फर्रुखाबाद: कम्प्यूटर और मिशाइलों के युग में आज भी आदमी अपनी किस्मत को पकड़कर बैठा रहता है और इस उम्मीद में कि अभी वक्त खराब चल रहा है। लेकिन वह यह क्यों भूल जाता है कि आदमी अपनी किस्मत का खुद निर्माता होता है। व्यक्ति के इस अंधविश्वास का फायदा फुटपाथ पर बैठकर नीले-पीले पत्थर बेच रहे कुछ लोगों को देखा जा सकता है। जो सरे बाजार 25 से 50 रुपये में लुभावने अंदाज में भाग्य को खोलने का दावा करके इन पत्थरों को बेच रहे हैं।
विज्ञान भले ही चांद पर पहुंच गया लेकिन व्यक्ति ने अभी भी अपनी किस्मत समय पर छोड़ रखी है। रंग बिरंगे पत्थरों के सहारे अपनी किस्मत पल में बदलने के चक्कर में लोग वर्षों यूं ही निकाल देते हैं। रोड के किनारे मजमा लगाये लखनऊ निवासी जाहिर अली लोगों की किस्मत को बदलने का दावा कर रहे हैं। जाहिर हकीक, मोती, संघलितार के अलावा मूंगा, जर्कन आदि पत्थरों को एक कटोरे में लकड़ी के माध्यम से घुमाकर चलाते हैं और अगर पत्थर तकनीकी रूप से घूम गया तो समझो खुल गयी किस्मत।
किस्मत बताने वाले जाहिर ने बताया कि उसका यह कटोरा अजमेर शरीफ से लाया गया है। जो तकरीबन 130 साल पुराना है। लोग उस कटोरे के जादू में ऐसे फंसते कि एक दो रंगीन पत्थर खरीद ही ले रहे थे।
क्या रंग बिरंगे पत्थरों से आदमी की किस्मत बदली जा सकती है? मजमे का दौर चल ही रहा था तभी अचानक बीच में कोई व्यक्ति बोल पड़ा। जब आप किस्मत सबको बांट रहे हैं तो खुद क्यों नहीं अपने भाग्य को पलट लेते। इस पर जाहिर ने तपाक से जबाब दिया अपना काम करो, धन्धा खराब मत करिए। तुम्हारी किस्मत हमें ठीक नहीं लग रही। इसी बीच एक साइकिल सवार आकर मजमें में घुसा और अपना हाथ मजमे वाले के हाथ में देते हुए पूछा कि हमारे लिए कौन सा पत्थर शूट करेगा? जाहिर ने फिर उस कटोरे को उठाया और उसमें एक पत्थर डाला और कहा कि यही वह पत्थर है जो तुम्हारे दिन ठीक कर सकता है। कीमत 60 रुपये है। इस पर वह आदमी बोला महंगा है। तो जाहिर ने उत्तर दिया कि किस्मत अगर 60 रुपये में बदल रही है तो उसमें महंगा क्या? कई स्कूली बच्चे परीक्षा अच्छी हो इसलिए पत्थरों को अंगूठी सहित खरीदकर ले जा रहे है।
ऐसे ही न जाने कितने लोग आज अपनी किस्मत को संवारने के लिए सिर्फ साधुओं, ओझाओं व ज्योतिषियों के चक्कर में पड़कर अपना समय और पैसा बर्बाद करते हैं और यह लोग व्यक्ति की मजबूरी का फायदा उठाकर अच्छी कमाई कर लेते हैं।