गुजरा हुआ जमाना….. : महामूर्ख सम्मलेन में होती थी होली की मस्ती

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फर्रुखाबाद:  महादेवी, वचनेश और लालन पिया की इस नगरी में होली के अलग रंग रहे।  बहुत पहले की बात न भी करें तो 80 के दशक में महामूर्ख सम्मलेन कर होली की रात लोगों को हंसने- गुदगुदाने का मौका दिया। महामूर्ख सम्मलेन  होने से लोग होली पर होने वाली खुराफातों से भी बचे रहे।
80 के दशक में खतराना के होली मैदान में कई सालों तक हास्य कवि सम्मेलन के आयोजन हुए।  इनमे देश के जाने- माने हास्य कवियों ने शिरकत की।  कई सामजिक संस्थाओं से जुड़े रहे सुरेन्द्र अग्रवाल ने हास्य कवि सम्मेलन के लिए सहेयोगियों की अच्छी टीम  बना ली थी।  शहर में इस तरह का दूसरा आयोजन न होने के कारण लोगों ने इसे खूब सहयोग किया।

इस सम्मेलन में कवि गधे के सिर वाली चोंगेनुमा टोपियाँ लगाकर बैठते थे. कवियों में से एक को महामूर्ख भी चुना जाता था।  कई साल तक यह कार्यक्रम चला, लेकिन किन्ही कारणों से बाद में यह कार्यक्रम बंद हो गया।

सन 2000 में संस्कार भारती ने बिलेले जयंती पर फिर महामूर्ख सम्मलेन शुरू किया।  वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश मिश्रा कंचन ने कुचिया के मंदिर पर महामूर्ख सम्मलेन को नया लुक दिया।  इस कार्यक्रम में स्थानीय हास्य कवि ही बुलाये जाते थे।  कवि गण रंग- गुलाल पोत कर बैठते थे और उनमे से ही एक को महामूर्ख का अलंकरण दिया जाता था।

महामूर्ख सम्मलेन  में लोगों ने खूब दिलचस्पी दिखाई। लेकिन पिछले साल यह महामूर्ख सम्मलेन भी न हो सका। फाल्गुनी पूर्णिमा को छायावाद की प्रमुख कवियत्री महियेसी महादेवी वर्मा की जयंती होती है।  इस दिन पहले अभिव्यंजना और बाद में महादेवी स्मृति पीठ
के सदस्य महादेवी प्रतिमा पर पुष्पार्चन के लिए बैठते थे।  इस गोष्ठी में भी होली के रंग बिखरते थे। अभिव्यंजना  में बिखराव के बाद महादेवी
स्मृति पीठ ने इस गोष्ठी में बाहर के कवि भी बुलाये। पर पिछले साल यह गोष्ठी भी बंद कर दी।