विश्व टीबी दिवस : एंटी टीबी ड्रग का कम हो रहा असर

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आज विश्व टीबी दिवस है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि टीबी लगातार जानलेवा बनती जा रही है। विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत में टीबी रोगियों की स्थिति पर कहा है टीबी की दवा के लिए नई तकनीकी इजात करने की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक टीबी के कीटाणु पर दवा का असर कम हो रहा है। यही कारण है कि एमडीआर (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट) टीबी विकसित हो रहा है।

विश्व टीबी दिवस की पूर्व संध्या पर टीबी रोग विशेष डॉ. प्रवीण मल्होत्रा ने डब्ल्यूएचओ के एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि टीबी के मरीजों को जो दवा दी जा रही है वह 30-40 वर्ष पुरानी है। यह दवा उस वक्त के टीबी के कीटाणुओं को देखते हुए बनाई गई थी। दशकों पुराने टीबी के कीटाणुओं का विकास अब नए रूप में हो रहा है, लिहाजा इन पर पुरानी दवा का असर कम हो रहा है। इसी को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने भारत में टीबी दवा की तकनीकी में विकास की वकालत की है।

चूंकि यह गरीब देशों की बीमारी है, लिहाजा पश्चिम व अमीर देश इस बीमारी पर काबू पाने के लिए नई दवा या वैक्सीन पर शोध नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर कैंसर व अन्य बीमारियों पर लगातार शोध हो रहे हैं। आज भी टीबी के लिए दशकों पुरानी आइसोनेक्स, रिफेमटीसीन, इथेम्पूटोल, पैरागीनामाइट, स्टेप्ट्रोमाइसीन आदि दवा दी जाती है। जबकि कीटाणु नए रूप में विकसित हो रहे हैं।

एमडीआर टीबी का हो रहा विकास :

डॉ. मल्होत्रा ने कहा कि एमडीआर (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट) टीबी का विकसित होना सबसे चिंताजनक है। टीबी रोगी अक्सर दवा का कोर्स पूरा नहीं करते, साथ ही बीच-बीच में दवा छोड़ देते हैं। जिससे टीबी के कीटाणु में दवा को बेअसर करने की शक्ति बढ़ जाती है। लिहाजा एमडीआर टीबी का विकास हो रहा है।

वैक्सीन इजात करने की जरूरत :

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉ. प्रवीण मल्होत्रा ने कहा कि पोलियो की तरह टीबी के लिए भी वैक्सीन की जरूरत है। जो न सिर्फ सस्ता होगा बल्कि टीबी के कीटाणु को खत्म करने में असरदार भी होगा। वर्तमान एंटी टीबी ड्रग कीटाणु को मारने में बेअसर साबित हो रही है। इसीलिए टीबी पर विजय अभी बाकी है।

क्षय रोग का इतिहास

क्षय रोग या तपेदिक (टीबी) प्राचीन काल से ही व्यक्ति को प्रभावित करती आ रही है। इस संक्रमण के फैलने की एक निश्वित तारीख नहीं है फिर भी मानवों में इसकी मौजूदगी के साक्ष्य लगभग 2400-3000 ई. पू. मिस्र के ममीज की रीढ की हड्डियों में मिले हैं। लेकिन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस जंगली भैंसों में 18000 साल पहले मौजूद था। यह सं‍क्रमण आदमियों में इन भैंसों से ही आया।

पूर्वी भूमध्य में ऐतिहासिक काल के मानव के कंकाल की जांच से पता चला है कि 7000 ई. पू. मानव में क्षय रोग मौजूद था। ग्रीक शब्द में क्षय रोग को पिथीसिस कहा जाता था। जिसकी वजह से आदमी को जबरदस्त बुखार और खांसी आती थी, और उस समय भी यह बहुत घातक बीमारी थी। इसको ग्रीक शब्द  में खूनी खांसी के नाम से भी जाना जाता था। दक्षिण अफ्रीका पैराकास संस्कृति (गुफाओं में रहने वाले लोग) में ट्यूबरकुलोसिस के साक्ष्य  700 ई.पू. से 100 ई. के मध्य तक मिले हैं।

क्षय रोग पर लोक कहानियां-

विज्ञान के आविष्कार से पूर्व क्षय रोग को पिशाच की बीमारी कहा जाता था। लोगों में यह अवधारण थी कि अगर इस बीमारी से घर के किसी भी सदस्य की मौत हो जाती है तो इसका असर घर के दूसरे सदस्य पर भी होता है। इससे घर के अन्य सदस्य की आंख लाल, खून की खांसी, चेहरा और त्वचा का पीला होना जैसे लक्षण दिखते थे और यह लगता था कि मरने वाले व्यक्ति की आत्मा उसे भी चाहती है।

