Tuesday, March 11, 2025
spot_img
HomeUncategorizedग्यारह चक्रों से संचालित है सेहत और सेक्‍स

ग्यारह चक्रों से संचालित है सेहत और सेक्‍स

आपका शरीर चक्रों से संचालित होता है। चक्र तेजी से घूमने वाले ऊर्जा केन्द्र हैं, जो प्राणशक्ति को सोखकर, शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाते हैं। चक्रों को ठीक प्रकार से कार्य न करने आपका स्‍वास्‍थ्‍य व आपका सेक्‍स जीवन प्रभावित हो सकता है। चीन के मास्टर चो कोक् सुई ने प्राणशक्ति से उपचार की कला को वैज्ञानिक रूप दिया। उनकी यह कला शरीर के 11 चक्रों पर आधारित है। आइए हम आपको शरीर के इन्हीं चक्रों, शरीर में उनकी उपस्थिति केन्द्रों, उनके कार्यों, उनसे सम्बंधित अंगों और उससे सम्बंधित रोगों के बारे में बताते हैं। ध्यान, योग और प्राण शक्तियों का विकास कर आप इन चक्रों की समझ विकसित कर सकते हैं-

  1. मूलाधार चक्र- यह चक्र रीढ़ के अन्तिम छोर पर स्थित होता है। मूलाधार चक्र मांसपेशियों और अस्थि तन्त्र, रीढ़ की हड्डी  साफ रक्त के निर्माण, अधिवृक्क ग्रन्थियों, शरीर के ऊतक और आन्तरिक अंगों को नियन्त्रित करता है। यह चक्र जननांगों को भी प्रभावित करता है। इस चक्र के गलत ढंग से कार्य करने पर जोड़ों का दर्द, रीढ़ की हड्डी का रोग, रक्त के रोग, कैंसर, हड्डी का कैंसर, ल्यूकेमिया, एलर्जी, शरीर विकास की समस्या, जीवनशक्ति की कमी, जख्म भरने में देरी और हडि्डियों के टूटन की शिकायत होती है। जिन व्यक्तियों को मूलाधार चक्र बहुत अधिक सक्रिय होता है, वे हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ्य होते हैं और जिनका मूलाधार चक्र कम सक्रिय होता है वे नाजुक और कमजोर होते हैं।
  2. काम चक्र- यह चक्र जननांग क्षेत्र में स्थित होता है। यह जननांगों व ब्लैडर को नियन्त्रित करता और ऊर्जा प्रदान करता है। इस चक्र के कार्य में गड़बड़ी होने पर काम सम्बंधी समस्याएं पैदा होती है।
  3. कटि चक्र- यह चक्र  नाभि के ठीक पीछे पीठ में स्थित होता है। यह मूलाधार चक्र से आने वाली सूक्ष्म प्राणशक्ति को ऊपर की ओर भेजने के लिए रीढ़ की हड्डी में पंपिंग स्टेशन की तरह कार्य करता है। यह गुर्दे और अधिवृक्क ग्रन्थियों को नियन्त्रित करने का कार्य करता है। इस चक्र के कार्य में गड़बड़ी होने पर गुर्दे की बीमारी, जीवनशक्ति में कमी, उच्च रक्तचाप और पीठ दर्द होते हैं।
  4. नाभि चक्र- यह चक्र नाभि पर स्थित होता है। यह छोटी व बड़ी आन्त और एपेण्डिक्स को नियन्त्रित करता है। इस चक्र के ठीक से कार्य न करने पर कब्ज, एपेण्डिसाइटिस, शिशु-जन्म में कठिनाई, ओजिस्वता में कमी, एवं आन्त सम्बंधी रोग होते हैं।
  5. प्लीहा चक्र- यह बायीं निचली पसली के मध्य में स्थित होता है। इसमें गड़बड़ी से सामान्य कमजोरी व रक्त सम्बंधी बीमारी होती है।
  6. सौर जालिका चक्र- यह चक्र छाती के डायफ्राम, अग्नाशय, जिगर, आमाशय, फेफड़े, हृदय को नियन्त्रित करता है। इस चक्र के गलत ढंग से कार्य करने पर मधुमेह, अल्सर, यकृतशोथ, हृदय रोग होते हैं।
  7. हृदय चक्र- छाती के मध्य में स्थित होता है। यह हृदय, थायमस ग्रन्थि और रक्त संचार तन्त्र को नियन्त्रित करता है। इसकी गड़बड़ी से हृदय, फेफड़ा, रक्त सम्बंधी रोग होते हैं।
  8. कंठ चक्र- यह गले के बीच में होता है, जो थायराइड ग्रन्थि, गला और लिंफेटिक तन्त्र को नियन्त्रित करता है। इसकी गड़बड़ी से घेंघा, गले में खराश, दमा आदि रोग होते हैं।
  9. भृकुटि चक्र- चह भौंह के मध्य स्थित होता है। यह पीयूष ग्रन्थि व अन्त:स्रावी ग्रन्थि को नियन्त्रित करता है। इसके ठीक ढंग से कार्य न करने पर मधुमेह हो सकता है। यह आंख व नाक को भी प्रभावित करता है।
  10. ललाट चक्र- यह चक्र ललाट यानि माथे के बीच स्थित होता है। यह पीनियल ग्रन्थि और तन्त्रिका तन्त्र को नियन्त्रित करता है। इसके ठीक तरह से कार्य न करने पर यादाश्त में कमी, लकवा और मिरगी जैसे रोग हो सकते हैं।
  11. ब्रह्म चक्र- यह सिर के तालु पर स्थित होता है। यह पीनियल ग्रन्थि, मस्तिष्क और पूरे शरीर को नियन्त्रित करता है। इसकी गड़बड़ी से मानसिक रोग हो सकते हैं।
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments