फर्रुखाबाद: 55 वर्षीया राजकुमार बहिन जी की जात का है इसलिए उसने यूपी में बहिन जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने के लिए 2007 के चुनाव में हाथी का बटन दबाया था| पिछले कई साल से राजकुमार फर्रुखाबाद के चौक बाजार में लगने वाली मजदूर बाजार में बिकने आता है| पूरे दिन मजदूरी करता है और शाम को वापस घर जाता है| जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन उसे खाली हाथ लौटना पड़ता है| राजकुमार जाटव कमालगंज ब्लाक की ग्राम सभा करीमगंज का रहने वाला है और गाँव से हर रोज 12 किलोमीटर चल कर बाजार में मजदूरी करने आता है| गाँव में नरेगा है, प्रधान है, ग्राम सचिव है मगर राजकुमार जाटव का नरेगा कार्ड नहीं बना| राजकुमार ने इस बार 2012 में भी वोट डाला, बटन भी हाथी का दबाया क्यूंकि जब वो लखनऊ में दलित रैली में गया था बहनजी ने कहा था किसी के बहकावे में मत आना बटन हाथी का दबाना सो दबा दी| उसने वादा निभाया मगर राजकुमार के हालात नहीं बदले हाँ मायावती और उनकी सरकार के नौकरों के जरुर बदल गए| राजकुमार का आरोप है बसपा के कार्यकर्ता तो मदद करने के नाम पर वसूली करते थे उसने दी नहीं इसलिए उसकी कोई मदद नहीं हुई|
एक और बुजुर्ग फर्रुखाबाद के चौक बाजार की मजदूर मंडी में बिकने आया है| 58 साल की उम्र का सुरेश जाटव भी बहन जी की जात का है पड़ोस के जिले हरदोई से फर्रुखाबाद में मजदूरी करने आया है| 19 फरबरी को हरदोई में वोट पड़े थे, वोट डालने के बाद सुरेश काम दूंदने निकल आया| 2 दिन काम मिला फिर बुजुर्ग होने के कारण किसी ने नहीं खरीदा| 2 दिन के पैसे से 6 दिन रोटी खा ली अब तीन दिन से भूखा है| सुबह के 9 बजे तक किसी ने नहीं खरीदा| सुरेश हरदोई जिले के महमदपुर अतरिया पाली गाँव का रहने वाला है| मामला सुरेश जाटव के साथ भी वही है- गाँव में नरेगा है, प्रधान है, ग्राम सचिव है मगर सुरेश का जॉब कार्ड नहीं है|
ऐसे हजारो और लाखो सुरेश और राजकुमार है उत्तर प्रदेश में जिनके जॉब कार्ड नहीं बने, अगर कहीं बने तो कम से कम मजदूरों को मालूम तक नहीं| उनके नाम से काम दर्ज होता है पैसा निकलता है मगर मजदूर को नहीं मिलता| पैसा प्रधान, ग्राम सचिव, खंड विकास अधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी से लेकर जिलाधिकारी से होते हुए सरकार के मंत्रियो में बटता रहा| बेचारा मजदूर तो केवल वोटर था सो माया की भेट चढ़ गया| अगर ये सही नहीं है तो इस सवाल का जबाब क्या है?- “सुरेश और राजकुमार की जानकारी के अनुसार उनके जॉब कार्ड नहीं बने है”|
अंग्रेजी के ज़माने से फर्रुखाबाद के चौक बाजार में लगने वाली मजदूर मंडी की रौनक आज भी कम नहीं हुई| 16-16 सरकारे केंद्र और राज्य में हो गयी| इंदिरा की “गरीबो हटाओ” से लेकर माया के “चढ़ गुंडों की छाती पर बटन दबेगा हाथी पर” के नारे मजदूर लगाते रहे| करोडो रुपये के नारे गाँव की दीवालों पर लिख गए- “नरेगा आया है, नई रोशनी लाया है” मगर तीन दिन से भूखे सुरेश की आँखों के आगे अँधेरा छाया है| मंडी में हर रोज 100 से डेढ़ सौ मजदूर काम की तलाश में आते है कभी आधो को तो कभी सभी को काम मिल जाता है मगर रोजगार की गारंटी नहीं है| निसौली का सेवाराम पुत्र लाखन, गुधरू पाली हरदोई का रामनिवास पुत्र फकीरे, पलिया लखीमपुर का रमेश चन्द्र पुत्र शिवसागर लाल इन सब की एक जैसी ही कहानी है| हुक्मरान सिर्फ और सिर्फ गरीबो के हक का हिस्सा खाते रहे और गरीब सिर्फ वोटर बन कर रह गया|