होलिकाष्ठ्क 1 मार्च को, दहन का मुहूर्त 7 मार्च को

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01 मार्च, 2012, गुरुवार, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र से होलाष्टक प्रारम्भ होगें| होली से ठीक आठ दिन पहले होलाष्टक का प्रारम्भ हो जाता है| होलाष्टक के दिन होली दहन करने के लिये लकडियां एकत्रित कर ली जाती है| तथा प्रह्लाद के प्रतीक के रुप में लकडियों में एक डंडा गाड दिया जाता है| यह डंडा होलिका दहन करने के बाद निकाल लिया जाता है| इस डंडे के गडने के बाद क्षेत्र में विवाहादि शुभ कार्य नहीं किये जाते है|

ये होलाष्टक 1 मार्च से लेकर 8 मार्च की अवधि तक रहेगें| इन दिनों में परम्परा अनुसार जिन कार्यो का निषेध है, उसमें विवाह के अलावा गृहप्रवेश, मुण्डनदि मंगल कार्य आते है|

होलिका दहन 2012, 07 मार्च

07 मार्च, 2012 वर्ष में होलिका दहन, गुरुवार, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में किया जायेगा| होलिका दहन भद्रा समाप्त होने के बाद किया जाता है| यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि अगर अर्धरात्रि में भी भद्रा रहे तो भ्रद्रा के आरम्भ के समय को छोडकर अन्य समय में होलिका दहन किया जा सकता है| होली का पर्व दो दिन मनाया जाता है| होली के पहले दिन होली का दहन किया जाता है| तथा दूसरे दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है|

फाल्गुन पर्व 2012, 08 मार्च

08 मार्च, 2012 के दिन फाल्गुन पूर्णिमा को होली का पर्व समस्त भारत में बडी श्रद्धा व उत्साह से मनाया जाएगा| यह पर्व रंग और मस्ती का पर्व है| इस पर्व पर सभी जन शत्रु भाव भूल कर मित्रता से एक -दूसरे के गले लगते है| होली पर्व मथुरा और बरसाने की होली विशेष रुप से जानी जाती है| कहते है कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण अपने मित्रों के साथ होली खेलने, राधा के गांव बरसाने आते थे|

उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में की प्रकार की होली देखने में आती है| होली का त्यौहार धुलैंडी के नाम से भी जाना जाता है| इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग, अबीर-गुलाल लगाते है| ढोल बजा कर होली के लोक गीत गाये जाते है| यह रंगने और गाने-बजाने का कार्यक्रम दोपहर तक चलता है| मुख्यत: यह पर्व स्नेह और सौहार्द का पर्व है|

क्या है होलाष्टक?

होली के आठ दिन पूर्व होलाष्टक प्रारंभ हो जाते हैं। इन आठ दिनों में क्रमशरू अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

पौराणिक दृष्टि से प्रह्लाद का अधिग्रहण होने के कारण यह समय अशुभ माना गया है लेकिन पर्यावरण एवं भौतिक दृष्टि से पूर्णिमा से आठ दिन
पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद-दुखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वह चौत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्टग्रहों की
अशुभ प्रभाव से क्षीण होने पर अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल से प्रदर्शित करता है।

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को । विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया।

आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है ।

स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें।

संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।

भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें। कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।

द्वादशी के दिन प्रातरू ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के
पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।
छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं। पर उनकी विधिवत जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस लोकप्रिय स्तंभ में उपयोगी टोटकों की विधिवत जानकारी दी जा रही है।
मनोकामना की पूर्ती हेतु

’ होली के दिन से शुरू करके प्रतिदिन हनुमान जी को पांच पुष्प चढाएं, मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी।

’ होली की प्रातः बेलपत्र पर सफ़ेद चन्दन की बिंदी लगाकर अपनी मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर सच्चे मन से अर्पित करें। बाद में सोमवार को किसी मन्दिर में भोलेनाथ को पंचमेवा की खीर अवश्य चढाएं, मनोकामना पूरी होगी।

रोजगार प्राप्ति हेतु
’ होली की रात्री बारह बजे से पूर्व एक दाग रहित बड़ा नीबू लेकर चौराहे पर जाएं और उसकी चार फांक चारों कोनों में फेंक दें। फिर वापिस घर जाएं किन्तु ध्यान रहे, वापिस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें। उपाय श्रद्धापूर्वक करें, शीघ्र ही बुरे दिन दूर होंगे व रोजगार प्राप्त होगा।

स्वास्थ्य लाभ हेतु
’ मृत्यु तुल्य कष्ट से ग्रस्त रोगी को छुटकारा दिलाने के लिये जौ के आटे में तिल एवं सरसों का तेल मिला कर मोटी रोटी बनाएं और उसे रोगी के ऊपर से सात बार उतारकर भैंस को खिला दें। यह क्रिया करते समय ईश्वर से रोगी को शीघ्र स्वस्थ करने की प्रार्थना करते रहें।

व्यापार लाभ के लिये
’ होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपडे में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रखें, व्यवसाय में लाभ होगा।

’ होली के अवसर पर एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपडे में लपेट कर दुकान में या व्यापार पर स्थापित करें। साथ ही स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र रखें. उपाय निष्ठापूर्वक करें, लाभ में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी।

धनहानी से बचाव के लिये
’ होली के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल छिडकें और उस पर द्विमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय धनहानि से बचाव की कामना करें। जब दीपक बुझ जाए तो उसे होली की अग्नि में डाल दें। यह क्रिया श्रद्धापूर्वक करें, धन हानि से बचाव होगा।

दुर्घटना से बचाव के लिये
’ होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।

’ होली के दिन प्रातः उठते ही किसी ऐसे व्यक्ति से कोई वस्तु न लें, जिससे आप द्वेष रखते हों। सिर ढक कर रखें। किसी को भी अपना पहना वस्त्र या रूमाल नहीं दें। इसके अतिरिक्त इस दिन शत्रु या विरोधी से पान, इलायची, लौंग आदि न लें। ये सारे उपाय सावधानी पूर्वक करें, दुर्घटना से बचाव होगा।
साभार-प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र