लखनऊ : यूपी एनआरएचएम में घोटाला कर हजारों करोड़ डकारने वाले नेता-अधिकारी-डॉक्टर-दलाल गठबंधन की परतें उधड़ना शुरू हो चुकी हैं| एक के बाद एक सफेदपोश बेनकाब हो रहा है| सीबीआई को पता चला है कि सूबे के जिलों में दलालों के कहने पर पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और पूर्व चिकित्सा व स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्र अंटू ने सीएमओ के ट्रांसफर किये और बदले में इन सीमओ से कई लाख वसूले जो इन्ही दलालों के ज़रिये इन दोनों मंत्रियों तक पहुँचते थे| इसके बाद आरंभ होता था एनआरएचएम बहत की लूट घसोट का दौर| ये बिके हुए सीएमओ दलालों के कहने पर ठेकों आवंटित करते और जो काली कमाई होती उसे फर्म मालिक, दलाल, सीएमओ और ये लखनऊ में बैठे मंत्री आपस में बाँट लेते थे|
शनिवार को सीबीआई ने अंटू के साथ, बाबूसिंह कुशवाहा, प्रदीप शुक्ला, बसपा के एक पूर्व एमएलए सहित मौजूदा एमएलसी और कुछ दलालों के साथ दस लोगों को नामजद किया है। सीबीआई ने कहा है ये दोनों मंत्री बड़े पैमाने पर तबादलों का रैकेट संचालित करते थे जिसका हिस्सा नीचे से ऊपर तक जाता था। सूबे के हर एक सीएमओ की तैनाती में दलाल इन दोनों मंत्रियों को 20 – 25 लाख रुपये देते थे। इसके साथ ही छोटे जिलों में तैनाती पर 15 लाख की रकम तय थी|
सीबीआई टीम अंटू के गोमतीनगर के विपुलखंड वाले घर पर शनिवार को सुबह सात बजे पहुंची थी। सात घंटे तक चली इस छानबीन के दौरान सीबीआई को कई महत्वपूर्ण कागजात मिले है। सूत्र बताते हैं कि अब इनकी मदद से सीएमओ हत्याकांड और एनआरएचएम घोटाले को खोलने में आसानी होगी| पूर्व मंत्री कुशवाहा व प्रदीप शुक्ला पहले ही जेल जा चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि जल्द ही अंटू इनके साथ ही नज़र आने वाले हैं|
कुशवाहा और अंटू ने चलाया तबादला रैकट :-
इन दोनों मंत्रियों के कार्यकाल में दलाल विभाग में इतने हावी थे कि सीएमओ सीधे इनसे ही संपर्क करते थे| तबादले के लिए यही नहीं इनकी मंत्रियों के साथ इतनी निभती थी कि कुशवाहा और अंटू आंख मूंद कर इनके कहे अनुसार तबादले कर देते थे। बाराबंकी, बलरामपुर, महाराजगंज, फतेहपुर सहित कुछ अन्य छोटे जिलों में ट्रांसफर के लिए 15 -20 लाख, सामान्य जिलों में तैनाती के लिए 20 से 25 और लखनऊ, मेरठ, कानपुर, आगरा ट्रांसफर के लिए 35 लाख दिया और लिया जाता था। सीएमओ को कुर्सी पकड़ने से पहले बता दिया जाता था कि वो किसे ठेके, सप्लाई का काम देंगे और सीएमओ को ही एडवांस की व्यवस्था करनी होती थी।
