खाता न बही-बिजली विभाग कहे सो सही!
मुंशी हर दिल अजीज चौक की पटिया पर पसीने-पसीने हुए गर्मी और बिजली विभाग दोनो को ही बुरी तरह कोस रहे थे। दुनिया सुधर जाए इन्हें नहीं सुधरना है। सुधरना इस लिए नहीं है क्योंकि यह विभाग और इसके कर्मचारी यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि इनकी कार्य पद्धति में किसी प्रकार की कोई कमी है।
मुंशी हर दिल अजीज अपनी रौ में बहे जा रहे थे मियां झान झरोखे भी चौक त्रिपौलिया पर पधार गए। मियां आते ही मुंशी पर फट पड़े। कन्ज्यूमर हैं ग्राहक हैं उपभोक्ता हैं लेकिन तुम्हारे गुलाम नहीं हैं। ग्राहक का जितना अपमान यह बिजली विभाग करता है। उसका दस प्रतिशत भी कोई विभाग या प्रतिष्ठान करे तो दिवालिया हो जाए। परन्तु यहां पर पूरी तरह से दादागीरी है। जब देखो तब रिक्शे पर ऐलान होता सुनाई देगा। समस्त बिजली उपभोक्ताओं को सूचित किया जाता है कि आज दिनांक ………………को ………………पर कैंप लग रहा है। अपने बिजली बिलों में सुधार करवा लें भुगतान कर दें। अन्यथा कनेक्शन तत्काल काट दिया जाएगा। आज्ञा से अधिशाषी अभियंता।
मियां झान झरोखे की बातें सुनकर मुंशी हरदिल अजीज बोले! यही है हमारी तरक्की का राज! इसे कहते हैं कि जबरा मारे और रोने न दे। अब बताओ विभाग तुम्हारा, बिजली तुम्हारी, बिल तुम्हारा, मीटर तुम्हारा, मीटर रीडर तुम्हारा, मीटर रीड़िंग तुम्हारी, कम्प्यूटर तुम्हारा। मतलब यह कि सब कुछ तुम्हारा फिर भी अगर बिल गलत हैं बढ़े हुए हैं अनाप शनाप हैं। तब फिर इसकी गल्ती विभाग की है और किसी की नहीं। खाता तुम्हारा वही तुम्हारी, कागज तुम्हारा, कलम तुम्हारी। कहां से आ जाते हैं आधुनिकीकरण से लैस दुनिया के सबसे बड़े विद्युत निगम में इतनी बड़ी संख्या में बिजली विभाग की त्रुटिपूर्ण बिल।
मियां झान झरोखे प्रत्येक उपभोक्ता बिजली विभाग की तानाशाही का शिकार है। विभाग का हर अधिकारी कर्मचारी मानमानी पर उतारू है। ऊपर से नीचे तक सभी विभाग को चुस्त दुरुस्त बनाने सजाने संवारने के स्थान पर लूटने बदहाल और बदनाम करने के महा अभियान में लगे हैं। एकाधिकार है जब चाहें तब बिजली दो। जब चाहें तब बढ़ा हुआ बिल दो दाम बढ़ा दो। परन्तु उपभोक्ता रोता रहे परेशान होता रहे इनके कान पर जूं नहीं रेंगती। ऊपर से विभाग के लगातार घाटे में जाने की दुखभरी कहानी।
इसी बीच खबरीलाल अपना तामझाम लेकर आ गए। मुंशी और मियां की बातचीत होते देखकर बोले! भाइयों आप लोग केवल बिजली विभाग पर राशन पानी लेकर क्यों पीछे पड़ गए हो। जो भी सरकार आती है जब तक जाती नहीं यही चीखती चिल्लाती रहती है कि जो काम उसने अपने कार्यकाल में कर लिया आजादी के इतने वर्षों बाद भी नहीं हो पाया। बहिन जी यही गाना गाते गाते दिल्ली चली गयीं। अब सबसे बड़े प्रदेश के सबसे छोटे युवा मुख्यमंत्री आए हैं। उम्मीदें बंधाई जा रही हैं। उत्तर प्रदेश की बदहाली पिछड़ेपन, भ्रष्टाचार, लूटखसोट का बात बात में वास्ता दिया जा रहा है। बहुत जल्दी ही इन सबको दूर करने का वायदा किया जा रहा है।
