फर्रुखाबाद: नैतिकता क्या है, शायद लोग भूल गए हैं। यही कारण है की कांग्रेस, भाजपा और बसपा का जिले से पत्ता साफ़ हो गया पर कोई पदाधिकारी हार की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। अभी तक तो किसी ने अपने इस्तीफे की पेशकश नहीं की है।
कायमगंज से जमानत तक न बचा पाने वाले बसपा उम्मीदवार अनुराग जाटव के पिता सतीश जाटव बसपा के जोनल को आर्डिनेटर हैं। दो पुराने बसपा कार्यकर्ताओं की टिकट काटकर उनके बेटे को उम्मीदवार बनाया गया था। पार्टी ने सतीश जी को विधान परिषद में भी भेजा है। लेकिन बेटे की ही नहीं अपने जिले में बसपा की पूरी तरह लुटिया डूबने के बाद भी वे अपने पद पर बने हैं। बसपा जिला अध्यक्ष सत्य पाल जाटव भी अपने पद से चिपके हैं।
भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सुशील शाक्य और प्रदेश सचिव मेजर सुनील दत्त द्विवेदी भी चुनाव हार गए। पर वे अभी भी अपने को इस पद के लायक समझते हैं। भाजपा के जिला अध्यक्ष भूदेव सिंह भी हार की जिम्मेदारी लेने को राजी नहीं हैं। जिले में भाजपा के एक और प्रदेश सचिव के अलावा कई लोग प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं। पर किसी को नहीं लगता कि जिले में सूपड़ा साफ़ होने के लिए वे भी कहीं से दोषी हैं।
कांग्रेस का तो जिले में सबसे बड़ा नुकसान हुआ। कानून मंत्री की पत्नी लुईस खुर्शीद की हार के बावजूद जिला और शहर कांग्रेस अध्यक्ष अपने- अपने पदों से चिपके हैं। मंत्री प्रतिनिधि का दर्जा मिलने के बावजूद जिन नेताओं के इलाके में कांग्रेस हारी वे भी इसकी जिम्मेदारी लेने की हिम्मत नहीं कर रहे हैं।
सपा की आंधी में भी सदर की सीट गंवाने के बावजूद सपा के शहर अध्यक्ष चाँद खां जीत के जश्न में डूबे हैं। उन्हें नहीं लगता कि सदर में वह सपा को नहीं जीता पाए तो उनकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है।