सूत्रों के मुताबिक जाँच में सामने आया है कि साल 2007 से 2009 तक एनआरएचएम का काम स्वास्थ्य विभाग के पास ही था जिसके मंत्री अंटू थे और फिर जब एनआरएचएम परिवार कल्याण विभाग में समाहित किया गया| वर्ष 2009 -2011 के दौरान एनआरएचएम के मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा थे जिन्होंने ने अपना मंत्री पद जाने से पहले तक अपने कुछ नजदीकियों जिनमें लखनऊ का एक चर्चित पत्रकार व बसपा एमएलसी राम प्रकाश जायसवाल, ठेकेदार राशिद उर्फ गुड्डू खान और सर्जिकॉन मेडिक्विप से जुड़े गिरीश मलिक के कहने पर सौ से अधिक सीएमओ की पैसे लेकर तैनाती की इस खेल में करोड़ों रूपया रिश्वत के तौर पर मिला था|
सूत्र बताते हैं कि इसी तरह एमएलसी अशोक कटियार, महेंद्र पांडेय और मानवेंद्र चड्ढा की अंटू से नजदीकी थी| कुशवाहा और अंटू के ये चहेते अपने मनचाहे सीएमओ बनवाने के लिए लिस्ट बनाते और दोनों मंत्री उनकी हाँ में हाँ मिलाते। इस के बाद जिलों में काम भी इन्ही मंत्री दलाल गठजोड़ को मिलता था| कई फर्में तो सिर्फ कागज में ही चल रही थी और उनके नाम पर करोड़ों का भुगतान हो गया|
मनमानी का नंगा नाच कुशवाहा और अंटू ने ऐसा चलाया कि सीएमओ तैनाती के समय जो विजिलेंस क्लीयरेंस ली जानी चाहिए थी उसे नहीं लिया गया ना ही एसीआर देखी गई| वरिष्ठ डॉक्टरों की अनदेखी करते हुए सिर्फ और सिर्फ कमाई को ध्यान में रखा | इन दोनों ही मंत्रियों ने इस खेल में करोड़ों कमाए| फ़िलहाल सीबीआई ने इन दोनों पर ही शिकंजा कस दिया है| जाँच दल ने उन सौ सीएमओ की लिस्ट तैयार कर ली है जिन्होंने पैसे देकर तबादला करवाया था। कार्यवाही करते हुए इनमें से 80 को नामजद किया गया है।
डॉ. विनोद आर्या और वाईएस सचान ने भी दिए थे पैसे :-
सूत्रों के अनुसार लखनऊ में परिवार कल्याण विभाग के पहले सीएमओ बने विनोद आर्या और इनकी हत्या के बाद कार्यवाहक सीएमओ बने वाईएस सचान जो लखनऊ जेल में मृत पाए गए थे इन दोनों ने भी लखनऊ में पोस्टिंग पाने के लिए लाखों रुपये दिए थे| सीबीआई को पता चला है कि सचान द्वारा रिश्वत देने के बाद भी साइनिंग अथॉरिटी नहीं मिली तब उन्होंने इसके लिए डॉ. आर्या को जिम्मेदार माना जोकि बाद में आर्या की मौत का कारण बन गया।
सीबीआई सूत्रों के अनुसार अंटू मिश्रा अच्छे से जानते हैं कि सचान ने कितनी रकम किसके जरिए किसको दी। यही नहीं घोटाले और दोहरे हत्याकांड के बारे में भी मिश्रा को बहुत कुछ पता है इसलिए जल्द ही इनको गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया जा सकता है|
प्रदेश में हुए एनआरएचएम घोटाले पर यदि नज़र डाली जाये तो स्पष्ट होता है स्वास्थ्य विभाग और परिवार कल्याण विभाग में जो बंटवारा हुआ, वह एक साजिश थी। जिसमें पंचम तल की भी भूमिका रही है। वर्ना कैसे हो सकता है की वर्षों ये घोटाला चलता रहे और किसी को पता ही न चले यही नहीं जब केंद्र ने इसपर आपत्ति दर्ज करायी तो उसे सरकार ने ठुकरा दिया| अब ये सब मुख्यमंत्री की मर्जी के बिना हो ये बात गले से नहीं उतरती|
हाँ ! एक बात जो गले से उतरती है वो ये की इसमें मायावती का भी योगदान है और हो न हो एक दिन आयेगा जब उनका नाम सबके सामने होगा|