंकार उनके कद से भी बहुत बड़ा हो गया है। चार दिन की चांदनी में वह इतनी मनमानी कर डालना चाहते कि जिससे पीड़ित और प्रभावित लोग उसे लंबे समय तक याद करते रहें। ऐसे लोग भाईचारे, प्रेम व्यवहार, पार्टी की रीति, नीति से लोगों को अपने साथ जोड़कर रखना नहीं चाहते। अपने प्रभाव पद रुतवे और दादागीरी के बल पर सबको दबाकर रखना चाहते हैं। यह जो कहें उसे मानो क्योंकि वह पत्थर की लकीर है। परन्तु यह वक्त अपने पर कभी किसी कार्यकर्ता के साथ मुस्तैदी से खड़े नहीं होंगे। बुरे वक्त पर हाल इनका भी यही होता है।
मुंशी हरदिल अजीज बोले जिले को पश्चिमी छोर पर पुराण प्रसिद्ध कंपिल नगरी छोटी सी टाउन एरिया है। ऊपर से नीचे तक आए दिन इसके विकास सुधार की बातें होती हैं। गिने चुने उम्मीदवार ही हैं। इनमें एक प्रत्याशी पार्टी के प्रति समर्पित निष्ठावान कार्यकर्ता है। परन्तु जिला संगठन और स्थानीय विधायक ने उसे पार्टी का समर्थन देने की हिम्मत नहीं दिखाई।
मियां बोले जहां समर्थन नहीं देना है। वहां प्रदेश नेतृत्व की दुहाई दी जाती है। कमालगंज जिला मुख्यालय से मात्र ग्यारह किलामीटर दूर है। यहां भी पार्टी के स्थानीय विधायक और जिला संगठन ने अपने किसी कार्यकर्ता को समर्थन देने की हिम्मत नहीं दिखाई।
मुंशी बोले जिले में इस समय जिनके नाम का डंका बज रहा है। विकास के कार्यों को आगे बढ़ाने के बजाय वह अपने सजातीय विरोधियों को ही ठिकाने लगाने में लगे हुए हैं। उनके क्षेत्र में ही मोहम्मदाबाद टाउन एरिया है। मंत्री विधायक, जिलाध्यक्ष के करीवियों, सजातीयों की भरमार है। परन्तु किसी भी प्रत्याशी को पार्टी समर्थन देने की हिम्मत नहीं दिखाई। कहते हैं जो जीतेगा झक मारकर पार्टी में आएगा। सरकार तो हमारी है। पता नहीं फर्रुखाबाद में समर्थन देने की क्या जल्दी थी।
मियां झान झरोखे बोले अरे मुंशी गजब हो गया कायमगंज और शमशाबाद में। कथित गलत धंधों के बल पर कुछ ही समय में धन कुबेर हो गया एक नेता एक प्रत्याशी का नामांकन निरस्त कराने उच्च न्यायालय तक गया। हाथ मलता निराश होकर लौट आया। इस नेता को मृदुभाषी से अहंकारी बनाने में पार्टी के ही उपकृत नेताओं का योगदान है। केन्द्रीय मंत्री और सांसद के गृह नगर में कांग्रेस की दुहाई देने वाला कोई नहीं मिला। वहीं सपा के दिग्गज नेताओं ने इसकी जरूरत नहीं समझी कि इस विवाद को समाप्त करायें। सपा के समर्थन को यहां लोगों ने अपनी नाक का सवाल बना लिया। केन्द्रीय मंत्री छोटे चुनाव की बात नहीं करते। क्योंकि उनकी पत्नी की जमानत जप्त हो चुकी है। उनकी पार्टी में सपा से आए नेता वापिस सपा में जा चुके हैं।
मुंशी हरदिल अजीज बोले शमशाबाद की बात ही निराली है। जिस प्रत्याशी और पूर्व चेयरमैन को पार्टी के दिग्गज नेता ने सपा की सदस्यता गृहण कराई थी। छात्र जीवन से ही इटावा में अलीगढ़ में पढ़ते हुए जो पार्टी के विभिन्न पदों पर रहे। पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे। ऐसे प्रत्याशी को भी पार्टी संगठन ने अपना समर्थन देने की हिम्मत नहीं दिखाई।
मुंशी बोले जिला मुख्यालय की नगर पालिका में जो हो रहा है। वह तो सब देख ही रहे हैं। अपनों पे सितम गैरों पे करम हो रहा है। सत्यप्रकाश यादव अपने आपको जिले में सपा सुप्रीमो के सबसे नजदीक समझते थे। पार्टी के स्थानीय नेताओं ने उनकी वह फजीहत की कि लखनऊ, दिल्ली धक्के खाने के बाद पत्नी को चुनाव मैदान से हटाने की ही घोषणा कर दी।
