सतीश की कलम से- बाप रे बाप: तेली का तेल जले और मशालची की……!

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सत्ता के होने न होने का असर देखना हो जाकर ठंडी सड़क स्थित लक्ष्मी कोल्ड स्टोरेज और फतेहगढ़ जयनरायन वर्मा रोड स्थित लोक निर्माण विभाग के निरीक्षण भवन का नजारा देख लो।


कमल और हाथी का निश्चित ठिकाना नहीं है।
आपस में ही लड़ने से फुरसत नहीं है।

छाछ हैं सब, हम दही हैं,
सब गलत बस हम सही हैं!

दृश्य संख्या 1- बसपा के लोकसभा प्रत्याशी घोषणा का कार्यक्रम

विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश सरकार में बहन जी के बाद सबसे ताकतवर मंत्री थे नसीमुद्दीन सिद्दीकी। सबसे ज्यादा और सबसे मलाईदार विभाग उन्हीं के पास थे। कन्नौज और फर्रुखाबाद में जब पधारते थे। तब पूरे के पूरे जिले और पार्टी में हड़कंप मच जाता था। चुनाव बाद जब लोकसभा प्रत्याशी की घोषणा करने आये तब बहन जी का नारा लगाने वाले लोगों की तुलना में कुर्सियां बहुत ज्यादा थीं। पहिले सभागार में करीने से लगायी गयीं। जब उम्मीद के माफिक लोग नहीं आये तब समेट कर कोनों में लगा दी गयीं। लम्बी-लम्बी बातें करने वाले या तो नदारत थे या फिर एक दूसरे से नजर चुरा रहे थे। लोकसभा प्रत्याशी की घोषणा हुई तब भी कोई उत्साह नजर नहीं आया। बसपा में घोषित प्रत्याशी कब बदल जाये। कब कहां चला जाये कोई नहीं जानता। पिछली बार का सपा से आया प्रत्याशी आज फिर सपा में है। सपा का प्रत्याशी पुत्र मोह में पुनः भाजपा में है। इनके इस आचरण पर कुछ कहो। पलक झपकते ही यह सबको गलत और अपने को सही ठहराने लगेंगे। शर्म लिहाज पश्चाताप जैसी बात कहीं भी ढूंढ़े नहीं मिलेगी।

चुनाव प्रचार के दौरान बसपा नेताओं के अनुसार जो हाथी विरोधियों को सपनों में डराता था वह नजर नहीं आता। बहन जी की जय जयकार अब बहुत कम सुनाई पड़ती है। परन्तु जो लोग लाभान्वित हुए हैं, मालामाल हुए हैं। टापटेन में सूबे में जिनकी गिनती है वह भी दायें बायें मौका तलाश रहे हैं। दांव पेंच चल रहे हैं। पहले भी सही थे आज भी सही हैं। आगे भी सही रहेंगे। विरोधियों की बात की परवाह नहीं करते। माहौल में सन्नाटा, मंत्री जी के तेवर ढीले सब कुछ रस्म अदायगी की तर्ज पर। पुराने समर्पित कार्यकर्ता मौजूद थे गिनती जरूर कम थी। परन्तु वरिष्ठों और क्लास वन कान्ट्रेक्टरों की अनुपस्थिति सभी को चौंका रही थी।

दृश्य संख्या 2- समाजवादी पार्टी के साजन की समीक्षा बैठक का जलवा दर्शन-

एक बार पुनः दोहराइए – जो मान जाए वह सपाई क्या- जो जलेवी न बनाये वह हलवाई क्या। पार्टी कार्यालय से लेकर डाक बंगले तक जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है। साजन जी आए हैं। एक ने पूछ दिया इसमें क्या खास बात है। शादी व्याह का मौसम है। जहां देखो वहीं घोड़ी, रथ पर सजे धजे बैण्ड बाजे के साथ मिल जायेंगे। गुस्से में वरिष्ठ सपा नेता जी बोले बौढ़म हो यार। कुछ पता भी है अरे अपने सुनील साजन भैया आए हैं। सपा की छात्र सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। अपने अखिलेश भैया के सर्वाधिक विश्वास पात्रों में से हैं। इस बार डाक बंगले में रुके हैं। अपनी सरकार है न। अब जलवा और झांपा अपने आप आ जाता है। देख रहे हो कितना सपाई लोहियापुरम से लेकर डाक बंगले तक चक्कर काट रहा है। इससे पहले किसी वरिष्ठ के यहां चले जाते थे रुक जाते थे। अब सत्ता में है न थोड़ा बदलाव आ ही जाता है। सादगी, शिष्टाचार को कहां तक ढोयें। घर जाकर क्या बतायेंगे। अरे ताऊ क्या जलवा था। तुम होते तुम्हारी छाती चौड़ी हो जाती। तुम से भी ज्यादा उमर के लोग लाइन में लगकर के एक मिनट अलग बात करने का इशारा कर रहे थे। हम भी आनंद ले रहे थे। देखने लायक जलवा था। ताऊ  अब तुम्हें क्या-क्या बतायें।

