अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस : नर्सों को अथक परिश्रम के बावजूद नहीं मिलता सम्मान

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फर्रुखाबाद : अस्पताल में सफेद यूनिफार्म पहन कर मुस्कुराते और तत्परता से मरीजों की देखभाल करने वाली नर्सों को शिकायत है कि अथक परिश्रम करने के बावजूद उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिसकी वह हकदार हैं।

नोबल नर्सिंग सेवा की शुरूआत करने वाली फ्लोरेंस नाइटइंगेल के जन्म दिवस पर हर साल दुनिया भर में 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। इस बारे में एक सरकारी अस्पताल में नर्स अनिता थॉमस कहती हैं नर्स अस्पताल का एक अभिन्न हिस्सा होती है। मरीज की देखभाल में हम कोई कसर नहीं छोड़ते। लेकिन फिर भी हमें पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता। फिर नर्स दिवस की बात हम क्यों सोचें। वह बताती हैं कि सेवा भाव से मरीज की देखभाल करने वाली नर्सें कभी शिकायत नहीं करतीं कि उन पर काम का दबाव अधिक है या उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। लेकिन सच यही है कि उन्हें इस तरह की कई प्रतिकूल स्थितियों का सामना पड़ता है। एक निजी अस्पताल में नर्स शाइनी डेनियल कहती हैं कि आज सरकारी अस्पतालों में नर्सो को छ”s वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर वेतन और अन्य सुविधाएं मिल रही है।

उनकी हालत में भारी सुधार आया है जिससे नर्सो का पलायन काफी रूका है लेकिन कुछ राज्यों और गैर सरकारी क्षेत्रों में आज भी नर्सो की हालत अच्छी नहीं है। उन्हें लंबे समय तक कार्य करना पडता है और उनको वे सुविधाएं नहीं दी जाती है जिनकी वे हकदार हैं।

शाइनी कहती हैं कि प्रशिक्षित नर्सों की अभी भी कमी है। सरकार द्वारा उठाये गये कई कदमों के कारण देश में प्रशिक्षित नर्सों की संख्या में कुछ सुधार हुआ है। लेकिन हालात देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है। अच्छे वेतन और सुविधाओं के लिए पहले बड़ी संख्या में प्रशिक्षित नर्से विदेश जाती थी, पर अब ऐसा नहीं है। रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है जिसे देखते हुए प्रशिक्षित नर्सों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही उनके वेतनमान और सुविधाओं में भी वृद्धि की जानी चाहिए।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अच्छे वेतनमान और सुविधाओं के लालच में आज भी विकासशील देशों से बड़ी संख्या में नर्सें विकसित देशों में नौकरी के लिए जाती है जिससे विकासशील देशों को प्रशिक्षित नर्सों की भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

शाइनी कहती हैं नर्सों की जिम्मेदारी कम नहीं होती। डॉक्टर हर समय मरीज की देखभाल के लिए उपलब्ध नहीं रहते। कई बार आपात स्थिति में नर्सों का अनुभव ही काम आता है। नर्सों की शिफ्ट ड्यूटी रहती है। कई बार अगली शिफ्ट की किसी नर्स के न आने पर उस नर्स को छुट्टी नहीं मिलती जिसकी शिफ्ट खत्म होती है। ऐसे में उस पर काम का दोहरा दबाव होता है जबकि वह पूरी तरह थक चुकी होती है। ये कुछ ऐसे पहलू हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में अमीर और गरीब दोनों प्रकार के देशों में नर्सो की कमी चल रही है। विकसित देश अपने यहाँ की नर्सो की कमी को अन्य देशों से बुलाकर पूरा कर लेते है और उनको वहाँ पर अच्छा वेतन और सुविधाएँ देते है जिनके कारण वे विकसित देशों में जाने में देरी नहीं करती है। दूसरी ओर विकासशील देशों में नर्सो को अधिक वेतन और सुविधाओं की कमी रहती है और आगे का भविष्य भी अधिक उज्जवल नहीं दिखाई देता जिसके कारण वे विकसित देशों के बुलावे पर नौकरी के लिए चली जाती है।

अधिकारी ने बताया कि दोनों डिप्लोमा और पोस्ट ग्रेजुएट कार्यक्रमों के लिए शिक्षकों की भागीदारी बढाने के संबंध में कुछ और कदम भी उठाए गए हैं। जिन राज्यों में नर्सो और नर्सिंग कालेज में शिक्षकों की भारी कमी चल रही है वहाँ पर 269 नर्सिंग स्कूल खोलने और राज्य स्तर पर प्रति संस्थान 20 करोड़ रुपए देने का फैसला किया गया है। इसके अलावा 14 राज्य नर्सिंग परिषदों को मजबूत करने के लिए प्रत्येक को एक करोड़ रुपए देने का फैसला किया गया है। ग्रेजुएट नर्सो की संख्या भी बढ़ाने का फैसला किया गया है। देश में इस समय 1100 जनसंख्या पर एक नर्स है।

दिल्ली स्थित विश्व स्वास्थ्य संगठन कार्यालय की निधि चौधरी का कहना है कि देश में महानगरों और बड़े शहरों में चिकित्सा व्यवस्था कुछ ठीक होने के कारण वहाँ पर नर्सो की संख्या में इतनी कमी नहीं है जितनी छोटे शहरों और गाँवों में है। किसी भी देश में नर्सो की कमी उस देश के खराब चिकित्सा व्यवस्था को बताती है। नर्सो की कमी का सीधा प्रभाव नवजात शिशु और बाल मृत्यु दर पर पड़ता है।