खबरीलाल का रोजनामचा- ठेकेदारी का राजनैतिक समर्थन

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खबरीलाल गली-गली मुहल्ले-मुहल्ले आचार संहिता की खुलेआम उड़ाई जाती धज्जियों का नजारा और देर रात नई-नई खुली रिक्शा कंपनी में हुए जश्न को देखकर नाला मछरट्टा, लोहाई रोड होते हुए चौक की पटिया पर आकर बैठे ही थे। बाबा पान वाले जैसे देर से उन्हीं का इंतजार कर रहे थे। खबरीलाल ठीक से बैठ भी नहीं पाये थे कि बाबा ने गोला दागा। क्या बात है खबरीलाल आज बहुत देर से आए। काफी थके हुए लग रहे हो। खबरीलाल बोले वाह रे बाबा बम भोले। न हुक्का न चिलम यूं ही सर कर दोगे कलम। शाम की दवा इस राज्य में भी महंगी है और हमारे काम की भी नहीं है। चुनावी बाजार और मंडियां रात में और रात भर खुलते हैं। दौड़ते- दौड़ते हालत बिगड़ गई। कोई सुस्ती उतारने का नुस्खा तुम्हारे पास हो। शायद उसके सेवन से कुछ फुर्ती आ जाए। बाबा ने फ्रीजर में से पानी की एक बोतल निकाली और खबरीलाल की ओर बढ़ा दी। बोले आधी बोतल पी लो और बांकी से मुंह हाथ धो लो।

खबरीलाल ने वही किया जो बाबा ने कहा था। बोले ताजगी आई है। परन्तु भूख भी तेज हो गई है। बाबा ने खबरीलाल के कान में कुछ कहा। खबरीलाल चुपचाप उठे और लोहाई रोड़ के दायें हाथ वाली गली में प्रवेश कर गए। खबरीलाल बहुत ही बेलौस होकर आने जाने वालों के हाथ जोड़ते, हाथ मिलाते। कुछ जानते थे, कुछ नहीं जानते थे। जानकारों ने अंदर कमरे में बिठाल दिया। सामने की बड़ी मेज पर वह सब कुछ रखा था जिसकी खबरीलाल को जरूरत थी।

पास में बैठे व्यक्ति से अपनापन जोड़ते हुए बोले! आप आज कहां-कहां गए जनसम्पर्क में। जी कहीं नहीं। मेरा नाम इंतजाम बहादुर है। मैं जाता कहीं नहीं। पैरों के कष्ट के कारण जा भी नहीं सकता। परन्तु टीमों को अपने-अपने क्षेत्र में भेजने का काम मैं सुबह पांच बजे से शुरू कर देता हूं। खबरीलाल समझ गये कि यहां पेट पूजा करने, चुप रहने और इन्तजाम बहादुर की बातें सुनने में ही भलाई है। बोले साहब क्या बात करते हैं आप। आपकी व्यवस्था को कौन नहीं जानता। आपने जिसका साथ दिया आज तक का रिकार्ड है वही जीता।

इन्तिजाम बहादुर उत्साहित होकर बताने लगे। चुनाव में सब कुछ देखना और समझना पड़ता है। अब आपको क्या बतायें, क्या छुपायें। ऐसे पांसे फिट किए हैं कि चाहें रिक्शा कंपनी हो या जीप का अड्डा। इन्हें इस बार हम छोड़ेंगे कहीं का नहीं। फर्रुखाबाद के लोग सीधे हैं भले हैं परनतु अपना भला बुरा खूब समझते हैं। रही बात कमल वालों की उनकी छठी, पसनी हम राई रत्ती जानते हैं।