खबरीलाल अपनी रौ में आ पाते इससे पहले ही मुंशी हर दिल अजीज ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा। खबरीलाल हर बार की तरह रायता मत फैलाओ। बिजली की बात हो रही है। उसी की बात करो। तुम लंबी तान कर सरक लेते हो बात वहीं की वही रह जाती है। हम सबकी बात करेंगे। परन्तु एक एक करके।
मुंशी हरदिल अजीज की गंभीर बात से खबरीलाल हलके पड़े। बोले बात तुम्हारी सोलह आने पाव रत्ती सही है। हमारे यहां बत्ती आने जाने का सिलसिला इतना अनिश्चित है कि न आने पर रोधोकर वक्त गुजार लेते हैं। परन्तु जितने वक्त बिजली आती भी है उसमें उसका उपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा होता है। मान लो रात में आप पंखे कूलर या एसी की हवा में आराम से सपरिवार अपने अपने कमरों में सो रहे हैं। अचानक बिजली चली गई। आपने तकिया चादरा उठाया और बिजली विभाग को कोसते ऊपर छत पर जाकर सो गए। कुछ देर बाद बिजली आ गई। आप ऊपर खुले में सो रहे हैं। नीचे हर कमरे में कूलर पंखा एसी सब चल रहा है। कभी भी कहीं भी किसी भी कालोनी गली मोहल्ले में जाकर देख लो जिन घरों में ताला लगा है उनमें अधिकांश में बिजली जलती और नल चलता मिलेगा। अगर बिजली आपूर्ति में विभिन्न कारणों से कटौती न हो और सतत आपूर्ति हो तब बिजली बिलों के भुगतान में दिक्कतें भी बढ़ेंगी और बिजली के त्रुटिपूर्ण बढ़े हुए बिलों की संख्या भी बढ़ती चली जाएगी। हम बिजली विभाग का अत्याचार इसलिए सहते हैं क्योंकि हम जागरूक उपभोक्ता नहीं हैं।
मुंशी हरदिल अजीज और मियां झान झरोखे पर अपनी बात के पड़ने वाले प्रभाव से उत्साहित खबरीलाल कुछ सोचकर बोले उपभोक्ता की बात हो गई। अब देखो हाल बिजली वालों का। आजकल बताओ इसमें गुस्से की क्या बात है। आप सबकी दिन रात की मेहनत के बाद भी विद्युत निगम का घाटा साल दर साल बढ़ रहा है। अब काम सही हो तब फिर व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत नहीं पड़ती। कंपनी लाभ में होती तब फिर कर्मचारियों को भी बहुत कुछ मिलता है। पर यहां आलम ही दूसरा है। एक उपभोक्ता का विद्युत कनेक्शन काट दिया गया। विच्छेदन तिथि की रीडिंग भी स्लिप में दर्ज थी। उस हिसाब से भी इतनी धनराशि बाकी नहीं निकलती। उपभोक्ता बेचारा बहुत दौड़ा। परन्तु विभाग के किसी भी अधिकारी, कर्मचारी ने उसकी नहीं सुनी। हार कर वह उपभोक्ता फोरम में चला गया। विभाग ने फोरम में दाखिल अपने जबाव में एक लाख बहत्तर हजार के स्थान पर वांसठ हजार की बकाया निकाली। उपभोक्ता का कहना है कि वह वास्तविक विद्युत उपयोग का भुगतान करने को तैयार है। परन्तु विभाग में उसकी अब भी नहीं सुनी जा रही है। वास्तविक भुगतान के अनुसार विद्युत बिल बनाने के लिए सीधे तीस हजार रुपये की फरमाइश की जा रही है।
खबरीलाल बोले विगत दो वर्षों में विद्युत बिलों के भुगतान के लिए दो समाधान योजनायें लागू की गईं। हजारों उपभोक्ताओं ने इनका विकल्प स्वीकार किया है। परन्तु बिजली विभाग सभी उपभोक्ताओं के संशोधित बिल नहीं भेज पा रहा है। पुराने बकाये के बिल आ रहे हैं। बिलों के भुगतान संशोधन के कैंप लग रहे हैं। कनेक्शन काटने की धमकियां दी जा रही हैं। परन्तु अपनी गलती मानने को विभाग का कर्मचारी अधिकारी कोई भी किसी स्थिति में तैयार नहीं है। फर्जी रसीद कापियों पर वसूली गई धनराशियों के मामले तक दबाये जा रहे हैं।
