शहर की राजनीति में हमेशा पार्टी और पद से बे-न्याज हाजी उमर अंसारी इस शहर की नयी पीढ़ी के लिये भी कोई नया नाम नहीं है। हाजी जी के इंतकाल के बाद उनके पुत्र हाजी अहमद अंसारी भी शहर की राजनीति से जुड़े रहे। कांग्रेस, सपा और बसपा में रहे हों या विधायक विजय सिंह की किचेन कैबिनेट के मेंबर रहे हों, अहमद भाई ने अपनी भूमिका को कभी कम नहीं होने दिया। राजनीति में सीधे उतरने के लिये काफी समय से मन बना रहे अहमद भाई ने इस बार नगर पालिका चुनाव में अध्यक्ष पद महिला आरक्षित हो जाने के बाद अपनी पत्नी सलमा बेगम को चुनाव में उतारने का मन बानाया तो, परंपरागत परिवारिक पृष्ठ-भूमि ने कई मुश्किलें पैदा की परंतु वह हार मानने को राजी नहीं हैं। उनकी पत्नी सलमा बेगम इस बार चुनाव मैदान में होंगी।
हमने अहमद भाई और सलमा बेगम से चुनाव के विषय में वार्ता की। पेश हैं इसके कुछ अंश….
पहली बार गृहणी की भूमिका से निकलकर राजनीति के मैदान में आने के विषय में पूछा तो, आंचल को परचम बनाने का ख्वाब सजाये सलमा बेगम का हौसला देखने लायक था। तपाक से बोंली कि ग्रहस्थी चलाना नगर पालिका चलाने से कहीं ज्यादा मुश्किल काम है। घर कें विभिन्न आयु, विचार व अपेक्षाओं के सदस्यों को एक साथ बांध कर रखना व सब की खुशी और सुविधा का ध्यान रखना अपने आप में बड़ी चुनौती होती है। यदि मैं यह सब कुछ कर सकती हूं तो नगर पालिका या शहर को भी एक परिवार की तरह चलाने में कोई कठिनाई नहीं आयेगी।
चिलचिलाती धूप में जनसंपर्क कर लौटीं सलमा बेगम से जब एयरकंडीयन और जनरेटर की दुनिया से निकल कर समस्याओं से जूझ रहे आम आदमी की जरूरतों को समझने के मुद्दे पर सवाल किया तो उनके तमतमाते चेहरे पर एक परिपक्व सी मुसकुराहट तैर गयी। बोलीं कि, मैं भी इसी समाज से आयी हूं। यह शहर तो मेरा मायका व ससुराल दोनों ही है। मेरा बचपन इन्हीं गलियों में खेल कर गुजरा है। मैं इस शहर की हर समस्या से उसी तरह वाकिफ हूं, जैसे हाथ की एक अंगुली दूसरे के बारे में जानती है। रही बात मेरी ससुराल की आर्थिक स्थिति की तो, मैं मानती हूं कि खुदा हमें इतना नवाजा है, कि हमको आम आदमी का हक मारने की कभी जरूरत नहीं पड़ेगी।
हमने उनके सामान्य ज्ञान की परीक्षा के लिये पूछा कि, इस शहर की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
सलमा बेगम का एक शब्द में जवाब दिया “पानी”। बोलीं कि हमें याद है कि बचपन में हमारे छत वाले नल तक में पानी आता था, अब आम तौर पर नाली से चार इंच ऊपर लगी टोंटी में टिल्लू लगाकर पानी खींचकर बाल्टी भरनी पड़ती है। फिर यही बाल्टी घरों की लड़कियां उठाकर अंदर ले जाती हैं। शहर की आबादी बढ़ी जरूर है, परंतु उतनी ही नयी टंकिया और टयूबवेल भी तो लगे हैं, फिर समस्या क्यों है। जाहिर है कि कुर्सी पर बैठे लोग निर्माण से लेकर रख-रखाव तक का बजट हड़प कर गये। आम आदमी बूंद-बूंद के लिये तरसता रह गया। जनता ने जिन लोगों को चुनकर भेजा, चाहे वह चेयरमैन हों या सभासद, सब अपनी जेबें भरने में लग गये।
काफी देर से कसमसा रहे उनके पति अहमद अंसारी से जब रहा नहीं गया तो बोले कि वह यह चुनाव पद पाकर खुद किसी प्रतिष्ठा की आस में नहीं लड़ना चाहते हैं, वह चाहते हैं कि पद की गरिमा भी स्थापित हो। इसके लिये वह हर संभव प्रयास करेंगे। चुनाव में जीत की गणित के विषय में पूछने पर अहमद अंसारी कहते हैं, यूं तो उनको लगभग हर वर्ग का समर्थन मिल रहा है, पर यदि मुस्लिम मतों का बंटवारा नहीं हुआ तो उनकी जीत इंशा-अल्लाह तय है।