श्रेष्ठता के दम्भ में चूर, सांसदों का गुस्सा कितना जायज़?

Uncategorized

फर्रुखाबादः बिना किसी बहस के सर्वसम्मति से अपने वेतन भत्ते और सांसद निधि में बेशुमार बढ़ोत्तरी करने वाले माननीय सांसदगण आजकल बहुत गुस्से में हैं। उनके विशेषाधिकार पर कथित रूप से हमला हुआ है। निशाने पर हैं टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य केजरीवाल। नोटिस पर नोटिस भेजे जा रहे हैं परन्तु केजरीबाल हैं जो यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उन्होंने संसद या सांसदों की शान में कोई गुस्ताखी की है।

आइए देखें माजरा क्या है। बात थोड़ी पुरानी है लेकिन इतनी पुरानी भी नहीं कि लोगों के जेहन में न हो। नक्सलवादी आंदोलन तेजी पर था, व्यवस्था के विरुद्व लोगों का गुस्सा निरंतर बढ़ रहा था। राजनीति की शासन, प्रशासन, जनप्रतिनिधियों के बीच आज जैसी सड़ांध और गंदगी नहीं थी परन्तु दीवारों पर संसद “……” का बाड़ा है के नारे बढ़ते जा रहे थे। परन्तु इस पर किसी प्रकार का हो हल्ला, शिकवा शिकायत पूरी तरह से नदारद था।

अब स्थिति बदल गयी है। राजनीति में, चुनाव में धन बल, बाहु बल, माफियागीरी, भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ रहा है। आश्चर्य ही नहीं शर्म की भी बात है कि विगत 42 वर्षों से हमारे माननीय सांसदगण लोकपाल बिल को पास करने की सहमति नहीं बना पाये। वहीं भीषण महंगाई से पीड़ित जनसाधारण के जख्मों पर नमक छिड़कने के अंदाज में हमारे माननीय सांसदों ने अपने स्वयं का वेतन भत्ता बिना किसी बहस और विरोध के आनन फानन में बढ़ा लिया। अरविंद केजरीवाल जितने सांसदों को दागी बता रहे हैं असंदिग्ध रूप से उससे कई गुने सांसद कथित रूप से सांसद निधि के अन्तर्गत होने वाले निर्माण कार्य में कमीशनखोरी करते होंगे। अपनी-अपनी आस्था के अनुरूप कितने सांसद कसम खा कर यह कहने की स्थिति में हैं कि वह अपना चुनाव उतनी ही धनराशि से लड़ते हैं जितनी धनराशि चुनाव आयोग द्वारा मान्य है।

कितने पूर्व मुख्यमंत्रियों और वर्तमान सांसदों के कथित घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच पड़ताल सीबीआई द्वारा की जा रही है। टीम अन्ना में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसके विरुद्व कोई आपराधिक प्रकरण हो या जिसका कोई मामला सीबीआई या किसी अन्य जांच एजेंसी में लांबित हो। पर आप माननीय सांसद हैं, लोकतंत्र के मंदिर के जागरूक प्रहरी हैं, आपसे गरिमामय आचरण, सहनशीलता, सहिष्णुता और सामान्य शिष्टाचार की यदि अपेक्षा की जाती है, इसमें गलत बात क्या है। जो भी आपका विरोध करता है या आपके आचरण व्यवहार पर उंगली उठाता है उसे आप चुनाव लड़ने की चुनौती देने लगते हैं। परन्तु चुनाव सुधारों को लागू करने के नाम पर आपको सांप सूंघ जाता है।

सम्मान बाजार में बिकता नहीं है यह सद आचरण, सद व्यवहार और सत्कर्मों से मिलता है। आप क्या हैं, कैसे हैं यह आपसे बेहतर कौन जानता है। श्रेष्ठता का झूठा लवादा उतारकर अपने आपसे सवाल करिये कि क्या आप वास्तव में वही हैं जैसा होने की अपेक्षा आप टीम अन्ना केजरीवाल या जन साधारण से करते हैं। आप सत्कर्म करते हैं तब भी उन पर अभिमान करने की कोई आवश्यकता नहीं है। शिष्टाचार से मनुष्य उन्नति करता है अतः अशिष्टता किसी के लिए वरेण्य नहीं है।

हमारे यहां लोकतंत्र है- मतदान का प्रतिशत बढ़ाने का अभियान चलाइए। राजनीति की, सांसदों की, व्यवस्था की सारी की सारी सड़ांध और गंदगी अपने आप दूर हो जाएगी।

नानक नन्हें हुइ रहो, जैसी नन्हीं दूब,
बड़े-बड़े झरि जायेंगे दूब खूब की खूब।

सतीश दीक्षित