यह जलवा दर्शन चल ही रहा था। नए सेनापती पुराने सेनापतियों को उचकने नहीं दे रहे थे। देखते-देखते भीड़ दो हिस्सों में बंटने लगी। फिर वह सब हुआ जो किसी राजनैतिक पार्टी में नहीं होना चाहिए था। किसी को किसी का लिहाज नहीं था। सभी अपने को सही साहूकार और निष्ठावान बता रहे थे। दूसरे को चोर गद्दार विश्वासघाती बता रहे थे। इस बीच कुछ फाइवस्टार गालियां भी हवा में तैरने लगीं। साजन जी बोले अरे भाई ऐसा मत करो। यह समीक्षा बैठक है। हमारी शादी की ज्यौनार नहीं है। परन्तु कुछ ने उनकी मानी तो कुछ ने बिल्कुल नहीं मानी। सभी को पद चाहिए अच्छा पद। लग रहा था समीक्षा बैठक नहीं है। बेरोजगारी भत्ते का वितरण केन्द्र है। सभी अपने को गरीब दरिद्र और दूसरे को रईस और डकैत बता रहे थे।

दृश्य संख्या 3- कांग्रेस में 4 भुन्टिया (मक्का)  और टीले पर खलिहान और उसमे भी घमासान

हाथ वाले देश में दिल्ली में जो कुछ भी हों यहां पर वह साहब और मैडम जी की बारात हैं। इस बारात का यही कहना है कि हम बिगड़े ही नहीं हैं। तब फिर सुधरने की बात ही कहां आती है। हम बाहर किसी से नहीं लड़ते दम ही नहीं है लड़ने की । हम आपस में ही पूरी तेजी और जिम्मेदारी से लड़ते हैं। अपनी पार्टी और अपने नेताओं की फजीहत करने कराने में हमें विशेष आनंद आता है।

विधानसभा चुनाव से पहिले भी हम आपस में ही मोर्चा खोले रहे। चारो सीटों पर जमानत जब्त हो जाने का हमें मलाल नहीं है। राहुल गांधी ने लंबी मैराथन समीक्षा बैठक भी करली। हमारे नेता का कोई कुछ बिगाड़ सका। हमारी मैडम तो सदाबहार हैं। उन्हें चुनाव लड़ने का जुनून है। एक चुनाव समाप्त होता है। हारें जीतें दूसरे चुनाव की तैयारी दूसरे दिन से ही शुरू हो जाती है। वह भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से।

यहां का मोर्चा साहब और मैडम जी के सिपहसालार थामे हैं। लोकसभा का चुनाव अभी दूर है। इसलिए स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर तलवारें खिंचने लगीं हैं। कोई किसी को वख्शने के मूड़ में नहीं है। पार्टी बचे चुनाव जीते इससे किसी को कुछ भी लेना देना नहीं है। अपनी कुर्सी बची रहे मासिक पगार मिलती रहे। चुनाव होते रहें, दाम आते रहें काम होता रहे। हमें और कुछ चाहिए भी नहीं। संतोषी सदा सुखी। अपने हो अपनो की तरह रहे। हमारी कुर्सी की तरफ नजर भी उठाई तब समझो तुम्हें न घर का रखेंगे न घाट का रखेंगे।