इस विभाग की कहानी बड़ी अजब गजब है। खबरीलाल एक गूढ़ रहस्य बताने के अंदाज में बोले! कुछ दिन पहले विभाग के वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी बताने लगे। बिजली विभाग के करोड़ों के बकाया की बात प्रचारित कर उपभोक्ताओं को डराया जाता है। वह सब बिजली चोरी और त्रुटिपूर्ण बिलों का खेल है। बिजली चोरी का पैसा ऊपर से नीचे तक अधिकारियों, कर्मचारियों की जेब में जाता है। त्रुटिपूर्ण बिलों से वसूली धमकी वि़च्छेदन आदि के माध्यम से विद्युत विभाग की गाड़ी घिसट घिसट कर चल रही है। अगर दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ सुधार के सार्थक प्रयास तत्काल प्रारंभ नहीं किए गए तब फिर प्रगति पथ पर हमारा कारवां पिछड़ता ही चला जाएगा।
ऐसे ही चलते रहे- याद किए जाओगे डी0 एम0 सहब!
लगता है नीचे से लेकर ऊपर तक के जनप्रतिनिधियों का कार्यभार आने वाले दिनों में हल्का हो जाएगा। नए जिलाधिकारी के तेवर यदि ऐसे ही कायम रहे तब फिर जरूरत मदों को एक दरबाजे से दूसरे दरबाजे और एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।
अभी शुरूआत है पुराने अनुभव कोई बहुत अच्छे नहीं हैं। हर बार आने वाला नया अधिकारी प्रारंभिक दिनों में अपनी प्राथमिकताओं को बताता है तेजी दिखाता है। धीरे-धीरे सब कुछ पूर्ववत सामान्य हो जाता है। जनप्रतिनिधियों को जनसेवकों की ज्यादा तेज तर्रारी अच्छी नहीं लगती। जिलों में आला अफसरों का कार्यकाल लगातार छोटा ही होता जा रहा है। इस बार माहौल पता नहीं क्यों नए मुख्यमंत्री नौजवान मुख्यमंत्री के कारण कुछ बदला बदला लगता है। भगवान करे यह कोरी आशावादिता साबित न हो।
जिलाधिकारी के यहां जन साधारण की शिकायें सुनने और उनके त्वरित निस्तारण के लिए वाकायदा काउंटर स्थापित किए हैं। बन रहा है। यह व्यवस्था बनी रही और इसके कुशल संचालन से यदि जन साधारण के विश्वास में बढ़ोत्तरी होती रही तब फिर परिवर्तन होकर रहेगा।
जिला मुख्यालय की तरह ही यदि यही व्यवस्था विकास खण्ड स्तर पर भी कायम की जा सकी तब फिर दिन प्रतिदिन के कार्यों में जन साधारण की भागीदारी बढ़ेगी। दलालों मुखबिरों और जन सेवा की आड़ में पैसा बटोरने का धंधा करने वालों के दिन लद जायेंगे। इस व्यवस्था के प्रभावी होने से छोटे-छोटे कार्यों के लिए युवा मुख्यमंत्री के जनता दरबार में जुटने वाली हजारों की भीड़ कम होगी। साथ ही साथ शासन प्रशासन गंभीर कार्यों में अधिक समय दे सकेगा।
उम्मीद करनी चाहिए कि जिले में जन समस्याओं के समाधान के लिए चलाई जा रही नहीं व्यवस्था और प्रभावी तथा पारदर्शी होगी। युवा मुख्यमंत्री के राज्य में युवा जिलाधिकारी से समस्याओं के समाधान को टालना उत्पीड़न की तरह है सुनकर अच्छा लगा।
हम कोई हों, कहीं भी हों,
देश के नागरिक तो हैं।
स्वयं आगे बढ़ेंगे साथ लेकर
के सभी को उत्साह से भरकर
गल्तियां कमियां रही होती रहीं
अब नहीं होंगी कभी भी किसी से
यह हमारा आज से
संकल्प है तो है!
