दिल्ली (ब्यूरो)। बच्चों को स्कूल भेजने की उम्र क्या हो , यह अरसे से बहस का मुद्दा रहा है। अब इंग्लैंड के शिक्षा विशेषज्ञों ने कहा है कि बच्चों के बेहतर विकास के लिए उन्हें छह साल की उम्र में ही स्कूल भेजा जाए। भारत के तमाम उन पैरेंटस के लिए सबक है जो बच्चों को तीन -चार साल की उम्र में ही स्कूल भेजने लगते है। शिक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने से टेलेंटेड बच्चों की प्रतिभा दब जाती है।
इंग्लैंड के मशहूर बच्चों की शिक्षा के विशेषज्ञ डा रिचर्ड कहते हैं कम उम्र में पढ़ाई से बच्चे को नुकसान ही होता है। इससे बच्चों की सीखने की क्षमता, लिखने की क्षमता और गणित बुरी तरह प्रभावित होता है। यह इस कदर प्रभावित करता है कि बच्चे की सारी जिंदगी इसके दुष्प्रभाव से उबर नहीं पाती । रोहैंपंटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड कहते हैं बच्चों को नेचुरल विकास होना ज्यादा जरुरी है यह तभी संभव है जब हम बच्चों को छह साल के बाद स्कूल भेजें।
हालांकि ज्यादातर देशों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों को स्कूल भेजने पर पाबंदी है। इंग्लैंड में यह सीमा पांच साल की है। फ्रांस, जर्मनी नार्वे, स्पेन और ट्रकी जैसे देशों में पहले से यह सीमा छह साल तय है। लातविया, स्वीडन में तो सात साल से पहले बच्चों को स्कूल भेजने पर पाबंदी है। रिचर्ड कहते हैं इंग्लैंड में भी यह सीमा छह साल कर दी जाए। शिक्षा में उम्र तय करने के लिए बनाई गई कमेटी के वह अध्य़क्ष भी हैं। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक कम उम्र में स्कूल भेजने पर बच्चों के सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। भारत में भी बच्चे की उम्र को लेकर लंबे समय से मतभेद बना रहा है। यहां प्री-नर्सरी और नर्सरी में बच्चों को दाखिला दिला दिया जाता है जब बच्चों की उम्र दो या तीन साल होती है। उम्मीद करनी चाहिए विकसित देशों से सबक लेते हुए भारत में भी कम से कम छह साल से पहले बच्चों को दाखिला दिलाने पर पांबदी लगा दी जाए।