नगर के लोग कुछ नहीं चाहते। केवल विकास चाहते हैं। गली बने, सड़क बने, फुब्बारा लगे, साफ सफाई हो। पानी का, रोशनी का बेहतर इंतजाम हो। भैया जी ने अपने पूरे कार्यकाल में यही सब तो किया है। अब बताओ विकास होगा तब फिर लाभ तो सभी का होगा। इन्तजाम बहादुर बोले अब आप ही बताओ भैया खबरीलाल अब जब लड्डू फूटेगा। तब फिर हिस्से में सभी के आयेगा कि नहीं। अब विकास होगा तब फिर ईंट लगेगी सीमेंट सरिया और निर्माण सामग्री लगेगी ही। फिर उसमें हाय तोबा काहे की। अब विध्न संतोषियों को कौन समझाए। लगे मीन मेख निकालने। इन्तजाम बहादुर बोले अब बताओ हम सब खाना खाते हैं। कुछ जूठन इधर उधर गिरती है कि नहीं। चकले पर वेलन से रोटी बेलोगे। तब चकले के चारों ओर आटे की सफेद रेखा उसी तरह नहीं बन जाती जैसी किसी की आई जी के आने पर नालियों के किनारे सफेद चूने की बना दी जाती है।

खबरीलाल कुशल श्रोता की तरह सुन रहे थे। इन्तजाम बहादुर बोले जा रहे थे। भैया ने नगर पालिका की रसोई में पहली बार प्रवेश किया था। दमदमी भाई पूरे दस साल से किचन में किसी को फटकने ही नहीं दे रहीं थीं। भैया ने किचिन में कब्जा करने के लिए क्या- क्या पापड़ नहीं बेले। इसीलिए भाभी अपने चुनाव प्रचार में बराबर कह रहीं हैं। भैया के शुरू किए गए कार्य वह पूरी ईमानदारी से पूरे करेंगीं। खबरीलाल अपनी मन पसंद की चीजें खाते जा रहे थे और इन्तजाम अली की सुनते जा रहे थे। पापड़ की बात आई। एक दम बोले बड़े भाई इन्तजाम बहादुर पापड़ कहां हैं।

इन्तजाम बहादुर हंसे और बोले हां पापड़ बेलने की बात हो रही है। भैया पिछले चुनाव में नए खिलाड़ी जरूर थे। परन्तु व्यापार के सब हुनर जानते थे। भैया साफ-साफ कहते हैं अब राजनीति भी व्यापार ही है। हां ईमानदारी से व्यापार भी करिए और राजनीति भी करिए। घाटे का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। भैया और भाभी इस चुनाव में एक और एक मिलकर ग्यारह हैं। अगर पूर्व चेयरमैन के पति विधायक हैं। तब फिर भाभी के पति एमएलसी हैं, चेयरमैन रह चुके हैं।

बिना रुके इन्तजाम बहादुर बोले अब इस बार जैसे हाथी को छोड़कर रिक्शा कंपनी बनाने वालों को सायकिल वालों ने अपना समर्थन देने का ऐलान किया है। इसके पीछे खेल राजनीति का नहीं है, ठेकेदारी का है। यह खेल वर्षों पहले रामगंगा के पुल की ठेकेदारी की लखनऊ में हुई सियासी जोड़तोड़ से हुआ था। इन्तजाम बहादुर बोले न मानो तब फिर बढ़पुर निवासी कृपाल बाबा से पूछ लो। लेकिन हमें क्या पड़ी। जैसा समर्थन इस बार रिक्शा कंपनी को मिला है। वैसा ही समर्थन पिछली बार पतंग वालों को मिला था। समर्थन धरा का धरा रह गया। भैया शानदार ढंग से जीत गए। देख लेना इस बार भी समर्थन धरा का धरा रह जाएगा। भाभी भैया के दांव पेंच के बल पर चकला बेलन लिए नगर पालिका की रसोई में राज्य करेंगीं। खबरीलाल का काम पूरा हो गया था। उठे और बोले बिल्कुल सही फर्माया आपने। अग्रिम बधाई स्वीकार करें।

लोहाई रोड़ की गली से निकलकर खबरीलाल फिर चौक पर आ गए। बाबा को धन्यवाद देकर बोले तबियत मस्त हो गई। अब एक बढ़िया सा पान और खिला दो। इसी की कमी रह गई थी। आज बस इतना ही।

सतीश दीक्षित
एडवोकेट