पुलिस नहीं पुलिस का इकबाल राज्य करता है- कप्तान साहब
व्यापारियों और जन सामान्य के हितों की दुहाई देने वाले व्यापार मण्डलों के पदाधिकारी भी अब राजनीतिज्ञों की तरह आचरण करते हैं। अधिकांश जगह यह दोहरी भूमिकाओं में है। प्रदेश में नयी सरकार बने अभी मात्र डेढ़ महीना हुआ है। सरकार पर कानून व्यवस्था पर लूट पर भ्रष्टाचार पर मनमानी पर मुख्यमंत्री के सजातियों पर हमला करने का कोई भी मौका यह नेता जाने नहीं देते। समाचार पत्र उठा लीजिए हत्या कत्ल, डकैती सहित तमाम गंभीर अपराधों और खाकी की मनमानी सिंहम और दबंग गंगाजल स्टाइल की कलाकारी से किस्से आम हैं। आई जी, डीआई जी सब अपनी-अपनी तरह से पेंच कस रहे। मतलब साफ है कि हालातों में कहीं कोई विशेष सुधार नहीं हुआ।
नए पुलिस अधीक्षक को आए और भी कम समय हुआ है। परन्तु ठकुरसुहाती के लिए विख्यात व्यापार मण्डलों के पदाधिकारी सफल अतिक्रमण विरोधी अभियान के बाद अपनी साख बचाने में लगे हैं। इनसे कहो कि आप व्यापारियों के नेता हैं बाजार में पुनः अतिक्रमण न हो यह जिम्मेदारी जनहित में आपकी है। उपेक्षा से गुस्से में कंधे उचकाकर कहेंगे। क्या बेमतलब की बात करते हैं भाई साहब आप भी। यह हमारा काम नहीं है।
सभी प्रमुख राजनैतिक दलों से जुड़े व्यापार मण्डलों के नेतागणों फिर आपका काम क्या है। अपने निहित स्वार्थों के लिए, अधिकारियों से जान पहिचान, यारी, दोस्ती नई पुरानी करने के लिए निजी होटल में अधिकारियों का एक घटना विशेष को लेकर अभिनंदन करने का। अनसुलझे मामलों पर आपकी बोलती क्यों बंद हो जाती। जी हां सही है ऐसा करेंगे तब फिर थाना चौकियों में इन्ट्री बंद हो जाएगी। दलाली बंद हो जाएगी यह बात हम नहीं कहते। यह तो आपके प्रतिद्धन्दी व्यापार मण्डलों के नेता स्वयं ही एक दूसरे से कहते हैं। सच्चाई क्या है कितनी है यह आप जानें।
फिर अभिनंदन स्वागत सरकार किसे अच्छा नहीं लगता। कप्तान साहब को मौका मिल गया। लगे हाथों अभिनंदनकर्ताओं को नसीहत दे डाली। अपने अभिनंदन से गदगद होकर बोले अपराध न कभी कम हुआ है और न ही कभी कम होगा। अगर पब्लिक पुलिस का सहयोग करें तभी स्थिति में सुधार हो सकता है।
कप्तान साहब! सही फरमाया आपने! यह पब्लिक है ही ऐसी। यह किसी को सहयोग नहीं करती। न नेता को न पुलिस को और न ही प्रशासन को। तभी विचारे सब फेल हैं। अब बताओ पैसे लेकर चलोगे घर में रखोगे तब फिर लूट होगी ही। बैंकों में भी आए दिन डकैतियां पड़ती हैं। फिर अपना पैसा कीमती सामान कहां रखें। अरे अपने इलाके की पुलिस चौकी या थाने में रखो। रसीद अपन पास रखो। सब सुरक्षित रहेगा कोई खतरा नहीं।
बात सही नहीं लगती। गले नहीं उतरती। अगर वास्तव में ऐसा होता तब फिर कप्तान, सीओ, थानेदार, चौकी प्रभारी कोई भी होता रामराज्य कायम रहता। एसओजी की कोई जरूरत ही नहीं रहती। अंग्रेजों के जमाने में जो इकबाल गांव के चौकीदार का हो तथा आज किस पुलिस अफसर का अपने क्षेत्र में यह सोचकर भी नहीं बताया जा सकता।