भारत में क्षय रोग का इतिहास –
भारतीय धार्मिक ग्रंथों में क्षय रोग का उल्लेख मिलता है। ऋगवेद (1500 ई.पू. लिखा गया) में क्षय रोग को यक्षमा कहा गया है, अथर्ववेद में इसे बालसा कहा गया है। सुश्रुत संहिता (620 ई.पू. लिखा गया) में इस रोग से बचाव के लिए मां का दूध, विभिन्न प्रकार के मांस, शराब और आराम का प्रयोग करने को कहा गया है। शिव पुराण में क्षय रोग का वर्णन मिलता है। इसकी कहानी के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री के पति चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया था।

क्षय रोग पर वैज्ञानिक शोध-

17वीं शताब्दी की चिकित्सा की किताबों में ट्यूबरकुलोसिस का उल्लेख वैज्ञानिक रूप से अध्ययन द्वारा किया गया। सिल्वियस ने 1679 में अपनी किताब “ओपेरा मेडिका” में ट्यूबरकुलोसिस के बारे में लिखा है, जिसमें इस बीमारी को फेफडे़ से जुडी बीमारी कहा गया है। इसके विभिन्न लक्षणों की वजह से इस बीमारी को एक बीमारी का नाम 1820 तक नहीं दिया जा सका और 1839 में जे.एल. स्कॉरलीन ने ट्यूबरकुलोसिस नाम का पहली बार प्रयोग किया । 1854 में हर्बर ब्रीमर (जो कि खुद टीबी के मरीज थे) ने ट्यूबरकुलोसिस के इलाज का विचार दिया। खान-पान, मौसम और स्‍थान में बदलाव करके ब्रीमर की बीमारी कुछ हद तक ठीक हुई। 1882 में रॉबर्ट कोच ने ट्यूबरकुलोसिस के कीटाणुओं का पता लगया। 1906 ई. में बीसीजी (बैसिलस काल्मेट-ग्यूरीन) वैक्सीन की खोज अलबर्ट और केमिली द्वारा की गई और आज भी इस टीके से 80 प्रतिशत तक टीबी के मरीजों का इलाज होता है।

क्षय रोग या टी.बी एक संक्रामक बीमारी है, जिससे प्रति वर्ष लगभग 1.5 मिलियन लोग मौत का शिकार होते हैं। पूरे भारत में यह बीमारी बहुत ही भयावह तरीके से फैली है। क्षय रोग के इस प्रकार से विस्तार पाने का सबसे बड़ा कारण है इस बीमारी के प्रति लोगों में जानकारी का अभाव।

विश्व क्षय रोग दिवस पूरे विश्व में 24 मार्च को घोषित किया गया है है और इसका ध्येय है लोगों को इस बीमारी के विषय में जागरूक करना और क्षय रोग की रोकथाम के लिए कदम उठाना।

विश्व टीबी दिवस को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) जैसे संस्थानों से समर्थन मिलता है। भारत में टीबी के फैलने का एक मुख्य कारण इस बीमारी के लिए लोगों सचेत ना होना और इसे शुरूवाती दौर में गंभीरता से ना लेना। टी.बी किसी को भी हो सकता है, इससे बचने के लिए कुछ सामान्य उपाय भी अपनाये जा सकते हैं।

क्षय रोग के लक्षण

दो हफ्ते से ज्यादा खांसी होना, तेज़ बुखार आना ये तो क्षय रोग के आम लक्षण हैं, लेकिन इनके आलावा भी कई ऐसे लक्षण है जिनसे टी.बी की पहचान की जाती है। टी.बी माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टेरिया से होने वाला एक संक्रमण है। किसी भी क्षय रोगी के संपर्क में आने से इस रोग के होने का खतरा रहता है। अस्वस्थ जीवनशैली और अनुचित खान-पान भी इसकी एक बड़ी वजह है। आईए जाने क्षय रोग के लक्षणों के बारे में।

 

 

कमोजरी व थकावट होना

 

क्षय रोग की शुरुआत में आप थोड़ा सा काम करने पर थक जाते हैं आपको कमजोरी महसूस होने लगती है। कई बार लोग इस लक्षण को गंभीरता से नहीं लेते हैं और धीरे-धीरे आपके शरीर पर टी.बी के बैकटेरिया आक्रमण करना शुरु कर देते हैं।

 

बुखार व सर्दी जुकाम

 

बुखार आना, सर्दी जुकाम होना यह तपेदिक होने की शुरुआत भी हो सकते हैं। कई बार यह अपने आप ठीक भी हो जाता है लेकिन कभी-कभी यह वापस भी आ जाता है। ऐसे में बिना देर किए तुरंत क्षय रोग का टेस्ट कराएं।

 

 

कंधे व पसलियों में दर्द   

 

क्षय रोग की शुरुआत में रोगी को कंधे व पसलियों में दर्द की शिकायत भी हो सकती है।

पसीना आना

 

