भाड़ में जाए विकास और भृष्टाचार, हमें तो अपनी खुन्नस से काम……..

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फर्रुखबाद: भृष्टाचार, विकास, स्वच्छ राजनीति जैसे भारी भरकम नारे लगाने वाले नगर निकाय चुनाव आते ही अपनी असलियत पर उतर आये हैं। व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिये कुछ तो चुनाव मैदान में कूद पड़े, कुछ ने रातो रात पाले बदल डाले तो शेष ने पर्दे के पीछे से गोटे चलनी शुरू कर दी हैं। कुल मिलाकर नारा यह बचा है कि “विकास गया तेल लेने, हमें अपनी खुन्नस से काम”।

फर्रुखाबाद नगर पालिका के दूसरे दौर में यदि फुर-फुर मियां से अब तक के इतिहास पर नजर डाली जाये तो सत्ता कुल मिला कर विधायक विजय सिंह व मनोज अग्रवाल के पास ही रही है। जाहिर है शहर के जो भी हालात हैं, अच्छे या बुरे, उसके लिये यह दोनों माननीय ही जिम्मेदार हैं। मजेदार बात यह है कि शहर का तो जो होना था सो वह हुआ पर नगर पालिका की सीढियों पर ही दोनों को विधायकी जरूर रखी मिल गयी। विजय सिंह इस दौरान विधान सभा के तीन चुनाव जीते तो मनोज अग्रवाल विधान परिषद सदस्य बन गये।

नगर पालिका में भ्रष्टाचार व विकास की अनदेखी करने वालों के लिये एक यक्ष प्रश्न यह भी है कि यदि दोनों माननीयों ने नगर पालिका में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो जनता ने उनको विधायक क्यों बना दिया। जवाब साफ है-  निगेटिव वोटिंग। अर्थात यहां लोग किसी को जिताने के लिये नहीं, किसी को हराने के लिये वोट देते आये हैं। एक की जीत में उसकी लोकप्रियता नहीं, विपक्षी की अलोकप्रियता का रिपोर्ट कार्ड छिपा रहता है।  इस निगेटिव वोटिंग या खुन्नस राजनीति में जनता ही नहीं नेता भी बराबर के शरीक हैं।

इतिहास गवाह है कि सेनापत समर्थकों की दबंगई बढ़ी तो पूरा शहर एकजुट होकर नाले के साथ खड़ा हो गया। पिछले नगर पालिका चुनाव में सेनापत की जीत में संशय लगा तो उनके समर्थक नाले को हराने के लिये पार्टी उम्मीदवार को छोड़ दूसरे प्रत्याशी के साथ चले गये। इस बार भी विधानसभा चुनाव में ताजी हार के मद्देनजर सेनापत ने पार्टी टिकट से किनारा कर लिया। पार्टी को एक प्रत्याशी की तलाश थी, सो उन्होंने नाले से खुन्नस खाये बैठे एक बार एसोसियेशन के महामंत्री संजीव पारिया की पत्नी को टिकट दे दिया। कभी विजय सिंह के कट्टर समर्थकों में गिने जाने वाले पारिया साहब विगत कई वर्षों पूर्व उनसे किनारा कर चुके हैं। कभी मुस्लिम वोटबैंक में अच्छी पकड़ का दावा करने वाले विजय सिंह व उनके उस समय के सहयोगी अहमद अंसारी जो बाद में हाजी भी हो गये, अब उनके खिलाफ मार्चा खोले हैं। उनकी बेगम सलमा अंसारी विजय सिंह की पत्नी व पूर्व पालिका अध्यक्ष दमयंती सिंह के विरुद्ध चुनाव मैदान में तीखी टक्कर देने को तैयार हैं।

आइये दूसरे माननीय मनोज अग्रवाल की बात करते हैं। विजय सिंह के विरोध की लहर पर सवार होकर विगत विधान सभा चुनाव जीतने वाले मनोज अग्रवाल ने अपने एक ही कार्यकाल में पिछले दो पूर्ववर्ती कार्यकालों का हिसाब बराबर कर डाला। नंगा, भूखा, चोर, डकैत, अपराधी और न जाने क्या-क्या कह कर सत्ता में आये मनोज अग्रवाल ने पांच साल में ही शुचिता की हदें पार करने में कोई हिचक नहीं दिखायी। दोबारा चुनाव की बेला आयी तो फिर पुरानी गणित को दोहराने के लिये हर कोशिश कर डाली। सेनापत से बजरिया तिकोना तक सब कुछ मैनेज कर लिया है। पालिका ठेकेदारों के प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष सौजन्य और सरकारी संसाधनों के समन्वय आयोजित सामूहिक विवाह सामारोहों में जिन युवतियों का विवाह कराया, उन तक को चुनाव प्रचार में झोंकने की रणनीति तैयार है। इसके बाद जो थोड़ी बहुत संशय की संभावना बची थी उसे हवन-पूजन व अनुष्ठानों के सहारे पूर्ण कर लिया गया है।

इस महासमर के चौथे ध्रुव हाजी अहमद असांरी की गिनती कभी विजय सिंह के कट्टर समर्थकों में हुआ करती थी। विगत कई वर्षों से बातचीत तक बंद है। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने खुलकर मुखालफत की थी। तब से तलवारें और खिंच चुकी हैं। उनके पिता हाजी उमर अंसारी भी शहर की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। उन्होंने इस बार अपनी पत्नी सलमा अंसारी को चुनाव मैदान में उतारा है।

 

कुल मिलाकर चुनाव में इस बार तीन/चार प्रकार के मतदाता है। सबकी अपनी-अपनी खुन्नसें हैं। एक तो वह जो नाले को जीतते नहीं देख सकते। दूसरे वह जिनकों मनोज अग्रवाल से खुन्नस है। तीसरे वह जो लाला का सेनापत का समर्थक मानते हैं, इसलिये उसे जीतने नहीं देना चाहते हैं। चौथे वह विजय सिंह व मनोज अग्रवाल दोनों से खुन्नस रखते हैं।  अब देखना है कि किस की खुन्नस निकलती है, और किस की खुन्नस दिल में पांच साल फांस की तरह चुभने के लिये बची रहती है।