फर्रुखाबाद: अभी एक महीने पहले की ही लुईस खुर्शीद को चुनाव लड़ाने वाले कह रहे हैं कि अब उनका कांग्रेस से कोई लेना- देना नहीं है। वह तो चुनाव लड़ाने गए थे और अब आज़ाद हैं।
कांग्रेस के लिए लम्बी शर्तें मनवाने वाले लोग लुईस खुर्शीद के हारते ही कांग्रेसी नहीं रहे। आमतौर पर लोग एक पार्टी छोड़कर दूसरी से जुड़ जाते हैं,उसके सदस्य बनते हैं। पर इस चुनाव में कुछ अलग ही हुआ। बढ़पुर ब्लाक के 41 प्रधानों ने कांग्रेस का तिरंगा मफलर पहना और कांग्रेस के मंचों से सोनिया व राहुल की तारीफ़ की पर वे कांग्रेस में शामिल नहीं हुए। प्रधानों ने यह बात उसी दिन साफ़ कर दी थी, कि वे कांग्रेस में शामिल नहीं हो रहे हैं। कांग्रेस के सदस्य न बनकर वे कांग्रेस पदाधिकारियों के साथ हर गोपनीय मंत्रणा में शामिल रहे। शायद वे कांग्रेसी बने भी रहते अगर लुईस खुर्शीद चुनाव जीत जातीं। पर लुईस के चुनाव हारने के बाद उन्हें कांग्रेस के करीब खड़े रहने में भी नुकसान समझ में आता है। इसलिए यह लोग अब कहने लगे हैं कि वे तो कांग्रेस में गए ही नहीं थे। भीकमपुरा में व्यापार मंडल के एक पदाधिकारी इस्लाम चौधरी के माध्यम से कांग्रेस में जुड़े थे। उस समय सलमान खुर्शीद की सांसद निधि से बनने वाले नाले को बड़ी उपलब्धि बताकर प्रचार किया गया। चुनाव ख़त्म हुआ तो उन्ही महाशय को नाला निर्माण में अमानकता नज़र आने लगी। पूछा गया कि आपने सलमान खुर्शीद को नहीं बताया तो जवाब दिया उन्हें कांग्रेस से क्या मतलब? उन्होंने तो चुनाव लड़ा दिया। इस तरह के कई दल बदलू हैं जो डील कर के लुईस के साथ गए और कांग्रेस के सदस्य भी नहीं बने। ऐसे लोग धर्मशाला की तरह कांग्रेस को छोड़ आये हैं। अब कांग्रेस के गुलदस्ते में वहीं चंद सूखी टहनियां ही रह गयी हैं।