क्षय रोग में ठंड का मौसम हो या गर्मियों कामें रात को पसीना आने लगता और रोगी का मुंह सूखने लगता है।

वजन में कमी आना

 

व्यक्ति के वजन में तेजी से कमी आना, भूख नहीं लगना यह क्षय रोग होने के लक्षण हैं। इन्हें गंभीरता से लें।

 

 

थूक से खून आना

 

क्षय रोग से पीड़ित रोगी को कभी-कभी थूक के साथ खून भी आने लगता है। इसलिए यह लक्षण दिखते ही बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करें।

सांस लेने में समस्या

 

अगर आपको कफ है और सांस लेने में समस्या हो रही है तो इससे गंभीरता से लें तुरंत टेस्ट कराएं।

 

ध्यान दें

  • अगर आपके आसपास में कोई क्षयरोगी है, तो एक बार अपना टी.बी का टेस्ट जरूर करवा लें, क्योंकि क्षय रोग एक संक्रामक रोग है और रोगियों के साथ समय बिताने पर यह आसानी से फैलता है।
  • अगर आप एचआईवी से ग्रसित हैं तो टी.बी होने का खतरा बढ़ जाता है इसलिए टी.बी की जांच जरूर कराएं।
  • अगर आपका ऐसी जगहों पर आना जाना हो जहां टी.बी के मरीज हों तो अपनी जांच जरुर कराएं।
  • अगर आप नशीली दवाओं का सेवन कर रहें हैं या ड्रग्स ले रहे हैं तो क्षय रोग होने की संभावना हो सकती है। ऐसे में जांच कराना जरूरी है

डॉट्स क्या है

टी.बी रोग अब लाइलाज नहीं रहा। हमारे देश में ऐसी दवाईयां बन चुकी हैं जिनसे क्षय रोग ठीक हो सकता है। इन दवाओं का  कोर्स 6-9 महिने का होता है। लेकिन सामान्य तौर पर मरीज़ थोड़ा सा ठीक महसूस करने पर दवाओं का सेवन करना बंद कर देता। इससे टी.बी के दोबारा होने का खतरा बढ़ जाता है। डॉट्स के जरिए टी.बी के रोगियों को ठीक किया जाता है। इसके द्वारा कम समय में रोगी को पूरी तरह से इस रोग से मुक्ति दिलाई जा सकती है। यह विधि स्वास्थय  संगठन द्वारा विश्व स्तर पर टी.बी. को नियन्त्र ण करने के लिये अपनाई गई एक विश्वसनीय विधि है, जिसमें रोगी को एक-दिन छोड़कर हफ्ते में तीन दिन डॉट्स कार्यकर्ता के द्वारा दवाई का सेवन कराया जाता है।

डॉट्स विधि

डॉट्स विधि के अन्तर्गत चिकित्सा के तीन वर्ग है। पहला, दूसरा व तीसरा। प्रत्येक वर्ग में चिकित्सा का गहन पक्ष व निरंतर पक्ष होता है।

गहन पक्ष

गहन पक्ष के दौरान यह सुनि‍श्चित करना होता है कि रोगी दवा की प्रत्येसक खुराक डॉट्स कार्यकर्ता की देख-रेख में लें। इस दौरान हर दूसरे दिन, सप्ताह में तीन बार दवाईयों का सेवन कराया जाता है। अगर निर्धारित दिन पर रोगी चिकित्सालय में नहीं आता है तो डॉट्स प्रोवाईडर की जिम्मेदारी बनती है,  कि रोगी को घर से लेकर आए उसे समझाए और उसे दवा खिलाएं।

निरंतर पक्ष

निरन्त र पक्ष में रोगी को हर सप्ताह दवा की पहली खुराक डॉट्स कार्यकर्ता के सामने लेनी है तथा अन्य दो खुराक रोगी को स्वयं लेनी होगी। अगले हफ्ते की दवाईयां लेने के लिये रोगी को पिछले हफ्ते लिया गया दवाओं का खाली पैक अपने साथ लाना जरूरी होता है।

बलगम की जांच

दवाओं की खुराक देने के बाद रोगी के बलगम की जांच करवाई जाती है। यदि बलगम की जांच की रिपोर्ट निगेटिव है तो रोगी को निरन्तर पक्ष की दवाईयां देना शुरु कर दिया जाता है। यदि बलगम की रिपोर्ट पॉजि़टिव हो तो इलाज करने वाले चिकित्सक रोगी को दी जा रही दवाओं की अवधि बढ़ा देता है।

सभी क्षय रोगियों का इलाज डॉट्स से संभव

डॉट्स पद्धति के अन्तर्गत सभी प्रकार के क्षय रोगियों को तीन समूह में बांटकर उनका इलाज किया जाता है। सभी प्रकार के क्षय रोगियों का इलाज डाट्स से सम्भ व है।