कप्तान साहब बहादुर! हम कहते हैं कि आप और आपकी पुलिस कामयाब हो। आपका वास्तविक और सच्चा नागरिक अभिनंदन हो। एक दल विशेष की भड़ैती ब्रांन्ड गोष्ठी की तर्ज पर नहीं। पुलिस नहीं पुलिस का इकबाल राज्य करता है। पुलिस का इकबाल निष्पक्ष और निर्भीक होकर पारदर्शिता पूर्ण कार्य प्रणाली स कायम होता है। हम सब चाहेंगे कि नगर और जिले की गली गली, गांव-गांव में जन साधारण द्वारा आपका अभिनंदन हो। थाने चौकी जन सहायता केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठा पायें। बदमाश अपराधी या तो यह जिला छोड़ दें या अपनी बदमाशी और अपराध करना छोड़ दें। कुछ भी असंभव नहीं है। व्यापार मण्डल के शूरमाओं तुम भी अपनी कार्य पद्धति बदलो। व्यापारियों से सम्बंधित विभागों को जन सहयोग से सुधारने की योजना बनाओ। पुलिस ही नहीं जनता भी आपका सहयोग करेगी।
आवश्यकता है महिला चेयरमैन की
लगभग एक दर्जन दिग्गज महिला नेताओं के नाम चर्चा में हैं। किसी के पति किसी के बेटे किसी के भाई अपने घर की आन वान शान बढ़ाने एक अदद चेयरमैन नगर की दशा सुधारने के लिए जनता के सामने हैं। आने वाले दिनों में यह संख्या और बढ़ेगी। पद चूंकि सामान्य महिला के लिए सुरक्षित है। इस लिए हर वर्ग की महिलाओं के लिए मैदान खुला है। इस पर विस्तार से तस्वीर साफ होने पर अगले सप्ताह। परन्तु आप वोट डालने के लिए तैयार हो जाइए। वोट आप किसे दें। यह फैसला आपका है। परन्तु वोट आप अवश्य डालें। यह अनुरोध हमारा है। यकीन मानिए आपको सबसे अच्छा चेयरमैन मिलेगा।
सरकार बदली नेता बदले
होली के त्यौहार से पहले चुनाव परिणाम आते ही आनन फानन सब कुछ बदल गया। कप्तान साहब से लेकर थाने चौकियों, विभिन्न विभागों के कार्यालयों में जिनकी तूती बोलती थी। सबके सब गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए। जिनकी रायफलों, रिवाल्वरों में पांच सालों में जंग लग गई थी जो सरकारी कार्यालयों का रास्ता भूल गए थे। माननीयों की कृपा से पूरे उत्साह के साथ सक्रिय हो गए। नौकरशाहों और पुलिस वालों के तेवर बदल गए।
परन्तु सरकार की गाड़ी चलना प्रारंभ हुआ। तब फिर धीरे धीरे सब कुछ सामने आने लगे। समाजवादी नेता लोक बंधु जयनरायन बताते थे नेता दो तरह के होते हैं। एक संघर्ष के नेता और एक टाइपराइटर से निकलने वाले नेता। सभी दलों की जिला शहर कमेटियां प्रदेश कमेटियां और प्रकोष्ठ भंग हैं। सपा छोड़कर बाकी लोग अब संघर्ष की तैयारी में हैं। सपाई अपने संधर्ष की गाथा प्रमाण सहित पर्यवेक्षक को देकर टाइपराइटर से किसी अच्छे मनोनयन पत्र के लिए जमीन आसमान के कुलावे मिला रहे हैं।
इन दो के अलावा दो तरह के नेता और हो गए हैं। भले ही आप पार्टी के साधारण सदस्य न हों। किसी नेता के दरबार में दखल है। जेब में दाम है। तब हाईकमान को धता बताकर बड़ी होर्डिंग लगाइए फोटोयुक्त बड़ा विज्ञापन दीजिए। अपने नाम के नीचे वरिष्ठ नेता या क्लास वन कान्ट्रेक्टर लिखाइए। मनमानी करने का लाइसेंस लेकर चाहें जहां जो मन हो करते रहिए। नेताओं के दरबारों में हाजिरी और उनके स्वागत समारोहों में योगदान से ही आपकी वरिष्ठता निर्धारित होती रहेगी। आप संघर्षशील होने जेल जाने, आंदोलनों में भाग लेने का ढिढोल पीटते रहिए- कुछ होगा नहीं।