दृश्य संख्या 4- भाजपा के धर्मपाल का धर्म संकट

कमल घाटियों की समीक्षा बैठकें चल रहीं हैं। नीचे कमेटियां भंग ऊपर नये अध्यक्ष जी आ गए। धर्म संस्कृति की दुहाई देकर धर्मपाल जी चले गए। गद्दारों को नहीं छोड़ा जाएगा। चाहें जितने बड़े पद पर हों। कार्यवाही हो रही है। नोटिस जा रहे हैं। लोग त्यागपत्र दे रहे हैं। अब 11 सदस्यीय संचालन समिति बनेगी। वहीं पूरे दम खम से चुनाव लड़ायेगी। जैसे पहिले चुनाव पूरी दमखम से लड़ाते रहे।

कुछ करना ही नहीं है। कुशवाहा जी को उनकी जबर्दस्त जयजयकार करके थाम लीजिए। फिर उनको उनके हाल पर छोड़कर ईमानदारी से अपनी गल्ती मान लीजिए। सपा के कथित मुस्लिम तुष्टीकरण पर आग बबूला होते रहिए। परन्तु अपने धर्म और समाज की कुरीतियों और पाखण्ड को पालते पोसते रहिए। असली नकली ढोंगी साधु संतों को शोशेबाजी से बरगलाते रहिए। केन्द्र में कांग्रेस और प्रांत में सपा गाली देने को निशाने हाथ में हैं। परन्तु अपनी आत्म समीक्षा का समय मत निकालिए। जिले से प्रांत लेकर दिल्ली तक पार्टी विद द डिफरेंश का गाना गाइए।

दृश्य संख्या 5- बाप रे बाप- तेली का तेल जले और मशालची की……….!

निर्दलीय मोर्चा- कहते रहो हमें सिद्ध दोष हत्यारा, गुंडा, जुआंड़ी, अवसरवादी, दलबदलू, दर्जा नौ पास (हाईस्कूल फेल नहीं) और जो जो विशेषण आपके पास हों सबके सब हमारे नाम के आगे जोड़ते रहिए। जब जिले और शहर की जनता ही आपकी नहीं सुनती तब फिर आप या कोई और हमारा क्या कर लेगा। हम तीन बार विधायक बने। पार्टी बदलने, नेता बदलने में हम कभी कंजूसी नहीं करते। नगर पालिका की चेयरमैनी हमारे घर की खेती है। जिले और शहर में हमारी विरादरी के दर्जन भर भी वोट नहीं है। परन्तु जनता हमें दिल खोलकर जिताती है। तब आपके पेट में मरोड़ क्यों होती है। यह तो वहीं बात हो गई कि तेली का तेल जले और मशालची की …………..! क्षमा करें बड़ी मजबूरी में यह सब कहना पड़ रहा है।

हम निर्दलीय हैं। हमारा कोई सहारा नहीं है। फिर भी जनता हमें जिताती है। हम जिस पार्टी को अपनाते हैं उसका सितारा बुलंद हो जाता है। जिसे छोड़ देते हैं उसका बाजा बज जाता है। देखा नहीं इस बार तो हमारे खिलाफ बड़े-बड़े धुरंधर थे। भाजपा, बसपा, सपा, कांग्रेस, राक्रांपा और एक अपने आपको सबसे ज्यादा धुरंधर समझने वाले श्रीमान जी। सबके सब टापते रह गये। अपन राम पहुंच गये विधानसभा में। भइया जीत तो जीत है। चाहें एक वोट से हो चाहें एक लाख से। सीटें सबकी साथ-साथ हैं। अलग किसी की नहीं। अपनी कमियों को हमसे ज्यादा कौन जानता है। यह सही है सायकिल वाले इस बार मुंह नहीं लगा रहे हैं। कोई फिक्र नहीं है। स्थानीय निकाय और लोकसभा चुनाव तक ठंडा बाजार गरमा जाएगा। फर्रुखाबाद की राजनीति में हम गुढभरा हंसिया हैं। हमें निगल भी नहीं सकते और उगल भी नहीं सकते। अच्छा जब जय राम जी की। मुख्यमंत्री जी का फोन आया है। बुला रहे हैं कई मामलों में बात करना है। बांकी बातें लौटने पर बतायेंगे।

सतीश दीक्षित
एडवोकेट
1/432 शिव सुन्दरी सदन
लोहिया पुरम
आवास विकास, फर्रुखाबाद