फर्रुखाबाद: चुनाव आयोग बहुत सख्त था कि कोई उम्मीदवार अपने समर्थक को प्रलोभन में कोई आर्थिक लाभ न दे दे। इस चक्कर में इस बार गरीबों को ठण्ड में बिना कम्बल के ही कुडकुडाना पड़ा। समाजसेवी कम्बल नहीं बाँट पाए। लेकिन परदे के पीछे क्या- क्या हुआ इसकी एक बानगी देखना काफी रोचक होगा।
खटकपुरा निवासी एक उम्मीदवार का समर्थक भगंदर का आपरेशन नहीं करा पा रहा था। एक उम्मीदवार ने लोहाई रोड के एक अस्पताल में न केवल उसका आपरेशन कराया बल्कि स्वस्थ्य लाभ के लिए भी उसे १० हज़ार रुपये दिए। अब चुनाव आयोग के अधिकारीयों को इसकी भनक नहीं लगी तो कोई क्या करे। चुनाव आयोग की सख्ती तो उम्मीदवारों के लिए लाईसेंस बन गयी। मसलन जिसकी मदद न करनी हो उसके लिए चुनाव आयोग का फरमान और जिसकी मदद करनी हो उसके लिए 20 रास्ते। यही खटकपुरा के मोआज्जम ( परिवर्तित नाम ) के साथ हुआ। आयोग की बंदिशें थीं कि किसी को प्रलोभन न दिए जाएँ लेकिन एक उम्मीदवार ने मोअज्जम का आपरेशन दूसरसे समर्थक से कहकर लोहाई रोड के एक सर्जन के यहाँ करा दिया। फिर तो इस
आपरेशन का ऐसा प्रचार हुआ कि कहेने क्या। उम्मीदवार को गरीबों के देवता के रूप में प्रचारित किया गया।
एक मुस्लिम सभासद एक निर्दलीय उम्मीदवार के बारे में बड़ा अंट- शंट बकते रहे। यह अलग बात है कि यह सभासद महोदय किसी समय इन्ही उम्मीदवार के दरवार के नवरत्न हुआ करते थे। सभासद ने उस्ताद उम्मीदवार के बारे में उल्टा रिकार्ड बजाया तो सभी का मुह लटक गया। बोले यह क्या कह रहे हो…… पर सभासद कहाँ मानने वाले थे। सभासद के एक रिश्तेदार से भी असर डलवाया गया। पर सभासद साहब कहाँ मानने वाले थे वे तो हाथी पर सवार थे। देखना है कि अब सभासद का चेप्टर बंद होता है या……………….
फतेह्गड़ के एक बसपाई खेमे के एक मुस्लिम नेता ने अमेठी में कांग्रेस उम्मीदवार के बारे में सख्त टिप्पणी कर दी। अब तो सभी नेता जी का मुह देख रहे थे। लेकिन नेता जी कहाँ मानने वाले थे। अब मुस्लिम होटलों पर नेता जी के उस बयान पर उनकी जीदारी के लिए दाद दी जा रही है।
इस बार भितरघात को लेकर भाजपा बड़ी परेशान रही। खासतौर से सदर में उम्मीदवार के अपने ही दूर- दूर रहे। फिर अपना कैरियर बचाने को फोटो खिंचवाने आये तो भी लोगों कि नज़र में संदिग्ध ही रहे। उन्हें अपने भविष्य कि भी चिंता सताती रही कि अब मेरा क्या होगा। भाजपा उम्मीदवार ने एक भाई की तो सपा से वापसी करा ली। राजनीती में निष्क्रिय पड़े एक भाई के
सक्रियता के पंख लगवा दिए पर एक भाई के बारे में ……..घर वाले ही नहीं पार्टी के कुछ खास पदाधिकारियों पर भी है जो अब भी कहते घूम रहे हैं कि भाजपा की लडाई थोड़ी टफ है।
ब्रह्म दत्त द्विवेदी कि पुण्य तिथि को राजनीतिक पर्व कहने पर भाजपाइयों के नथुने फूलते थे। एक बार तो द्विवेदी जी को पांचाल पुरुष बताकर पुण्य तिथि को पंचाल पर्व की संज्ञा दे दी गयी। पर इस चुनाव ने पुण्य तिथि कार्यक्रम की हकीकत से भी पर्दा उठा दिया। इस बार 10 फरवरी की तारिख चुनाव प्रचार के बीच पड़ी। कई बार योजना बनी कि किस स्तर पर आयोजन हो। अन्त में कोई कार्यक्रम न करने का फैसला हुआ। इस बारे में भाजपा के चुनाव अभिकर्ता सुधीर शर्मा से पुछा गया तो बोले- तुम नहीं जानते अगर 10 फरवरी को बड़ा आयोजन कर लेते तो इस टेम्पो को 19 तक मेंटेन कैसे रख पाते। मतलब साफ़ कि अगर भाजपाई चाहेंगे तभी पंचाल पुरुष को श्रद्धांजली देने का मौका मिल पायेगा……..तो 10 फरवरी के पंचाल पर्व से पर्दा यूँ उठ गया।