मुंशी हरदिल अजीज बोले मई 1963 के डा0 लोहिया के चुनाव से समाजवादी आंदोलन से जुड़े अद्दा (भजनलाल गुप्ता जी) बजरिया वालों का परिवार आज कितना हताश निराश और अपने को अपमानित समझ रहा होगा। अद्दा डा0 लोहिया के चुनाव में अपने लाखों के प्याज आलू आदि के धंधे और कांग्रेस के दबाव धौस धमकी की परवाह न करके बंगाली होटल में घंटों बैठकर युवाओं को प्रोत्साहित करते थे। डा0 लोहिया से नौजवानों को जोड़ते थे। उनके बड़े बेटे किशनलाल गुप्ता को स्वर्गवासी हुए एक साल भी नहीं हुआ। अभी एक महीना नहीं हुआ। अद्दा के छोटे बेटे 75 वर्षीय श्यामप्रकाश गुप्ता को लखनऊ के लोहिया ट्रस्ट में स्वयं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक भव्य समारोह में सम्मानित किया। परन्तु सवर्गीय किशनलाल गुप्ता की पुत्रवधू सोनाली गुप्ता अध्यक्ष पद की प्रत्याशी हैं। पार्टी स्थानीय नेताओं ने अपनी मनमानी का नायाब नमूना पेश करते हुए उसे पार्टी का समर्थन न देकर उस व्यक्ति को समर्थन दिया जो कल तक बसपा में थे। समाजवादी पार्टी और आंदोलन से उसका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं रहा। अब आप बताइए इसे क्या कहा जाए। मुंशी हरदिल अजीज बोले हम तो पिछले चुनाव की तरह फिर वही दोहरायेंगे। –
किसी को क्या पड़ी सोचे तुम्हे नीचा दिखाने को,
तेरे आमाल काफी हैं तेरी हस्ती मिटाने को।
मियां बोले हम इन हालातों पर फिर वही बात दोहरायंगे।
जो मान जाये वह सपाई क्या,
जो जलेबी न बनाये वह हलवाई क्या।
और अंत में……… ए भाई जरा देख के चलो
हमने पिछले सप्ताह भी आपसे यही कहा था कि ए भाई जरा देख के चलो आगे ही नहीं पीछे भी। दायें ही नहीं बायें भी। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि शानदार बहुमत से प्रदेश में सरकार बनाने वाली पार्टी सत्तारूढ़ होने के तीन माह के अंदर होने वाले पहले उपचुनाव में तीसरे नम्बर पर रही हो। वह भी तब जब स्वयं मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में गए और सपा प्रत्याशी मुख्यमंत्री का बहुत ही नजदीकी पार्टी का राष्ट्रीय पदाधिकारी हो। जीतता तो शतप्रतिशत मंत्री बनता। परन्तु जनता ने सपा सरकार और मुख्ण्यमंत्री को भी प्रत्याशी संजय लाठर के साथ मथुरा जनपद की भांट विधानसभा सीट पर निराश किया। जीता तृणमूल, कांग्रेस प्रत्याशी श्यामसुन्दर शर्मा, जिसके विरुद्व अपने नगर विधायक के साथ लखनऊ में जालसाजी व आर हेराफेरी का मुकदमा दौरान चुनाव कायम कराया गया था। हम फिर यही कहते हैं ए भाई जरा देख के चलो, इतराओ नहीं। यह जनता है यह फर्श से अर्श पर पहुंचान में देर नहीं करती।
एहसास बढ़ा देता है,
हर दर्द की शिद्दत,
महसूस करोगे!
तो कसक और बढ़ेगी।
चलते-चलते……………...
फुरफुर मियां इस नगर पालिका परिषद चुनाव में बार बार याद आते हैं। सर पर गोल टोपी, आंखों पर चश्मा। कुर्ता, पायजामा और हर एक से बेटा, भतीजे और भाई जान का संबोधन। सादगी की मिशाल थे फुरफुर मियां चाहे सभासद रहे हों चाहे चेयरमैन। पालिका के अभी हाल में ही सेवानिवृत्त हुए और कई पालिका अध्यक्षों को झेल चुके, घाट लगा चुके वरिष्ठ अधिकारी का कहना है फुरफुर मियां बहुत जल्दी मान जाते थे। वह सादगी का दौर था। आज तो सत्ताधारी दल का झूठा सच्चा समर्थन अर्जित करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाने वाले धन्ना सेठ थैलियां लिए तैयार बैठे हैं। जय हिन्द!
सतीश दीक्षित
एडवोकेट