फर्रुखाबाद : समाज-कल्याण की दुहाई देकर स्वलाभ के उद्देश्यों से निर्मित ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों की भूमिकायें एवं उद्देश्य अति संदिग्ध एवं जनमानस के हितकर नहीं हैं। इनकी वैधानिकता से लेकर संगठन, सदस्यता, चुनाव, संचालन पंजीयन आदि पूर्णतया भ्रामक-फर्जी तथ्यों पर आधारित हैं तथा एक ही परिवार के हितबद्ध सगे-सम्बन्धियों की स्वयंभू पदासीनताएं अवैधानिक है। मजे की बात है कि एनजीओ की आड़ में अधिकांश लाभ कामाने वाले शिक्षा माफिया, राजनेता व सरकारी अधिकारियों के सफेदपोश भाई-भतीजे हैं।
वर्तमान में ट्रस्ट- सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों का निर्माण सरकार में बैठे राजनेताओं एवं प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों तथा उनसे संरक्षण प्राप्त लोगों द्वारा जनता को मूर्ख बनाकर सार्वजनिक विकास योजनाओं के सरकारी धन-सम्पत्ति को अपने निजी कार्यों में उपभोग कर व्यक्तिगत लाभ के लिए हो रहे है। ट्रस्ट-सोसाइटिया-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के लोगों की कानून के निर्माता-निर्देशक-पोषक के रूप में इनकी पदासीनता होने के कारण सामान्य-जन इनके अत्याचार सहने को मजबूर हैं। इनके काले कारनामों एवं अवैध कमाई के कालेधन का चिट्ठा खुलने पर इनके समकक्ष अधिकारियों एवं राजनेताओं के सहयोग से साक्ष्य तथ्यों को प्रभावित कर प्रजातन्त्र के मूल्यों को बुरी तरह से नष्ट किया जा रहा है। अवैध कारोबार में संलिप्त माफियाओं एवं भृष्ट लोगों द्वारा समाज के समक्ष गंभीर चुनौतियां पैदा कर अस्थिरिता पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है।
भारतीय ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के स्वयंभू लोगों द्वारा मूल उद्देश्यों एवं दायित्वों को ताक पर रख कर जन-कल्याण के नाम पर बेरोजगारों एवं शैक्षिक क्षेत्रों सें जबरदस्त अवैध वसूली कर व्यक्तिगत आय अर्जित की जा रही है। इन संगठनों के लोगों द्वारा व्यय के फर्जी बिल-भुगतान के फर्जी आंकडे प्रस्तुत कर अपनी अवैध कमाई के कालेधन को सफेद-धन में परिवर्तित किया जा रहा है तथा सम्बन्धित बजट, बिल-जमा रसीद तथा सरकारी-लेखा विभाग की आडिट लेखा जांचों में इन ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के विरूद्ध अनेकों गंभीर आडिट आपत्तियां लग रही हैं। ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के भृष्ट कारनामें उजागर होकर प्रमाणित हो जाने के बावजूद शासन-प्रशासन द्वारा भृष्ट संगठनों के लोगों के विरूद्ध वैधानिक दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की जा रही है। इन संगठनों के प्रमुख पदों पर एक ही परिवार-व्यक्ति की बारंबार पदासीनता के कारण भारतीय ट्रस्ट-समितियों-गैर सरकारी संगठनों के उद्देश्य एवं दायित्व तथा भूमिकाएं जन-साधारण में हताशा पैदा कर रहीं हैं,। जो कि भारतीय समाज के लिए अभिषाप बनता जा रहा है। ऐसी स्थिति में समाज के लोगों की दृष्टि में ट्रस्ट-सोसाइटियों.-स्वयं सेवी संगठनों के भृष्ट लोगों के यह आचरण कितने अवैध और अनैतिक है? क्या नैतिक है क्या अनैतिक है, इसका निर्धारण नियम-कानून से नहीं, बल्कि देश, काल की परिस्थितियों से होता है।
भारतीय समाज में जो कार्य व्यवस्था पहले नैतिक सवाल नहीं खडे करते थे उनमें से कुछ आज अनैतिक माने जाते हैं। कुछ मामलों में इसका उलटा भी है यानी जो पहले अनैतिक माना जाता था वही आज नैतिकता के दायरे में आ गया है। ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के स्वयंभू पदाधिकारी जिस किस्म का भृष्ट आचरण कर रहे हैं वैसा जाने अनजाने न कितने लोग करते हैं और उनके पक्ष में यह तर्क होता है कि यह तो चलता है। यह पता नही कि ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के स्वार्थी लोगों द्वारा जो भी कुछ किया जा रहा है वह चलता है या नहीं। हालांकि ऐसे लोगों द्वारा भृष्ट तरीके से हडप कर अपने निजी जीवन में उपभोग किए गये सार्वजनिक-सरकारी धन-सम्पत्ति के मामलों में वैधानिक कार्यवाही से बचने के उद्देश्य से इनके द्वारा कभी-कभी सार्वजनिक विकास योजनाओं के सरकारी धन-सम्पत्ति को वापस करने की बात कही जा रही है इससे उनके अपराध प्रमाणित हो रहे हैं। जो कि खुल्लमखुल्ला अति संगीन अपराध की श्रेणी मे आता है।
समाज के कुछ लोगों ने ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के भृष्ट लोगों के आचरणों पर सवाल उठाये हैं। उन्हें यह स्थापित करने से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि भृष्टाचार में संलिप्त एवं ट्रस्ट-सोसाइटियां-एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों तथा समस्त प्रशासनिक-न्यायिक अधिकारी कर्मचारियों के भृष्ट आचरण के विरूद्ध आवाज उठाने का अधिकार सभी को है। यह एक खतरनाक अभियान है। इस अभियान के माध्यम से यह साबित करने का प्रयास हो रहा है कि ‘‘चोर-चोर मौसेरे भाई’’ होते हैं। ऐसा सिद्ध करके जनसाधारण पर जबरदस्त दबाव बनाकर समाज के लोगों को यह महसूस कराया जा रहा है कि भृप्टाचार तथा अपराध जगत में संलिप्त लोगी की दबंगई एवं ट्रस्ट-सोसाइटी- एन.जी.ओ.-स्वयं सेवी संगठनों के स्वयंभू लोगों के बारे में कुछ कहने-बोलने का अधिकार नहीं रह गया है।
(डॉ. नीतू सिंह)