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विष रहित विनीत सरल हो।
और अंत में – सपा में फिर बन गयी अनुशासन समिति
हर राजनैतिक दल में निष्ठा, आस्था, अनुशासन की दुहाई दी जाती है। चुनाव बाद भाजपा ने अनुशासन का डंका पीटा। शर्मा शर्मी कुछ पर कार्यवाही हुई। फिर जमकर वयानबाजी हुई। युवा नेता अपनी पार्टी को बूढ़ी पार्टी बताने लगे। ठेकेदारी का शौक जो न कराए। जब जय श्री राम का राष्ट्रीय अध्यक्ष खुलेआम घूसखोरी करने के कारण जेल जाए तब फिर बाकी का भगवान ही मालिक है।
समाजवादी आपस में लड़ने झगड़ने विलय विघटन के शानदार रिकार्ड के स्वामी हैं। अनुशासन की जितनी दुहाई यहां दी जाती है अनुशासन की उतनी ही धज्जियां यहां उड़ाई जाती हैं। यहां के एक पूर्व विधायक हरदोई जनपद के एक धुआंधार दल बदलू नेता के नेतृत्व वाली पार्टी से कन्नौज संसदीय क्षेत्र से मुलायम सिंह यादव के विरुद्व चुनाव लड़े। हरदोई वाले दल बदलू नेता तब भाजपा गठबंधन में मंत्री थे। बाद में भाजपा से खदेड़े जाने पर पूरी पार्टी का सपा में विलय हो गया। वहां से बसपा में गए। वहां वह सब कुछ मिला जिसके लिए वह दल बदल करते हैं। इस बार चुनाव से पहिले फिर बसपा छोड़ सपा में आ गए। बेटा विधायक बन गया और स्वयं राज्य सभा सदस्य। अनुशासन की इतनी अच्छी मिसाल कहां मिलेगी। मुलायम सिंह यादव के विरुद्व चुनाव लड़े नेता फिर सपा में आकर टिकट पा गए यह अलग बात है सारी तिकड़में करके जीत नहीं पाये। अब लाल बत्ती के चक्कर में लखनऊ कन्नौज, दिल्ली एक किए हुए हैं।
सपा के अनुशासन की बहुत लंबी कहानी है। एक शानदार उदाहरण और देंगे। पुराने दलबदलू समाजवादी परिवार के एक सज्जन ने 1993 में चुनाव हारने के बाद सपा में शामिल हो गए। तब से बराबर टिकट पा रहे हैं। 1983 में मुलायम सिंह यादव के तत्कालीन जनता दल प्रत्याशी से हार गए थे।
पुराना राजनैतिक परिवार है। अपनी बात के आगे किसी की सुनते नहीं। अपने से ज्यादा तीस मार खां किसी को नहीं समझते। पार्टी में जो कुछ चाहिए ग्राम प्रधानी से लेकर ऊपर तक के सब पद उन्हीं को और उनके परिवार को चाहिए। जिला पंचायत के पिछले चुनाव में इन्हीं माननीय की भाभी जी को सपा ने अध्यक्ष पद प्रत्याशी बनाया। पूरी पार्टी और मुलायम सिंह यादव की पूरे प्रदेश में तब थू-थू हुई। जब सपा प्रत्याशी को उसका अपना वोट तक नहीं मिला। सारे वोटों का थोक में करोड़ों का सौदा हुआ।
पार्टी बुरी तरह बौखला गई। आनन फानन में पांच सदस्यीय अनुशासन समिति बनी। एक राय से माननीय पर कठोरतम कार्यवाही संस्तुति हुई। कुछ नहीं हुआ। उन्हें चुनाव में टिंकट मिला और सरकार बनने पर मंत्री बना दिया गया। ऐसा है सपा का अनुशासन। भगवती सिंह खांटी समाजवादी हैं। उनके नेतृत्व में बनी अनुशासन समिति से भी कुछ सार्थक परिणाम न निकले तब फिर लोगों की बड़ी निराशा होगी। जय हिन्द!
सतीश दीक्षित